मुंबई। लैंगिक समानता अभियान को बढ़ावा देते हुए बंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि अगर पुरुषों को पूजास्थल पर जाने की अनुमति है तो महिलाओं को भी अनुमति मिलनी चाहिए क्योंकि कोई भी कानून महिलाओं को पूजास्थल में प्रवेश से नहीं रोकता।
अदालत ने महिलाओं को बराबरी के हक की जरूरत को रेखांकित करते हुए कहा कि अगर कोई मंदिर या व्यक्ति इस तरह का प्रतिबंध लगाता है तो उसे महाराष्ट्र के एक कानून के अंतर्गत छह महीने की जेल की सजा हो सकती है। अदालत ने कहा कि अगर कोई भगवान की शुद्धता के बारे में चिंतित हैं तो सरकार को बयान देने दें।
मुख्य न्यायाधीश डीएच वाघेला और न्यायाधीश एमएस सोनक की खंडपीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता नीलिमा वर्तक और सामाजिक कार्यकर्ता विद्या बल द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं। इस याचिका में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में शनि शिगनापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को चुनौती दी गई थी।
मुख्य न्यायाधीश वाघेला ने कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो महिलाओं को किसी स्थान पर जाने से रोके। अगर आप पुरुषों को अनुमति देते हैं तो आपको महिलाओं को भी अनुमति देनी चाहिए। अगर एक पुरुष जा सकता है और मूर्ति के सामने पूजा कर सकता है तो महिलाएं क्यों नहीं? महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण करना राज्य सरकार का कर्तव्य है।