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modi government will soon introduce plastic notes in india
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#plastic पर आ रही है देश की अर्थव्यवस्था

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#plastic पर आ रही है देश की अर्थव्यवस्था
Plastic notes on the indian economy
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जयपुर। 8 नवंबर को नोटबंदी के बाद मोदी सरकार ने एक और बड़ा फैसला लेने जा रही है। सरकार जल्द ही प्लास्टिक करेंसी लाने वाली है ताकि कालेधन पर लगाम लगाई जा सके।

सरकार ने शुक्रवार को संसद को बताया कि उन्होंने प्लास्टिक करेंसी छापने का निर्णय लिया है। इसके लिए मटीरियल की खरीद भी शुरू की जा चुकी है। संसद में दिए गए एक लिखित जवाब में वित्त राज्यमंत्र अर्जुन मेघवाल ने बताया, प्लास्टिक या पॉलीमर सब्सट्रेट से प्लास्टिक के नोटों की छपाई का निर्णय लिया गया है। इसके लिए शुरुआती प्रक्रिया भी प्रारंभ हो चुकी है।

भारतीय रिजर्व बैंक काफी लंबे समय से प्लास्टिक करेंसी लाने की योजना बनाता रहा है। फरवरी 2014 में सरकार ने संसद को बताया था कि 10 रुपये के नोट के रूप में 1 अरब रुपये के प्लास्टिक नोट छापे जाएंगे। ट्रायल के लिए इन्हें पांच शहरों, कोच्चि, मैसूर, जयपुर, शिमला और भुवनेश्वर में चलाया जाएगा।

प्लास्टिक के नोटों का औसत जीवन लगभग 5 साल का होता है और उनकी नकली मुद्रा तैयार करना मुश्किल है। इसके अलावा, प्लास्टिक से बने नोट कागजी नोटों की तुलना में काफी साफ होते हैं। जाली नोटों से निपटने के लिए पहली बार ऑस्टेलिया में प्लास्टिक के नोट छापे गए थे।

एक अन्य प्रश्न के जवाब में, मेघवाल ने कहा आरबीआई ने दिसंबर 2015 में जानकारी थी कि उन्हें होशंगाबाद पेपर मिले द्वारा भेजे गए पेपर के और नासिक नोट प्रेस से छपे 1000 रुपये के कुछ प्लास्टिक नोट मिले हैं जिनमें सुरक्षा जोख़िम नहीं है। उन्होंने कहा कि इस मामले में जांच के आदेश दिए गए है।

नोट आने से पहले विवाद
प्लास्टिक नोटों के बनने से पहले ही इनके साथ विवादों का भी नाता जुड़ गया है।  सरकार भले ही प्लास्टिक करंसी के फायदे गिनवा रही हो, लेकिन इनके बनने से पहले इनका विरोध भी शुरू हो गया है। अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि ने आरोप लगाया है कि प्लास्टिक के नोटों में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी इस बात का विश्वास दिलाएं कि इन नोटों में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।

चक्रपाणि ने कहा कि भारत एक धार्मिक देश है। यहां लोग मंदिरों में रुपये दान करते हैं, साधु-संतों के चरणों में समर्पित करते हैं। उन्होंने मोदी सरकार को चेताते हुए कहा कि 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ हुई पहली क्रांति चर्बी वाले कारतूस को लेकर ही हुई थी। अब मोदीजी उसे फिर से दोहराने की कोशिश न करें। अगर सरकार ने ऐसा कोई कदम उठाया तो जनता उसके खिलाफ वही रुख अपनाएगी जैसा कि उसने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ किया था।

प्लास्टिक नोटों की खूबियां-
* इन प्लास्टिक के नोटों की उम्र कागज से बने नोटों के मुकाबले 10 गुना ज्यादा पायी गयी है।
* प्लास्टिक के नोटों की अवैध रूप से फोटोकॉपी की जा सकती है, लेकिन इनके स्पेशल फीचर और फील को कॉपी नहीं किया जा सकता। इससे असली और नकली नोटों के अंतर को कोई भी आसानी से पहचान सकता है।
* आस्ट्रेलिया में प्लास्टिक के नोटों में एक ऑप्टिकल वेरिएबल डिवाइस भी लगाई है। इससे नोट का एंगल बदलने पर इमेज भी बदल जाती है। प्लास्टिक के नोटों में हाई सिक्युरिटी फीचर्स लगाए गये हैं।
* आईएमएफ की रिपोर्ट के मुताबिक प्लास्टिक करंसी न सिर्फ इको-फ्रेंडली और टिकाऊ है, बल्कि इसमें मौजूद सुरक्षा फीचर्स की वजह से इसके ढेर सारे फायदे हैं।
* प्लास्टिक से बने करंसी नोट पेपर वाले नोटों की तुलना में साफ-सुथरे होते हैं। प्लास्टिक के नोटों पर बैक्टीरिया कम चिपकता है। नोटबंदी के बाद देश के कई बैंकों में पुराने नोट पहुंचाए गये, जिनकी वजह से बैंक कर्मचारियों को फंगस इंफेक्शन होने की खबरें आयीं।
* बैंक ऑफ इंग्लैंड की एक रिसर्च के मुताबिक प्लास्टिक के नोटों की वजह से कागज के नोटों को छापने में लगने वाला कच्चा माल बचता है।
* बैंक ऑफ कनाडा की एक रिसर्च के मुताबिक पेपर वाले नोट की तुलना में प्लास्टिक नोट से ग्लोबल वार्मिंग में 32 फीसदी की कमी।
* प्लास्टिक के नोटों को री-साइकल के बाद दूसरे प्रोडक्ट तैयार किये जा सकते हैं, जबकि कागज वाले पुराने नोटों को नष्ट करने के लिए जलाना पड़ता है।
* प्लास्टिक वाले नोटों का वजन पेपर वाले नोटों की तुलना में कम होता है। ऐसे में इनका ट्रांस्पोर्टेशन और डिस्ट्रीब्यूशन भी आसान होता है।

आस्ट्रेलिया ने की थी शुरुआत
दुनिया में फिलहाल के 32 देशों में प्लास्टिक के नोट प्रचलन में हैं। जाली नोटों और ब्लैकमनी की समस्या की निपटने के लिये सबसे पहले 1988 में ऑस्ट्रेलिया ने प्लास्टिक के नोटों का चलन शुरू किया था। रिजर्व बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया और सीएसआईआरओ (कॉमनवेल्थ साइंटफिक एंड इंडस्टि्रयल रिसर्च ऑर्गेजाइजेशन) ने मिलकर दुनिया की पहली पॉलिमर करंसी लॉन्च की थी। जाली नोटों पर अंकुश का यह सबसे बड़ा कदम था। शुरुआत में 10 डॉलर का पॉलिमर नोट छापा गया।

सीएसआईआरओ और यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न ने पहली बार इसका इस्तेमाल किया। हालांकि 10 डॉलर के नोट से स्याही छूटने की शिकायतें सामने आयीं, लेकिन बाद में 5 डॉलर का नोट छापने के बाद कोई दिक्कत नहीं आई। उसके बाद 20, 50 और 100 डॉलर के प्लास्टिक के नोट छापे गये। 1996 में ऑस्ट्रेलिया दुनिया का पहला देश बन गया जिसके पास पॉलिमर नोटों की पूरी सीरीज मौजूद थी।

अभी 32 देशों में चलती है प्लास्टिक करंसी
बता दें कि फ़िलहाल दुनियाभर के 32 देशों में प्लास्टिक करंसी चलती है। प्लास्टिक नोट चलाने वाले देशों में ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, कनाडा, फिजी, मॉरीशस, न्यूजीलैंड, पापुआ न्यू गिनी, रोमानिया और वियतनाम भी शामिल हैं। सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया में जाली नोटों की मुश्किल से निपटने के लिए प्लास्टिक करंसी सर्कुलेशन में लाई गई थी। असल में ऑस्ट्रेलिया में भी नकली नोटों के चलते सरकार को वित्तीय घाटों का सामना करना पड़ रहा था इसलिए साल 1988 में ब्लैक मनी पर नकेल कसने के लिए प्लास्टिक के नोट चलन में लाए गए। हाल ही में बैंक ऑफ इंग्लैंड ने 3 साल की रिसर्च के बाद सितंबर 2016 में पांच पौंड का पॉलिमर नोट छापा है।