पिथौरागढ़। सावधान ! ये फल खाने के नहीं, सुनने के हैं। पेड़ों पर लटके इन फलों से बातचीत होती है, क्योंकि ये फल नहीं मोबाइल हैं। ऊंचे पहाड़ों की गोद में बसे एक ऎसे इलाके में हम आ गए हैं जहां पेड़ों पर मोबाइल लटके हैं। बडे शहरों में आपने पोस्ट पेड और प्री पेड मोबाइलों के नाम सुने होंगे। लेकिन यहां पेड़ मोबाइल हैं। तरह-तरह के मोबाइल और उनकी तरह-तरह की कालर ट्यून।…..
भारत-नेपाल- चीन सीमा के त्रिकोण पर फैले उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के दोबांस इलाके में पेड़ों पर मोबाइलों का लटकना किसी बाहरी आदमी के लिए हैरानी की बात हो सकती है, लेकिन जब मोदी सरकार देश को डिजिटल इंडिया बनाने के लिए करीब एक लाख करोड़ रूपए खर्च करने जा रही है, ऎसे समय में इस इलाके में मोबाइल फोन का मरियल सा कनेक्शन हासिल करने के लिए गांव वालों को अपने मोबाइल फोन पेड़ों पर लटकाने को मजबूर होना पड़ता है।
इलाका इतना दुर्गम है कि मोबाइल का कनेक्शन जमीन पर पकड़ता ही नहीं है। हैंडसैट को किसी ऊंचाई वाली जगह पर रखना मजबूरी है और पेड़ इसके लिए सबसे अच्छा स्थान हैं। दिन निकलते ही बेलगाडा, रीठाखाना, ईवरखोला, असुरदेव, देवपुरी, कुनकटिया जैसे गांवों के लोग पेड़ों पर चढ़ जाते हैं और अपने मोबाइल लटका देते हैं।
दिनचर्या निभाने के साथ – साथ पेड़ों पर निगाह रखना इन गांव वालों की मजबूरी है। और अगर फोन की घंटी बज जाए तो पेड़ों पर कुलांच मारकर चढ़ना भी पड़ता है। अगर पेड़ पर चढ़ने में देरी हो गई तो मोबाइल की घंटी बजते बजते बंद भी हो जाती है और उन्हें हताश होकर हांफते हुए पेड़ से उतरना भी पड़ता है।