लखनऊ। बसपा सुप्रीमो मायावती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि मोदी को दलित की बेटी का माला पहनना अच्छा नहीं लगता। माया ने प्रधानमंत्री की गाजीपुर रैली को भी पूरी तरह फ्लाप बताया।
सोमवार को राजधानी में पत्रकारों से एक वार्ता के दौरान मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ता अपने नेता को जो माला पहनाते हैं, वह उसमें काली कमाई का पैसा नहीं होता। वे अपनी गाढ़ी कमाई के पैसे की माला से अपने नेता का स्वागत करते हैं।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज गाजीपुर में भाजपा के परिवर्तन रैली को सम्बोधित करते हुए नोटबंदी के मामले में विपक्षियों पर हमला बोला था। इस दौरान भ्रष्टाचार और कालाधन पर बोलते हुए कहा था कि कुछ नेता नोटों की माला भी पहनते हैं।
बसपा सुप्रीमो प्रधानमंत्री के इसी बयान पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही थीं। माया ने गाजीपुर में आज भाजपा की आयोजित परिवर्तन रैली को भी असफल करार दिया। कहा कि इस रैली में मुश्किल से 20-25 हजार लोग ही शामिल हुए। वह भी ज्यादातर लोग बिहार से आए हुए थे।
उन्होंने आरोप लगाया कि इस रैली में रेलवे का भी दुरुपयोग किया गया। बगैर किराया जमा किये भाजपा के लोगों को रैली के लिये ढोया गया। बसपा सुप्रीमो ने प्रधानमंत्री पर उत्तर प्रदेश विशेषकर पूर्वांचल की उपेक्षा का आरोप लगाया।
उन्होंने पूंछा कि मोदी यह बताएं कि अपने ढाई साल के शासन में उन्होंने पूर्वांचल के लिए कौन सा विकास कार्य किया। कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान किये गये एक भी वादे को उन्होंने पूरा नहीं किया। अब जब प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक है तो मोदी शिलान्यास कर रहे हैं।
पांच सौ और एक हजार की पुरानी नोटों को बंद करने के फैसले पर माया ने कहा कि उनकी पार्टी भ्रष्टाचार और कालाधन के खिलाफ है, लेकिन यह निर्णय पूरी तैयारी के साथ लेना चाहिए था। बसपा नेता ने केंद्र सरकार के इस फैसले को जिद्दी और अपरिपक्व बताते हुए कहा कि नोटों की बंदी के चलते आज पूरे देश का बुरा हाल है। एटीएम मशीने खराब हैं। बैंकों से भी पैसा नहीं मिल पा रहा है।
माया ने कहा कि प्रधानमंत्री बोल रहे हैं कि नोटबंदी से गरीब खुश हैं और चैन की नींद सो रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि जल्दबाजी में फैसला लेने के कारण गरीब परेशान हैं और अमीर लोग चैन की नींद सो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने इसी तरह का जिद्दी और अपरिपक्व निर्णय भूमि अधिग्रहण कानून बनाने में भी लिया था लेकिन, जनविरोध के चलते उन्हें वह फैसला वापस लेना पड़ा था।
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