सबगुरु न्यूज। शक्ति और शक्तिमान को अर्थात शिव और शक्ति को अभेद मानते हुए प्राणी को नवरात्र में शक्ति की आराधना करनी चाहिए, इस आराधना से व्यक्ति अपने आप को ऋतु परिवर्तन के अनुसार स्वत: ही ढाल लेता है। इस तरह से उसके शरीर की आन्तरिक ऊर्जा जो कहीं केन्द्रित है उसके विकेन्द्रीकरण से पूरा शरीर प्रकाशमान होकर आनन्दित हो जाता है।
योगीजन ओर विद्वान इसे उच्चतम भाषा मे कुण्डली जागरण कहते हैं। शरीर के भीतरी ऊर्जा चक्रों का भेदन और कुण्डली जागरण विद्वानों का ही विषय है तथा जिसकी कुण्डली जागृत हो, वे ही बता सकते हैं।
एक सामान्य प्राणी जो विद्वता से नहीं जुडा हो वह भी अपनी आस्था और श्रद्धा के बलबूते नवरात्र काल में शक्ति को किसी न किसी रूप से पूजकर नौ दिन में अति आनन्दित हो जाता है, उसका वह आनंद ही कुण्डली जागरण है।
प्रकृति की शक्तियां सभी की है क्योंकि हम सभी की उत्पत्ति का कारण ही प्रकृति है। हर ऋतु काल में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में वह अपनी ऊर्जा को बिखेरती हुई सजीव और निर्जीव सभी को प्रभावित करती है। जो इन ऋतुओ की ऊर्जा के अनुसार नहीं रहता है तो प्रकृति उनका संतुलन स्वत: ही स्वास्थ्य में प्रभाव डाल कर देती है और प्रकृति की यही संतुलन करने की क्रिया ही ईश्वरीय शक्ति कहलाती है।
धार्मिक ग्रंथों में शक्ति को ही जगत का आधार माना गया है, यदि जगत से शक्ति शून्य हो जाए तो सभी की स्थिति शव के समान हो जाएगी और यह सब पृथ्वी के प्रलय काल से ही संभव है या फिर क्षेत्र विशेष मे विध्वंस के काल में।
जगत में सदा मंगल करने वाली, सभी की विघ्न बाधा को दूर करने वाली जो इस जगत की आधार है उस जगत जननी की हम शरण में हैं, वह सदा ही हमारा कल्याण करेगी।
सौजन्य : भंवरलाल