सिरोही। सिरोही नगर परिषद चुनावों के लिए के लिए शनिवार को मतदान हो गया। वैसे मतदाताओं का रूझान आंकना थोडा मुश्किल रहा, लेकिन जातिगत गणित, पार्षद प्रत्याशियों की साख, नगर परिषद में काबिज कांग्रेस और प्रदेश व देश में काबिज भाजपा के कामकाजों के आधार पर जो परिदृश्य बनता नजर आ रहा है उसमें दोनों प्रमुख दल सिरोही नगर परिषद में सभापति, उपसभापति तथा बोर्ड बनाने के लिए आवश्यक 13 पार्षदों के आंकडे से दूर नजर आ रहे हैं, दोनों ही पार्टिंयां बहुमत से तीन-पांच सीटें नजर आ रही हैं।
इधर, निर्दलीयों के भी चार वार्डों में जीतकर आने की संभावनाएं हैं। वैसे सभापति की सीट ओबीसी की होने के कारण विधानसभा और लोकसभा चुनावों में सामने आया ओबीसी एकता का नारा नगर परिषद चुनावों में बिखरता नजर आया। अपनी जाति के वर्चस्व को बढाने के लिए ओबीसी जाति के ही प्रमुख लोग ओबीसी में शुमार दूसरी जाति के सभापति पद के प्रमुख दावेदारों की राह में कांटे बिछाने के लिए रणनीति बनाते दिखे।
वैसे इस मामले में सबसे विकट स्थिति से भाजपा गुजर रही है, जहां पर कई सारे सभापति के दावेदार नजर आ रहे हैं, ऐसे में ओबीसी की एक जाति के व्यक्ति को सभापति का आधिकारिक उम्मीदवार घोषित किए जाने पर दूसरी जाति के पार्षदों की क्राॅस वोटिंग होने की सबसे ज्यादा आशंका नजर आ रही है। सिरोही नगर परिषद में जिला परिषद और सिरोही पंचायत समिति के पांच साल पहले वाले इतिहास के दोहराव की आशंकाएं साफ दिख रही है।
मतदान के बाद सामने आई परिस्थितियों से तीन निर्दलीय भी सभापति के प्रबल दावेदार नजर आ रहे हैं, ऐसे में बहुमत से दूर रहने पर कांग्रेस के किसी निर्विवाद निर्दलीय उम्मीदवार को भी सहयोग देकर सभापति बना सकती है। बहरहाल कांग्रेस अपनी साख फिर से नहीं पा पाई है और प्रदेश के राज्यमंत्री और सिरोही विधायक ओटाराम देवासी के कई जगह हुए विरोध से यह भी इशारा मिल रहा है कि भाजपा भी अपना बोर्ड बनाने के लिए दूसरों पर निर्भर रहेगी। वैसे यदि गोयली फैक्टर काम नहीं किया तो पैलेस रोड के दक्षिणी हिस्से में स्थित शहर के वार्डों से ही सभापति पद के 9 उम्मीदवार सामने होंगे, इनमें से पांच भाजपा के सभांवित हैं और गोयली फैक्टर काम कर गया तो भाजपा की सीटें भी दस से कम मे सिमट जाएगी, लेकिन इस पर भी दोनों राष्ट्रीय पार्टियों को निर्दलीयों की आॅक्सीजन की जरूरत होगी।
गिर सकते हैं कई पुराने पार्षदों के विकेट
सिरोही नगर परिषद चुनावों में फिलहाल वर्तमान सभापति समेत 16 पार्षद और उनके रिश्तेदार खडे हुए है। पिछले बोर्ड मे हुए भ्रष्टाचार, इनकी अकर्मण्यता, काम के प्रति इनकी लापरवाही, मुददो के प्रति समझ का अभाव और मुददे उठाकर चुप बैठने के पीछे की इनकी नीयत भांप चुके सिरोही के मतदाता इस बार वर्तमान बोर्ड में शामिल एक दर्जन जनप्रतिनिधियों के राजनीतिक भविष्य की हत्या करने के मूड में भी नजर आए। हालत यह दिखी कि सबसे अजय सीट वाले पार्षद के चेहरे से भी शनिवार को मतदान के दौरान हवाइयां उडी हुई नजर आई, वहीं एक पार्टी की महिला प्रत्याशी को तो उनके वार्ड के पार्टी कार्यकर्ताओं ने पूरी तरह से अकेला छोड दिया था, एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान उनके वादे मुकरने का परिणाम इस बार उन्हें चुनाव मे भुगतना पड सकता है।
खुद ही ट्रेप हुए पुराने पार्षद
पिछले बोर्ड में जो अनियमितताएं हुई और जिस तरह से हर बार हंगामे का फिक्स मैच खेलकर इन लोगों ने पार्टी की साख गिराई, उसे देखते हुए इस बार टिकिट वितरण में ऐसे लोगों को ट्रेप किए जाने की आशंकाएं जताई जा रही है। कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ताओं की मानें तो पार्टी को पता है कि फिलहाल उसकी स्थिति ठीक नहीं है। ऐसे में उसने पुराने पार्षद और उनके परिवार वालों को मनचाहे स्थानों से टिकिट दिए।
इन लोगों को कयास है कि यह एक ऐसा जाल था जिसमें फंसने के लिए पूर्व पार्षद खुद ही तैयार हो गए थे। कांग्रेस के व अनुभवी नेता पुराने पार्षदों के इस निर्णय को अपरिपक्व और आत्मघाती भी बता रहे हैं, इनका मानना है कि इन लोगों ने ऐसे इलाकों से कांग्रेस के टिकिट मांग लिए जहां से कांग्रेस के प्रत्याशियों के जीतने की संभावनाएं क्षीण होती हैं। अगर कांग्रेस के अनुभवी लोगों की शंकाएं सही निकली तो पार्टी को कई पुराने पार्षदों से हाथ धोना पड सकता है, वैसे कांग्रेस ने अपना बी गेम भी खेला है।
आशंका यह भी जताई जा रही है कि कांग्रेस ने बोर्ड पर अपना कब्जा जमाने के लिए कई वार्डो में जातिगत समीकरण तोडने के लिए भाजपा की जाति वाली जाति के प्रत्याशी को ही अपना टिकिट देते हुए अपने विश्वसनीय लोगों को निर्दलीय के रूप में भी खडा किया है। इतना ही नहीं कांग्रेस की परम्परागत और सुरक्षित सीट पर इस बार शक के दायरे में रहे किसी भी पुराने पार्षद को टिकिट नहीं दिया जबकि यह सीटें सामान्य थी। यहां पार्टी ने ऐसे ही लोगों को उतारा है जिनकी निष्ठा पर उन्हें विश्वास था।