हमारे यहां धोने धुलाने की प्राचीन परम्परा रही है। इसलिए कई जगहों पर “धोबी घाट” पाए जाते हैं। इन घाटों पर जिस ढंग से कपड़ों की धुलाई होती थी, उससे “धोबी पछाड़” नामक विधा ने जन्म लिया, जिसकी मदद से अपने से मज़बूत आदमी को धोया जा सकता है।
हालांकि अपने स्कूलिंग टाइम में हम भी लोगों को धोने के लिए कुख्यात रहे हैं। कारण कि गुरूजी लोग हमको तबीयत से धोते थे, और झेंप मिटाने के लिए हम दाएं – बाएं किसी को भी धो देते थे। फिर धोने धुलाने के मामले में सुधार हुआ और धोबी लोग के कॉम्पटीशन में “लॉन्ड्री” आ गई।
यहां कपडे मशीन से धुलते थे और ज़्यादातर ड्राईक्लीन होते थे, मतलब बिना पानी के सूखे सूखे धुल कर चमक जाते थे। पर ये महंगा सौदा था, इसलिए हर कपडे लॉन्ड्री में नहीं जाते थे। पर मां को लॉन्ड्री बोलना आ गया था, लिहाजा कहती थी, कपडे लॉन्ड्री करा लाओ।
हालांकि ले के मैं अपने पारिवारिक धोबी के पास ही जाता था, जो धोने “धोबी घाट” ही ले जाया करता था। इस तरह मेरे जीवन में लॉन्ड्री का प्रवेश हुआ। मैंने सुना है पहले अमीर लोगों के सूट विदेशों में धुलने जाते थे। और खुद तो वो जाते ही थे।
ये इतनी कहानी इसलिए कि कल मेरे एक पत्रकार मित्र ने हुलस कर बताया, ये इसलिए लिख रहा हूं कि आपको पता हो कि पत्रकार भी मेरे मित्र है। ( थोड़ा रुआब रहे ) … हां तो बताया कि मनी लॉन्ड्रिंग का एक बड़ा केस हुआ है। मैं तो सर पकड़ कर बैठ गया। ससुर, यहां कपडे धुलाने के पैसे नहीं हैं, ये अमीर लोग पैसा धुलवा रहे हैं।
तो मेरे पत्रकार मित्र ने समझाया – कारण कि वो पढ़े लिखे हैं। वैसे पत्रकार पढ़े लिखे ही होते हैं। तो उनने बताया कि जिन बड़े लोगों के नाम आए हैं, उनके पास बहुत सारी काली कमाई है। वो उसको सफ़ेद करने के लिए विदेशों में फर्जी कम्पनी बनाते हैं। काली कमाई उनमे लगाते हैं। फिर इधर उधर कर के सफ़ेद कर लेते हैं।
हम कहे कम्पनी तो हम भी बनाए हैं, पर ससुर कोई हज़ार रुपए का ब्लैक मनी ले कर भी नहीं आया। तो उन्होंने कृपा कर के समझाया कि तुम नंबर 2 की कम्पनी बनाओ। नंबर 2 का पैसा नंबर 2 की कम्पनी में ही लगता है। तब मुझे नंबर 2 का महत्त्व समझ में आया।
सच बोलूं तो एक नंबर के काम कर के बहुत ही पछताया। अब मैं 2 नंबर की कम्पनी बनाने जा रहा हूं। आपके, आपके इष्ट मित्रों की काली कमाई का स्वागत है। और हां, मंत्री जी के कड़क बयानों से डरिये मत, क्यों कि आजकल “राजनीतिक जुमला” भी फैशन में है। तो चले आइये और काला धन सफ़ेद करवाइये।
– प्रशांत श्रोत्रिय