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मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों ना कोई... - Sabguru News
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मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों ना कोई…

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मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों ना कोई…
meera bai learnt to worship Sri Krishna from her childhood
meera bai learnt to worship Sri Krishna from her childhood
meera bai learnt to worship Sri Krishna from her childhood

सबगुरु न्यूज। हर तरह की यातनाओं को सहते हुए भी उसने हार नहीं मानी और वह सदैव श्याम सुन्दर बंशीवाले की भक्ति में लगी रही। यह कोई और नहीं बल्कि भक्तों में शिरोमणि मेवाड़ की महारानी मीरा बाई थी।

भक्ति में लीन होकर राज पाट और राजसी शान शौकत को छोड़कर उसने भगवा वस्त्र धारण कर लिए। सभी से नाता तोडती हुई वह परमात्मा की भक्ति में लीन हो गई।

बचपन से ही भक्ति में लीन होकर वह उन्हीं गिरिधर गोपाल को अपना सब कुछ मानती थी।कहते हैं कि बचपन में एक बार जब वह अपनी मां के साथ बैठी थी तब वहां से एक बारात निकल रही थी। तब मीरा ने पूछा मां ये कौन है और कहां जा रहा है।

मां ने कहा बेटा ये दूल्हा हैं और एक लडकी के साथ शादी करने जा रहा है। मीरा ने फिर पूछा उसके बाद क्या होगा। मां ने सहजता से कहा बेटा फिर ये मर जाएगा।

मां से फिर पूछा क्या मेरे दूल्हा भी मर जाएगा तब मां ने कहा हां बेटी। मीरा ने फिर पूछा कि मां कौनसा दूल्हा नहीं मरता है, तब मां ने श्रीकृष्ण की मूर्ति की ओर इशारा करते हुए कहा कि बेटी यह नहीं मरता है, यह गिरिधर गोपाल है।

बस मीरा बाई को इसी बात की प्रेरणा मिल गई। उसके ह्रदय में ज्ञान की ज्योत जल गई और वह अपना सब कुछ उस गिरधर गोपाल को ही मानने लगी।

मेडता में जन्मी इस मीरा बाई की शादी चितौडगढ़ के महाराणा के साथ हुई लेकिन मीरा बाई गिरधर गोपाल को ही अपना पति मानती रही। उसे बहुत समझाया गया लेकिन वह सदा भक्ति में लीन ही रही और चितौडगढ़ के किले के मंदिर में हमेशा श्रीकृष्ण के भजनों में लीन होकर कहती थीं कि हे सांवरिया कृष्ण मुरारी मुझे अपना दास बना लो।

मीरा बाई के इस व्यवहार से चितौडगढ़ के राजा ने उन्हें कई दंड दिए और अंत में उन्हें जहर का प्याला पीने के लिए दे दिया। मीरा जहर को पीकर अमर हो गई और चितौडगढ़ के किले को छोड़कर वह द्वारकाजी जाकर गिरधर गोपाल में लीन हो गई।

संत जन कहते हैं कि हे मानव तू अजर अमर अविनाशी परमात्मा की भक्ति में लीन होकर अपने कर्म को सहज और सरल तरीके से उस मार्ग की ओर ले जा जहां बैर, विरोध न हो और सदा प्रेम की गंगा बहाई जातीं हो, प्रकृति की संस्कृति संवारी जातीं हो।

मानव संस्कृति तो हर बार बदल जाती हैं लेकिन प्रकृति की संस्कृति अजर अमर अविनाशी है। इसलिए हे मानव तू मानव संस्कृति के स्थान पर प्रकृति की संस्कृति को ही सर्वोपरि मान, इससे तू ओर तेरा समाज सदा विद्रोह से दूर रह कर एक आदर्श समाज का निर्माण कर पाएगा।

सौजन्य : भंवरलाल