नैनीताल। एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गुरुवार को राज्य से राष्ट्रपति शासन हटा दिया है। हरीश रावत की कांग्रेस सरकार को 29 अप्रैल को बहुमत साबित करना होगा। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने हाईकोर्ट में राष्ट्रपति शासन को चुनौती दी थी। इधर,केंद्र सरकार हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने के कयास लगाए जा रहे हैं। उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद केन्द्र सरकार को भारी फजीहत झेलनी पड़ रही है। इस निर्णय के बाद हरीश रावत पूर्व की तरह उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री होंगे।
आसाम चुनाव प्रचार से लौटने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 26 मार्च को रातों रात केबीनेट की बैठक लेकर उत्तराखण्ड में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए प्रस्ताव लिया था। इसके बाद इस केबीनेट निर्णय को राष्ट्रपति को भेजा गया था, जिसके बाद प्रदेश में 27 मार्च को राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। नैनीताल हाई कोर्ट की डबल बेंच के सामने गुरुवार को चल रही सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश के एम जोसेफ ने केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा था कि क्या वह इस मामले में एक प्राइवेट पार्टी है। अदालत ने केंद्र सरकार से एक हफ्ते तक राष्ट्रपति शासन नहीं हटाने का भरोसा देने के लिए कहा है, लेकिन केंद्र सरकार ने अदालत में कहा कि वह इस बात की कोई गारंटी नहीं दे सकते कि राज्य से राष्ट्रपति शासन हटाया जाएगा या नहीं, तो हाई कोर्ट ने कहा, आपके इस तरह के व्यवहार से हमें तकलीफ हुई है।
अदालत ने कहा कि हम चाहते हैं कि फैसला आने तक राज्य में राष्ट्रपति शासन बना रहे लेकिन केंद्र सरकार अपने रवैये से हमें फैसले से पहले ही राष्ट्रपति शासन रद्द करने पर मजबूर न करें। न्यायाधीशों ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि यदि कल आप राष्ट्रपति शासन हटा लेते हैं और किसी को भी सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर देते हैं, तो यह न्याय का मजाक उड़ाना होगा।
-स्वामी ने कहा हटाएं साॅलिसिटर और एडीशनल साॅलीसिटर जनरल को
इधर, हाईकोर्ट में केन्द्र सरकार के निर्णय की हुई फजीहत पर भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी भी अपने आपको रोक नहीं पाए। उन्होंने इस हार में केन्द्र सरकार के निर्णय को गलत नहीं बताया। उन्होंने केन्द्र सरकार की दलीलें अदालतों में रखने वाले साॅलिसिटर जनरल व असिस्टेेंट साॅलीसिटर जनरल पर इसका ठीकरा फोड़ा और कहा कि इन्हें हटा देना चाहिए। ये लोग अदालत में केन्द्र सरकार के पक्ष को सही तरीके से नहीं रख पाए।