सबगुरु न्यूज। संसार में नकारात्मक शक्ति का साम्राज्य होने पर चहुं ओर हाहाकार मच जाता है क्योंकि इन नकारात्मक शक्तियों में सर्वत्र विध्वंस मचाने का ही गुण होता है। कोई भी प्राणी अपनी इच्छा के अनुसार नहीं रह सकता है और चारों तरफ मार काट मच जाती हैं।
ऐसे में सकारात्मक शक्ति एक करिश्मा करती है तथा अपनी सूझ बूझ से नकारात्मक शक्ति का अंत कर देती हैं। सर्वत्र सकारात्मक शक्ति पूजी जाने लगती है। देवी भागवत पुराण की कथा में देवी शक्ति असुरों को मारकर देवों का फिर से राज्य रोहण करती हैं। इस उपलक्ष में नौ दिन देवी की उपासना की जाती है और नवरात्रा के नाम से जानी जाती।
खडंग हाथ ले चली भवानी महिषासुर संहार करे…
हे मां तेरी महिमा गा सकने की किसमें शक्ति समायी है, क्योंकि वाणी भी थककर मौन हो जाती है, शेषनाग हजारों जुबानों से तेरे गुण का गान करने में असमर्थ है, तो हे मां हम जैसे तुच्छ जीव तेरे गुणगान करने में कैसे समर्थ हो सकते हैं। देव, दानव या फिर मानव कोई भी हो सभी को तुमने सदा ही संकट से ऊबारा है।
सृष्टि में जब महिषासुर नामक दैत्य पैदा हुआ तब उसने अपने बाहुबल से समस्त देवों को स्वर्ग से विहीन कर दिया तथा अपने नाम का डंका सर्वत्र बजवा दिया।
सम्मत देव जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश को भी युद्ध मे ले गए तब भी वो महिषासुर अजेय रहा तथा समस्त देव गुफाओं, वनों में जाकर छिप गए।
महिषासुर दनु के पुत्र करमभ ने शक्तिशाली पुत्र की प्राप्ति हेतु ब्रह्मा जी की आराधना की तथा प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने कहा जाओ और शादी कर लो। करमभ जब जा रहा था तब एक नव यौवना महिषी उसे दिखाई दी। उसका दिल महिषी पर ही आ गया और महिषी के गर्भ ठहर गया।
कुछ समय बाद एक महिष उधर आया और महिषी के चक्कर में उसने रमंभ को मार डाला। जब रमंभ की चिता जल रही थी तब वह महिषी चिता में कूद गई और उस आग से महिषासुर व रक्तबीज पैदा हुए।
महिषासुर बहुत शक्तिशाली था तथा ब्रह्मा जी से वरदान ले लिया था कि वह केवल स्त्री के हाथ ही मर सकता है। विशाल सेना व दानवों के साथ उसने स्वर्ग को जीत लिया तथा स्वर्ग में सभी दानव राज करने लगे।
सभी देव त्रिदेवों के साथ मिलकर एक योजना बनाई महिषासुर को मारने के लिए । नारायण की सलाह से सभी देवो ने अपने अपने शक्ति अंश से एक महाशक्ति का निर्माण किया तथा सभी ने देवी को वस्त्र और आभूषण व अस्त्र प्रदान किए।
सभी देवों की शक्तिमहापुुंज से निर्मित वह देवी महालक्ष्मी कहलायी। महालक्ष्मी सिंह की सवारी पर सवार होकर महिषासुर को मारने के लिए निकल गई। अतिबलशाली महिषासुर मूर्खता से भगवती के रूप पर मोहित हो गया।
महिषासुर ने अपने सभी सेनापति को भेजा ताकि वो शादी के लिए मान जाए। दैवी ने सभी को युद्ध मे मार डाला। अंत में देवी, महिषासुर से युद्ध करने लगी।
महिषासुर युद्ध करते समय कई रूप धारण करके लडने लगा, अंत मे महिषासुर ने अत्यंत भीषण और बलवान आठ पैरों वाले शरभ का रूप धारण कर लिया। उस शरभ को देख देवी जगदम्बा ने अतिशय क्रोध में भरकर उसके मस्तक पर खडंग से आघात किया ओर थोड़ी देर रूक कर जगदम्बा अपने चक्र से उसकी गर्दन काट दी तथा महिषासुर की जीवन लीला समाप्त कर दी।
शक्तिशाली मानव जब पशुओं की तरह व्यवहार करने लग जाता है तब संस्कृति व समाज को एक दम बदलने की नाकाम कोशिश करता है ताकि सृष्टि का संचालन वह अपने तरीके से कर सके ना कि प्रकृति के न्याय सिद्धांतों के अनुसार। उसकी यही भूल समाज संस्कृति के पतन का कारण बन जाती है तथा सभी को विखंडित कर देती है।
सौजन्य : भंवरलाल
https://www.sabguru.com/navratri-2017-worship-of-devi-durga-holds-importance/