सिद्धार्थनगर। भारत-नेपाल के रिश्ते कितने प्रगाढ़ हैं, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि भारत में हजार-पांच सौ की नोटों पर पाबंदी लगी और पूरा नेपाल खड़बड़ा उठा। वजह वहां छोटे बड़े कस्बों में ही नहीं, बल्कि वहां के गांवों में भी लोगों के हाथों में भारतीय रुपया(भारु) मौजूद है।
नेपाल में हजार-पांच के नोटों पर पहले से प्रतिबंध हैं। बावजूद इसके दोनों देशों के बीच संबंध इतने गहरे हैं कि लगभग साठ फीसद नेपालियों के पास हजार-पांच सौ का भारु मौजूद है। भारत में अचानक इन नोटों पर पाबंदी से अचानक यह संकट खड़ा हो गया है कि इन नोटों को बदला कैसे जाए।
ऐसे में कुछ लोग वहां इन नोटों की हेराफेरी कर रहे हैं। वह एक लाख नेपाली से हजार-पांच सौ के एक लाख भारु खरीद रहे हैं। भारत-नेपाल के सीमावर्ती गांव-कस्बों में कोई बड़ा उद्योग धंधा नहीं है। शिक्षा का अभाव है। ऐसे में इन गांवों में तस्करी आय का बड़ा अवैध स्रोत है।
लोग हथियार से लेकर नेपाली शराब की तस्करी तक में व्यस्त हैं, पर यहां हर अवैध धंधे में हजार-पांच के नोटों की भूमिका बड़ी है। आठ नवंबर के बाद से इन नोटों पर पाबंदी लगने से सीमा पर तस्करी का यह कारोबार तो थमा, पर दूसरे रूप में जारी हो गया।
वहां अब दूसरे तरीके से तस्करी हो रही है। तस्कर व उनके कैरियर यहां नोट बदलने में जुटे हुए हैं। वह नेपाल के व्यापारियों से हजार-पांच सौ के नोटों का सौदा कर रहे हैं। हजार के नोट अब पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिए गए हैं। इन नोटों को पेट्रोलपंप व दवा की दुकानों तक में नहीं लिया जा रहा है।
यह नोट सिर्फ बैंक खातों में डाले जा सकते हैं। ऐसे में सीमाई बैंकों में अभी भी हजार-पांच सौ के नोटों को जमा करने के लिए लंबी कतार लगी हुई है। नेपाली अर्थशास्त्रियों के अनुसार सरहद से सटा नेपाल का कृष्णानगर, बुटवल, चाकरचैड़ा, भैरवहा बड़ा व्यापारिक केन्द्र है।
अकेले कृष्णानगर में एक अरब से अधिक हजार-पांच सौ के भारु हैं। इसमें कुछ दोहरी नागरिकता वाले हैं। उनके भारतीय क्षेत्रों में भी बैंक एकाउंट हैं। वह तो अपने रुपए बैंकों के जरिए खपा ले रहे हैं, मगर अधिकांश व्यापारी नेपाल के हैं। उनके समक्ष मजबूरी यह है कि वह अपने नोटों को कैसे खपाएं?
हालांकि नेपाल सरकार ने 16.5 अरब भारतीय रुपयों को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बात की है। इसे लेकर जांच के लिए भारतीयों का एक दल भी गठित किया जा चुका है, मगर जब तक इसका कोई हल नहीं निकल जाता नेपाली कारोबारियों की सांसे ऊपर नीचे हो रही हैं।
कोई एक लाख नेपाली के बदले एक लाख भारतीय खपा रहा है तो कोई हजार की नोट पांच सौ में। नोटबंदी का प्रभाव यह है कि पीक समय में भी नेपाल का कृष्णानगर हो अथवा दांग, बुटवल, भैरहवा जैसे कस्बे गरम कपड़ों के बाजार में पूरी तरह ठंडक छायी हुई है।
नेपाल राष्ट्रबैंक ने डिक्लेयर किया है कि उसके पास 3.26 करोड़ हजार-पांच सौ के भारु हैं। जब तक कोई निष्कर्ष निकल नहीं जाता व्यापारी हो या नेपाल के आम नागरिक कोई भारत बैठे अपने रिश्तेदार से संपर्क साध रहा है तो कोई किसी और संपर्की से। जिसके पास कोई नहीं निकल रहा, मजदूर है तस्कर व अन्य कारोबारियों से संपर्क साधने के लिए।
नेपाली पत्रकार वीरेन्द्र मिश्र कहते हैं कि इन रुपयों का जल्द कोई हल न निकला तो कारोबारियों को नुकसान तो होगा ही, मंदी का संकट अलग से झेलना पड़ेगा।