नागपुर। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को कहा जम्मू एवं कश्मीर को पूरी तरह भारत में मिलाने के लिए संविधान में संशोधन करने की मांग की। भागवत का बयान ऐसे समय पर आया है, जब देश में अनुच्छेद 370 पर बहस छिड़ी हुई है। यह अनुच्छेद जम्मू एवं कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करता है।
आरएसएस स्वयंसेवकों को 92वें स्थापना दिवस पर संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि 1947 में पश्चिम पाकिस्तान से राज्य में पलायन कर आए हिंदू भारत में रहने और हिंदू बने रहने के अपने निर्णय के कारण शरणार्थियों की एक दयनीय स्थिति में हैं।
भागवत अनुच्छेद 35(ए) जैसे कुछ खास संवैधानिक प्रावधानों को जिम्मेदार ठहराया, जो जम्मू एवं कश्मीर के निवासियों को परिभाषित करने की शक्ति राज्य विधानमंडल को देता है और इन हिंदू प्रवासियों को ‘पिछड़ेपन की जिंदगी’ देता है।
उन्होंने कहा कि यह सिर्फ इसलिए हो रहा है, क्योंकि जम्मू एवं कश्मीर राज्य में भेदभावपूर्ण प्रावधानों ने उन्हें मौलिक अधिकारों से वंचित किया था। उन्होंने ऐसी स्थिति बनाने का आग्रह किया, जहां वे एक सुखी, सम्मानजनक और सुरक्षित जीवन जी सकें। साथ ही वे अपने धर्म और राष्ट्रीय पहचान के प्रति समर्पित हो सकें।
अनुच्छेद 35 (ए), जो गैर-निवासियों को राज्य में संपत्ति खरीदने से, सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने से, जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा चुनाव में मतदान करने से रोकता है। इस अनुच्छेद को निरस्त करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका पर बहस चल रही है।
भागवत ने कश्मीरी पंडितों के बारे में भी बात की, जो 1990 के दशक में एक सशस्त्र बगावत के बाद घाटी से चले गए थे। उनके हालात के बारे में उन्होंने कहा कि उनकी स्थिति ‘यथावत बनी हुई है’।
उन्होंने कहा कि वर्षों से व्यवस्थित और झूठे प्रचार के माध्यम से बनाए गए अलगाव और अशांति के जहर को खत्म करने के लिए, समाज को इन सकारात्मक कार्यों के माध्यम से स्वाभाविक स्नेह दिखाना होगा।