नई दिल्ली। विधानसभा चुनावों में सियासी रंग गहराने लगा है। 7 फरवरी को होने वाले चुनावों के अब अन्तिम चरण में सभी पार्टियां पूरा जोर लगा रही हैं। भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री मोदी के लिए यह नाक की लड़ाई है तो कांग्रेस के लिए घर वापसी की तो वहीं, आम आदमी पार्टी अपना परचम फहराने की तैयारी में है।
चुनाव प्रचार के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने शनिवार को यहां अपनी पहली रैली कर भाजपा के लिये वोट मांगे। कडक़डड़ूमा की रैली में खासी भीड़ इक्कठी हुई। दिल्ली का किला फतह करने के लिए भाजपा कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती और उसने बेदी को बतौर मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर इस लड़ाई को और रोचक बना दिया
चुनावी रण से महज कुछ दिन पहले ही बेदी को सामने लाकर भाजपा ने एक ओर जहां आम आदमी पार्टी के लिए इस लड़ाई को और मुश्किल बना दिया है, वहीं प्रधानमंत्री मोदी से भी उसे काफी उम्मीदें हैं लेकिन उसे लेकर पार्टी में अभी उहपोह जारी है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को समझ नहीं आ रहा कि वे चुनाव में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनी किरण बेदी को आगे रखे या प्रधानमंत्री मोदी के चहरे को।
आम आदमी पार्टी के साथ कांटे की टक्कर में बेदी के नाम के दांव से खास लाभ न मिलता देख पार्टी ने चुनाव में एक बार फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगने की चाल चली है। हालांकि, बेदी पहले की तरह प्रचार करती रहेंगी, मगर पार्टी नेतृत्व ने चुनाव प्रचार के लिये उतारे गये बड़े नेताओं को मोदी के नाम पर ही वोट मांगने का निर्देश दिया है। यह भी तय किया गया है कि अगर मोदी की चार रैलियों में भीड़ जुटी तो पार्टी उनकी रैलियों की संख्या भी बढ़ा सकती है।
पार्टी में अंदरखाने अब वरिष्ठ नेता स्वीकार कर रहे हैं कि बीते चार विधानसभा चुनाव की तरह दिल्ली में भी महज मोदी को चेहरा बनाया जाना ज्यादा कारगर रणनीति साबित होती। पार्टी की मुश्किल यह है कि बेदी को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद भाजपा और संघ के कार्यकर्ता भी दिल से चुनाव प्रचार में खुद को नहीं झोंक रहे। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने तो न केवल केन्द्रीय मंत्रियों और नेताओं को एक-एक विधानसभा सीट की जिम्मेदारी दी है, बल्कि यह भी कहा कि संबंधित सीटों पर हार-जीत की जिम्मेदारी उनकी ही मानी जायेगी।