नवाज शरीफ के पुरखे मूलत: कश्मीरी पंडित थे। कोई 100-125 साल पहले मुसलमान बन गए थे। वे कश्मीर से अमृतसर के पास जट्टी उमरा गांव में जाकर बसे थे।
उधर, राहील शरीफ के पूर्वज राजपूत हैं। वे अब भी अपने को बड़े फख्र के साथ राजपूत बताते हैं। इनके पुरखे भी हिन्दू ही थे। इसके बावजूद दोनों घोर भारत विरोधी हैं। बस, दोनों के नामों में “शरीफ” आना संयोग मात्र ही माना जाएगा।
उरी हमले के बाद कायदे से दोनों को अपने देश में चल रहे आंतकी शिविरों को ध्वस्त करना चाहिए था। पर बेशर्मी की हद देखिए, कि दोनों ही भारत को कोसते रहे। नवाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र में उरी की घटना के लिए कश्मीर में बुरहान की मौत के बाद पैदा हुए हालातों को जिम्मेदार घोषित कर दिया।
हालांकि वहां पर उनका भाषण सुनने के लिए 50 लोग भी उपस्थित नहीं थे। उधर, राहील शरीफ बार-बार कहते रहे हैं कि उनका देश भारत से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार है। नवाज शरीफ के कुछ मंत्री भी युद्धोन्माद का माहौल बनाते रहे।
क्या जिस देश के लाहौर और कराची जैसे शहरों में रोज दस-दस घंटे बिजली न आती हो, जहां बेरोजगारी लगातार संक्रामक बीमारी की तरह फैल रही हो और जिधर विदेशी निवेश नाम-निहाद आता हो, वह देश भारत जैसी विश्व शक्ति से लड़ने के लिए क्या तैयार हो सकता है? कतई नहीं। दरअसल पाकिस्तान युद्ध के लिए तैयार नहीं है। हां, वह बंदरभभकी ज़रूर दिखाता है।
नवाज शरीफ सन 2013 में पाकिस्तान के वजीरे आजम की कुर्सी पर फिर से बैठे। बावजूद इसके कि नवाज शरीफ और उनके अनुज शाहबाज शरीफ, जो पाकिस्तान के पंजाब सूबे के मुख्यमंत्री हैं, पर करप्शन के अनेकों केस थे।
शरीफ परिवार के लिए कहा जाता है कि इनके लिए पाकिस्तान ही इनका खानदान है। इनका बड़ा औद्योगिक घराना भी है। ये जनता को झूठे सब्जबाग दिखा कर ही पिछले संसद का चुनाव जीते थे। वजह मोटे तौर पर ये भी थी कि जनता पाकिस्तान पीपल्स पार्टी से नाराज थी। इसके चलते मुस्लिम लीग (नवाज) ने फतेह दर्ज कर ली। इमरान खान की पार्टी कभी बड़ा उलटफेर करने की स्थिति में नहीं थी।
कायदे से नवाज शऱीफ को देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सघन प्रयास करने चाहिए थे। लेकिन, उनसे यह हो न सका या उन्होंने इसके लिए प्रयास ही नहीं किए। पाकिस्तान में मुद्रास्फीति से अवाम का बुरा हाल है और विकास की रफ्तार भी लगातार घट रही है। ग्रोथ रेट 3 फीसद से नीचे चल रही है। इसके बावजूद नवाज शरीफ और राहील शरीफ जंग के मैदान में उतरना चाहते हैं।
वे भूल गए कि जंग होने की हालत में पाकिस्तान की जनता तो भूखों मर जाएगी। लेकिन, गैर-जिम्मेदारी का आलम ये है कि वे फिऱ भी भारत से युद्ध करने के लिए अपने को तैयार बताते हैं।
नवाज शरीफ एक सड़कछाप किस्म के इंसान हैं। भाग्य की खा रहे हैं। वे युगदृष्टा तो छोड़िए, प्रखर वक्ता तक नहीं हैं। उनसे बेहतर वक्ता तो बेनजीर भुटटो थीं। इमरान खान भी उनसे बेहतर ही नजर आते हैं।
नाराज बांग्लादेश
प्रधानमंत्री बनने के बाद नवाज शरीफ सरकार से भारत तो छोड़िए, कभी उनका हिस्सा रहा बांग्लादेश भी दूर हो गया है। बांग्लादेश लगातार पाकिस्तान पर उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के आरोप लगा रहा है।
कारण ये है कि बांग्लादेश आजकल सन 1970 के बाद ईस्ट पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेनाओं का साथ देने वालों को लगातार दंड दिया जा रहा है। इन गुनाहगारों ने पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर अपने ही देश के लाखों मासूमों का कत्ल कर दिया था।
जब उन गुनाहगारों को फांसी पर लटकाया जाता है, तो पाकिस्तान को तकलीफ होती है। यानी जिनके हाथ खून से रंगे हैं, उन्हें नवाज शरीफ सरकार समर्थन दे रही है। इसके बावजूद दुनिया शरीफ पर कोई कठोर कदम नहीं उठाती।
मारे जाते गैर-सुन्नी
इसके अलावा दोनों शरीफों, (माफ करें बदमाशों ने) कभी अपने मुल्क के अल्पसंख्यकों के हक में कोई कदम नहीं उठाया। पाकिस्तान में सुन्नियों के अलावा सब असुरक्षित हैं। सब मारे जा रहे हैं। शिया, अहमदिया, ईसाई, सिख, हिन्दू भी। लाहौर से लेकर पेशावर तक ईसाई मारे जा रहे हैं।
विभिन्न देशों में बसे पाकिस्तानी अपने देश में वापस जाने से पहले दस बार सोचते हैं। मुझे हाल ही में अपनी लंदन यात्रा के दौरान एक नौजवान पाकिस्तानी वकील मिला। कहने लगा, वह पाकिस्तान जाने से डरता है। वहां पर कभी भी, किसी का भी कत्ल हो जाता है।
एक दौर में नवाज शरीफ दावा करते थे कि इस्लाम और मुल्क के संविधान के मुताबिक, अल्पसंख्यकों को जिंदगी के सभी क्षेत्रों में मुसलमानों के बराबक हक मिलता रहेगा। लेकिन वे सारे वादे धूल में मिल चुके हैं। वहां पर गैर-मुसलमानों के लिए सामाजिक दायरा घटता जा रहा है।
किसी भी सरकार ने उनके हक में बड़े कदम नहीं उठाए। उदाहरण के रूप में पाकिस्तान की पहली कैबिनेट के हिन्दू सदस्य जोगेन्द्र नाथ मंडल और मुल्क का तराना लिखने वाले जगन्नाथ आजाद अंतत: मजबूरी में पाकिस्तान को छोडऩा पड़ा था। इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि वहां पर अल्पसंख्यक कहां खड़े हैं।
राहील शरीफ की भारत से खुंदक तो एक मिनट के लिए समझ आती भी है। उनके अपने अग्रज 1971 की जंग में भारतीय सेना के हाथों मारे गए थे। वे कश्मीर के पत्थर फेंकने वाले प्रदर्शनकारियों के हक में बोलते हैं।
पर शराफत के दुश्मन राहील शरीफ पाकिस्तान में मजे से रहने वाले जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक और नेता अजहर मसूद को कुछ नहीं कहते। जैश-ए-मोहम्मद, जिसे संक्षेप में जैश भी कहते हैं, पाकिस्तान अधिग्रहित कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठन है। जैश पर पठानकोट में हमले का आरोप है।
यहीं नहीं, मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड
हाफिज़ सईद भी लाहौर में खुले आम भारत के खिलाफ जंग का आहवान करता है। पर राहील शरीफ चुप रहते हैं। चुप ही रहेंगे, आखिर इन दोनों को पाकिस्तानी सरकार और सेना का संरक्षण प्राप्त है।
दरअसल प्रधानमंत्री नवाजशरीफ और आर्मी चीफ राहील शरीफ कतई “शरीफ” नहीं हैं। नवाज शरीफ अपने देश के अवाम का मूल मसलों से ध्यान हटाने के लिए ही भारत को किसी न किसी रूप में दोषी ठहराते रहते हैं।
पाकिस्तान में पिछले दिनों हुए हालिया कई बम धमाकों के लिए नवाज शरीफ भारत की खुफिया एजेंसी रॉ को दोष देते रहे हैं। उनके कई मंत्री भी यही कर रहते हैं। पाकिसतान में बेरोजगारी, कठमुल्लापन, गरीबी, जहालत चारों तरफ पसरी हुई है। इनका सरकार के पास कोई हल नहीं है।
जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। इसी के चलते नवाज शरीफ को समझ आ गया है कि वे देश के अवाम के बीच भारत का डर दिखाकर कर ही बचे रह सकते हैं। और राहील शऱीफ को तो राग कश्मीर अलापना खूब अच्छा लगता है।
वे कह रहे हैं कि कश्मीर पाकिस्तान का अंग है। कभी उन्होंने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के हालात देखे होते तो उन्हें समझ आ जाता हैं कि वहां पर हालात किस हद तक बदत्तर हो चुके हैं। जबकि भारत में जम्मू-कश्मीर में विकास हो रहा है, खुशहाली है।
अफसोस होता है कि इतने दुष्ट देश पर भी कुछ विश्व शक्तियां नजरें करम बनाए हुए हैं। उन्हें नहीं दिखता कि पाकिस्तान संसार के लिए कितना बड़ा खतरा बन चुका है और नवाज शरीफ तो वास्तव में निहायत एहसान फरामोश शख्स हैं। उनके पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने पर उनके भारत स्थित गांव के लोग खुशी से मिठाइयां बांटते हैं।
उनके अब्बा, जिन्हें सब लोग आदर से “अब्बा जी” कहते थे, की तो इच्छा थी कि मृत्यु के बाद उन्हें उसी मिट्टी में दफन किया जाए जिससे उनके परिवार का सदियों पुराना नाता है। पर अफसोस कि उन्हीं का पुत्र अपने पुरखों की देश को क्षति पहुंचाना चाहता है।
आर.के.सिन्हा