31 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात कार्यक्रम से एक बार फिर देश को संबोधित करने जा रहे है, हर बार की तरह इस बार भी प्रधानमंत्री लोगों को जागरूक करने के संदेश देश की जनता को देंगे, लेकिन इस बार मोदी जी के मन में काश्मीर को लेकर क्या बात है वो महत्वपूर्ण होगी।
हो सकता है प्रधानमंत्री इस संवेदनशील मुद्दे को मन की बात में रखे भी न, परंतु राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ये विषय फिलहाल अपनी महत्ता बनाए हुए है, आतंकवादी बुरहान वानी की मौत के बाद पूरे जुलाई के महीने कश्मीर आतंक के साये में रहा, आतंकी बुरहानवानी के समर्थक लगातार विरोध करते रहे, पाकिस्तान की गीदड़ फफ़्तिया घाटी मे गूंजती रहीं।
भारतीय सेना ने भी इस विरोध को दबाने के लिए मोर्चा संभाला और केंद्र सरकार ने कश्मीर में कई तरह की पाबंदियां लगाने के साथ इस विरोध को दबाने में कामयाब हुई, परंतु सवाल ये उठता है कि इस तरह से कब तक चलता रहेगा? आखिर कब तक काश्मीरी युवा पड़ोसी मुल्क और चरमपंथियों के बहकावे मे आकार अपने ही देश को नुकसान पहुंचाते रहेंगे?
इन तमाम विरोधों के बावजूद भी भारत अपनी विदेश नीति के जरिये पाकिस्तान की हर चाल को कमजोर करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है, पूरे महीने पाकिस्तान से चली टकराव भरी गतिविधियों के बावजूद देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह 3 अगस्त को सार्क की बैठक मे हिस्सा लेने पाकिस्तान जा रहे हैं।
बैठक से क्या निष्कर्ष निकलेगा ये तो आने वाला समय ही बताएगा। बहरहाल मन की बात में मोदी कश्मीर राग छेड़ते हैं या नहीं वो तो 31 जुलाई को पता चल ही जाएगा पर उसके पहले कश्मीर में अब तक क्या हुआ उसे सिलसिले वार जान लेते हैं।
भारत पाक बंटवारे के समय से चल रही कश्मीर कि लड़ाई अब तक निर्णायक दौर पर नहीं पहुंच पाई है और शायद आसानी से पहुंचे भी नहीं क्यूंकि पाकिस्तान ने समय समय पर इस पूरे क्षेत्र को अपनी नापाक चालो से नुकसान पहुंचाया है तो वही अब तक की केंद्र सरकारे भी इस क्षेत्र की जनता का पूरा विश्वास जीत पाने में नाकामयाब साबित हुई है।
घाटी भी समय समय पर तमाम घटनाक्रमों में दहलती रही है फिर चाहे वो 1953 में शेख अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री पद से हटाना, 1964 के कश्मीर दंगे, 84 में फारुख अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री पद से हटाया जाना, 87 में कश्मीर चुनाव के समय धांधलियां या फिर 1989 से चरमपंथियों और आतंकवादियों द्वारा शुरू की गई भारत के खिलाफ जंग जो आज तक जारी है।
इन सारी घटनाओं में अलगाववादियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही जो कश्मीरियों को अपने हित के लिए बरगलाते रहे, इन सारे घटनाक्रमों मे परोक्ष रूप से पाकिस्तान के हाथ होने के सबूत मिलते रहे हैं।
1999 मे हुए करगिल युद्ध मे तो पाकिस्तान को मुंह की खानी पडी थी और संजोग देखिये कि तब भी पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, भारत मे एनडीए की केंद्र सरकार और जुलाई का महीना था और आज भी वही स्थिति सामने है। आज जब केंद्र सरकार कश्मीर मे विरोध को दबाने के लिए कड़े निर्णय ले रही है तो न तो अलगवादियों को ये बात पच रही है, न पाकिस्तान को और न ही विरोधी ताकतों को।
पाकिस्तान समर्थित आतंकियों की मौत के बाद जुलाई भर कश्मीर में चली टकराव की स्थिति और भारतीय सेना द्वारा आतंकियों पर की गई खुली कार्यवाही को लेकर पाकिस्तान को ही अब चिंतन बैठक करने की आवश्यकता आन पड़ी है, 2 अगस्त को पाकिस्तान संसद के सयुंक्त सदनों को बुलाकर कश्मीर पर चिंतन बैठक करने वाला है।
पाकिस्तान की चिंता का कारण जो आज है उसकी शुरुआत तो भारत में 2014 के चुनाव के पहले ही हो गई थी, साल 2014 के केन्द्रीय चुनाव के पहले गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया।
कांग्रेस पहले ही भ्रष्टाचार के कीर्तिमान स्थापित कर जनता का विश्वास खो चुकी थी और ऐसे में नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार से अच्छे दिन आने वाले हैं का नारा बुलंद कर रहे थे और पड़ोसी मुल्क को उसी की भाषा में जवाब देने की बाते चैनल दर चैनल कर रहे थे।
देश की जनता में उम्मीद जग रही थी की शायद ये प्रधानमंत्री कश्मीर की समस्या का हल निकालने मे कामयाब होंगे, प्रधानमंत्री बनने के साथ ही नरेंद्र मोदी ने शपथ ग्रहण के समय पाकिस्तान समेत पड़ोसी मुल्को को अपने शपथ ग्रहण मे बुलाकर विदेश नीति मजबूत करने और अपनी कूटनीतिक चालो को चलना शुरू कर दिया।
मोदी ने पिछले दो सालों में ताबड़तोड़ विदेशी दौरे कर भारत की खोई साख को भी मजबूत किया है और पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को बढ़ावा देने की नीतियों को दुनिया के सामने रखा, आज जब काश्मीर मे भारत सरकार अपनी मजबूत विदेश नीति के बल पर खुलकर आतंक का दमन करने सामने आई है तो यहां ये कहना गलत नहीं होगा जब एक समय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने भी मजबूत विदेश नीति बनाकर पाकिस्तान को तोड़कर बांग्लादेश बनाया था।
इन्दिरा गांधी ने भी इसी तरह अपना पक्ष रखने और पाकिस्तान को तोड़ने को लेकर अमरीका सोवियत संघ समेत तमाम देशों का दौरा किया और विदेशी कूटनीति को मजबूत कर मुक्तिवाहिनी भारतीय सेना को पूर्वी पाकिस्तान के अंदर भेजा और भारत ने अपने दम पर ही पाकिस्तान के टुकड़े कर ये घोषित कर के दिखा दिया कि बांग्लादेश दुनिया का नया राष्ट्र होगा।
आज जब कश्मीर समस्या को सुलझाने मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगे हुए हैं तो उनके विदेशी दौरो को हम पाकिस्तान और कश्मीर विषय से जोड़कर देख सकते हैं क्यूंकि पिछले साल हुए कश्मीर चुनाव के बाद भाजपा ने धुर विरोधी पीडीपी को समर्थन देकर ये तो साबित कर दिया है कि भाजपा काश्मीर में मिली जीत को हर हाल मे भुनाना चाहती है।
कश्मीरी पंडितों की घर वापसी को लेकर भी इस दौर में सकारात्मक प्रभाव देखने को मिले हैं, 2014 से लेकर अब तक पठानकोट स्थित सेना के केंट को छोड़कर न तो कश्मीर में कोई बड़ी आतंकी वारदात हुई और न ही समूचे देश में और ऐसे में अगर कश्मीर समस्या को सुलझाना है तो कश्मीर की समस्या का हल भी काश्मीर मे सरकार के रहते होते जाते दिखाई देता है न की बाहर रहने से।
आज जब कश्मीर में उबाल है तो पीडीपी भी ऐसे किसी भी बयान को देने मे और कोई कदम उठाने से पहले दस बार सोच रही है कि कहीं कोई गलत कदम से गठबंधन को फर्क तो नहीं पड़ेगा, मतलब मोदी की ऐसी चाल की चित भी मेरी और पट भी मेरी।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी नीतियों के बल पर कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के साथ साथ पीडीपी, अलगाववादियों, विरोधी ताकतों को घेर रखा है क्यूंकि मोदी जिन वादो को लेकर सत्ता में आए थे वो आज 26 महीने बाद भी पूरे होते दिखाई नहीं देते हैंं।
सरकार के पास 34 महीने अभी और बाकी है ऐसे में आकलन किया जाए तो कश्मीर और विदेश नीति ही है जिसमे भारत को फिलहाल ठीक ठीक सफलता मिली है, भारतीय सेना के द्वारा म्यामार के अंदर किया गया ऑपरेशन हो, सीरिया से भारतीयों को निकालने का ऑपरेशन या हाल ही मे दक्षिण सूडान से भारतीयों को निकालने का ऑपरेशन जिसके कसीदे तो पढे जा सकते है।
परंतु अब तक न तो विदेश से काला धन लाने में मोदी सरकार कोई खास सफलता हाथ लगी है और न ही महंगाई को कम करने में। अच्छे दिनों के सपने तो फिलहाल सपने में भी नहीं आ रहे हैं तो ऐसे मे भाजपा आने वाले केन्द्रीय चुनाव में जिन मुद्दों को लेकर जाएगी उसमे कश्मीर की समस्या को हल करने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाना ये एक मुद्दा हो सकता है और इस मुद्दे को भुनाने के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर कश्मीर समस्या को सुलझाने की दिशा मे एक नया कदम उठाएगी।
आज जब पूरे जुलाई के महीने देश मे जनता के मन मे सवाल उठते रहे कि कश्मीर में चल क्या रहा है, ऐसे मे मोदी जी 31 जुलाई को मन की बात कार्यक्रम में कश्मीर को लेकर क्या बताएंगे?
पिछले एक महीने मे कश्मीर से तमाम तरह की बाते जो सोशल और मेनस्ट्रीम मीडिया के जरिये सामने आई है मसलन भारतीय सेना आतंकियों को ढूंढ ढूंढ का मार रही है। भारतीय सेना कश्मीर के निर्दोष परिवारों को अपना निशाना बना रही है, तो एक जिज्ञासा बनती है कि आखिर इन बातों की सच्चाई क्या है?
पाक और चीन मिलकर पाक अधिकृत कश्मीर मे सयुंक्त मार्च पास्ट कर रहे हैं, भारत सरकार द्वारा पूरे घाटी क्षेत्र मे कर्फ़्यू लगाया जाता है मीडिया पर पाबंदी लगाई जा रही है, इंटरनेट काटा जा रहा है तो सवाल ये बनता है कि घाटी मे 1999 के बाद क्या एक बार फिर जंग का माहौल है?
इसी दौर में जब कश्मीर मे माहौल संवेदनशील बना हुआ है तब चीन उत्तराखंड के चमौली क्षेत्र मे 200 मीटर अंदर तक आकार चहल कदमी कर रहा है, तो क्या पाक और चीन मिलकर भारत को घेरने मे लगे हैं तो इन सब के बीच सीधा सवाल ये निकल कर आता है कि मोदी जी बताइये की तमाम कूटनीतिक बिसातों के बावजूद आखिर काश्मीर में क्या चल रहा है?
सत्येंद्र खरे