परीक्षित मिश्रा/सिरोही। हर साल चुनाव में सिरोही जिले में शुद्ध पेयजल का मुद्दा प्रमुख होता है। वास्तविकता यह है कि नर्मदा व माही के पानी लाने का जो दिवास्वप्न दिखाया जा रहा है, वैसा आसान नहीं है।
नर्मदा और माहीे के लिए हुई अंतरराज्यीय जल संधि में सिरोही का नाम तक नहीं है। वहीं सेई और बत्तीसा नाले का पानी सिरोही लाने की संभावना को राज्य सरकार विधानसभा जैसे उच्च सदन में नकार चुकी है। सबगुरु न्यूज ने इसकी संभावनाओं को देखने के लिए पड़ताल की तो कुछ और ही वास्तविकता सामने आई। लोकसभा में मई, 2012 में सांसद देवजी पटेल ने शून्यकाल में जब यह मामला उठाया था तो बाडमेर के सांसद हरीश चैधरी ने पहले इसका पानी बाडमेर तक पहुंचाने की बात कहते हुए आपत्ति भी दर्ज करवाई थी। ऐसे में तो एकदम नामुमकिन है कि बाडमेर का इसके पानी का वास्तविक लाभ पहुंचाये बिना सिरोही को पानी दे दिया जाये।
इसके अलावा सिरोही आज भी सूखा क्षेत्र नहीं है। दक्षिण पश्चिम राजस्थान में सिरोही ऐसा जिला है जहां पर औसत या उससे ज्यादा बारिश का आंकडा राष्ट्रीय और प्रदेश के रेकर्ड में दर्ज है। ऐसे में सिर्फ एक साल बारिश कम होने या नहीं होने के मुददे पर नर्मदा जल विवाद ट्रिब्यूनल को इस बात के लिए राजी नहीं किया जा सकता कि राजस्थान के हिस्से में आने वाले पानी को जालोर व बाडमेर के साथ सिरोही को भी दिया जाये। इसके बाद भी यदि संभावानाएं हैं तो इसके लिए प्रयास करने की सीधे तौर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी बनती है क्योंकि वही इस समिति की सदस्य होते हैं।
नर्मदा जल संधि
मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान के मध्य 12 जुलाई, 1974 को नर्मदा के जल के बंटवारे को लेकर संधि हुई। राजस्थान नर्मदा बेसिन में नही आता फिर भी इसके लिए 0ण्5 मिलीयन एकड फीट एमएएफ पानी देने पर सहमति हुई। यानि कि नर्मदा के पानी से लाभांवित होने वाले दो करोड अस्सी लाख एकड फीट क्षेत्र में से पांच लाख एकड क्षेत्रफल की सिंचाई की जाएगी। वो भी सिर्फ जालोर ओर बाडमेर के लिए। सिरोही का नाम तक नहीं है।
वास्तविकता : नर्मदा जल विवाद ट्रिब्यूनल में इस पानी का इस्तेमाल जालोर और बाड़मेर के सूखे इलाकों के लिए उपयोग में किए जाने का हवाला है। इसमें सिरोही को पेयजल सप्लाई का कोई जिक्र नहीं है, ऐसे में सिरोही को इसका पानी मिलना टेढ़ी खीर है। फिलहाल बाड़मेर के सूखे इलाकों में भी पानी की कमी से सही वितरण नहीं हो पा रहा है। सबसे पहले सिरोही के लिए पानी रिजर्व करवाने के प्रयास करने होंगे।
माही-बजाज संधि
10 अक्टूबर, 1966 को राजस्थान के तत्कालीन सिंचाई मंत्री नाथूराम मिर्धा तथा गुजरात के पब्लिक वर्क, पोर्ट और सिविल सप्लाई मिनिस्टर विजया कुमार त्रिवेदी ने माही जल बंटवारे को लेकर हस्ताक्षर किए। इसमें राजस्थान को सिंचाई के लिए 9 टीएमसी पानी मिलना तय हुआ था।
वास्तविकता: 15 जुलाई, 2014 को विधानसभा में जल संसाधन मंत्री ने इस पर विराम लगा दिया। उन्होंने बताया कि समझौते के अंदर सिरोही, जालोर, पाली, बाड़मेर और जोधपुर जिले के लिए पानी दिए जाने का कोई उल्लेख नहीं। यह पानी भी नहीं मिल सकता। और यही आधार नर्मदा का पानी सिरोही को मिलने के मामले में भी आता है, इस मूल संधि में भी मात्र जालोर और बाडमेर को पानी दिए जाने का उल्लेख है।
सेई बांध
उदयपुर जिले में साबरमती बेसिन पर बेकरिया में यह बांध बना है। 1975 में बांध स्वीकृत हुआ और 1978 में पूर्ण हुआ।
वास्तविकता: गत विधानसभा सत्र में इस पर तत्कालीन जल संसाधन मंत्री ने जवाब दे दिया कि माही से पानी लिफ्ट करके सिरोही के कालका बांध तक लाना फिजिबल नहीं है।
बत्तीसा नाला
आबूरोड में देलदर के पास यह प्रोजेक्ट प्रस्तावित है। इसका सर्वे चल रहा है। गुजरात में जाने वाले पानी को रोकने के लिए यह महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट हो सकता है।
वास्तविकता: विधानसभा में ही वर्तमान विधायक ओटाराम देवासी के सवाल के जवाब में जल संसाधन मंत्री ने लेवल में अंतर तथा दोनों का बहाव विपरीत दिशा में होने के कारण इसका पानी धांता व अणगौर बांध में डालने की संभावना से इनकार कर दिया है। इसे बनाने के बाद पेयजल के इस्तेमाल के लिए पाइपलाइनों या सुरंग से पानी लिफ्ट करवाकर लाया जा सकता है।
पानी का गणित
सिरोही जिले में 67 बांध हैं। 38 जल संसाधन तथा 29 पंचायतराज विभाग की देखरेख में है। यहां प्रतिवर्ष होने वाली बारिश का 43.49 प्रतिशत पानी जालोर और गुजरात में चला जाता है। पश्चिम बनास तथा सीपू बेसिन से 2926.43 एमसीएफटी पानी गुजरात तथा लूनी बेसिन से 69.13 एमसीएफटी पानी जालोर चला जाता है।
क्या करना होगा
इस पानी को रोकने के लिए योजनाएं बने। बत्तीसा नाला परियोजना पूर्ण करके इसका पानी पेयजल के लिए सिरोही लिफ्ट किया जाए, जिस तरह से बिसलपुर के पानी को ब्यावर व जयपुर के लिए वितरण की योजना बनी हैं। 43.49 प्रतिशत पानी को रोककर पांचों तहसीलों के पेयजल व सिंचाई की आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है।
स्थानीय जल संसाधन विभाग के अधिकारियों ने भी बताया कि एक पत्रावली में बत्तीसा नाले के पानी के संबंध में विधानसभा में पूछा जवाब है। उन्होंने बताया कि वाटर इंजीनियरिंग व गुरुत्वाकर्षण के हिसाब से बत्तीसा नाले का पानी अणगोर व धांता में लाना संभव नहीं है। लिफ्ट करके पाइप के माध्यम से लाया जा सकता है और यह भी माना कि माही व सेई का पानी लाना भी फिजिबल नहीं है।
प्रमुख बेसिन उपलब्ध जल अबतक उपयोग प्रस्तावित कुल उपयोग शेष
पश्चिम बनास 8948.36 3732.40 2358.66 6091.06 2857.30
सीपू (सूकली) 2885.53 2470.05 346.35 2816.40 69.13
लूनी 5609.27 3650.31 591.50 4241.81 1367.46
कुल 17443.16 9852.76 3296.51 13149.27 4293.89