मुंबई। मुबारक बेगम का जन्म राजस्थान के चूरू जिले के सुजानगढ़ कस्बे में वर्ष 1940 में हुआ था। मुबारक बेगम को गाने का शौक बचपन से था। गरीबी के कारण परिवार उन्हें स्कूली शिक्षा नहीं दिला सका। निरक्षर होते हुए भी वह पार्श्वगायन के क्षेत्र में बुलंदी तक पहुंचीं।
मुबारक बेगम ने संगीत की प्रारंभिक तालीम किराना घराने के उस्तादों से पाई। मुबारक बेगम को पार्श्वगायन का पहला अवसर पचास के दशक में ऑल इण्डिया रेडियो में मिला। मुबारक बेगम ने फिल्मी दुनिया में प्रवेश के पहले दो अवसर गंवाए। पहली बार संगीतकार रफीक गजनवी ने अपनी फिल्म में गाने का अवसर दिया।
स्टुडियो की भीड़भाड़ देखकर वह घबरा गईं और बिना गाए घर लौटी। इस प्रसंग के कुछ दिनों बाद राम दरयानी ने उन्हें अपनी फिल्म में गाने का अवसर दिया। इस बार भी वे सफल नहीं रहीं। दो अवसर चूकने वाली मुबारक बेगम को तीसरा अवसर फिल्म अभिनेता याकूब ने दिया।
वर्ष 1949 में प्रदर्शित फिल्म आइये में मुबारक बेगम ने अपना पहला गीत मोहे आने लगी अंगड़ाई। गाया। वर्ष 1951 में प्रदर्शित फिल्म ‘फूलों का हार’ से बतौर पार्श्वगायिका मुबारक बेगम कुछ हद तक अपनी पहचान बनाने में कामयाब रही। मुबारक बेगम को बड़ा ब्रेक वर्ष 1958 में फिल्म मधुमति के गाने ‘हाले दिल सुनाइए से…’ मिला।
पचास के दशक में मुबारक बेगम ने उस जमाने के कई नामचीन संगीतकारों के लिए पार्श्वगायन किया। इनमें गुलाम मोहम्मद, नौशाद, सरदार मलिक, सलिल चौधरी प्रमुख थे। मुबारक बेगम भले ही पढ़ी लिखी नहीं थीं, लेकिन गीत रिकॉर्डिंग के पहले उसे दो बार किसी से पढ़वा लेती थीं। उन्हें एक-एक शब्द कंठस्थ हो जाता था।
वर्ष 1961 में प्रदर्शित फिल्म केदार शर्मा की फिल्म ‘हमारी याद आएगी’ के टाइटल गीत ‘कभी तन्हाइयों में हमारी याद आएगी’ ने लोकप्रियता के नए कीर्तिमान स्थापित किए। इसके बाद मुबारक बेगम ने वर्ष 1963 में प्रदर्शित फिल्म ‘हमराही’ का गीत ‘मुझको अपने गले लगा लो’ गाकर श्रोताओं का दिल जीत लिया।
सत्तर के दशक में मुबारक बेगम को काम मिलना काफी कम हो गया। जो गीत उनकी आवाज में रिकॉर्ड कराए गए थे, वह भी जब रिलीज हुए तब आवाज किसी और की थी। मुबारक बेगम ने एक बार साक्षात्कार में बताया था कि-‘परदेसियों से न अंखिया मिलाना'(जब जब फूल खिले) तथा ‘अगर मुझे न मिले तुम’ (काजल) मूल रूप से उनकी आवाज में रिकॉर्ड कराए गए थे। वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म ‘रामू तो दीवाना है’ में ‘सांवरिया तेरी याद में’ उनके द्वारा गाया गया गया अंतिम फिल्मी गीत रहा।
बेकारी के साथ मुफलिसी ने मुबारक बेगम का दामन थाम लिया। लेमिंग्टन रोड के बड़े फ्लैट का किराया चुका पाना मुश्किल होने लगा। सुनील दत्त ने उनकी मुश्किल को समझा और अपने प्रभाव का उपयोग कर जोगेश्वरी में सरकारी कोटे से उनको एक छोटा-सा फ्लैट दिलवा दिया।
उन्हें सात सौ रुपए महीने की पेंशन भी मिलने लगी। मुबारक बेगम की आवाज के दीवाने उनकी दयनीय हालत देख कुछ न कुछ रुपए हर महीने उन्हें भिजवाते रहे। बेटा टैक्सी चलाने लगा। मुबारक बेगम को ‘फिल्मस डिवीजन’ ने याद किया।
वर्ष 2008 में उन पर एक वृत्तचित्र बनाया गया। इसे गोआ में हुए अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया था। मुबारक बेगम ने अपने चार दशक के करियर के दौरान लगभग 120 फिल्मों के लिए पार्श्वगायन किया। मुबारक बेगम के गाये गानों की फेहरिस्त में कुछ है।
देवता तुम मेरा सहारा (दायरा), नींद न उड़ जाए तेरी चैन से सोने वाले (जुआरी), हमें दइके सौतन घर जाना (ये दिल किसको दूं), वादा हमसे किया (सरस्वतीचंद्र), ऐ दिल बता (खूनी खजाना), ऐजी-ऐजी याद रखना सनम( डाकू मंसूर) आदि।