फैजाबाद। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक ने राम भवन में अपना अंतिम समय गुजारने वाले गुमनामी संत की पहचान की स्थापित करने के लिए एक सदस्यीय न्यायिक आयोग के गठन की अधिसूचना पर हस्ताक्षर करके सच से पर्दा उठाने का रास्ता खोल दिया है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस राष्ट्रीय विचार केंद्र के अध्यक्ष शक्ति सिंह ने कहा है कि आजादी के बाद से जिस सच को छुपाने के लिए कांग्रेस के रहनुमाओं ने आयोगों के नाटक रचे, या फिर आयोगों को प्रभावित करने वाली प्रक्रिया अपनाई, वह सच भी इस आयोग के माध्यम से सामने आ जाएगा। वह राम भवन में पत्रकारों से मुखातिब थे।
उन्होंने कहा कि अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि हर जिस सच को उद्घाटित करने के लिए बीते 31 वर्षों का संघर्ष कर रहे थे, वह सफल हो जाएगा। जैसी कि संभावना व्यक्त की जाती रही है कि गुमनामी संत ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे, न्यायिक जांच में यही सच सामने आता है तो यह केवल हमारे शहर, जिले, प्रदेश और देश के लिए ही नहीं पूरे विश्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण घटना होगी और फैजाबाद-अयोध्या एक बार फिर से वैश्विक फलक पर चर्चित होंगे।
राम जन्मभूमि की मुक्ति के प्रयास के प्रणेता ठाकुर गुरुदत्त सिंह की प्रेरणा से एक और अविस्मरणीय इतिहास उनको द्वारा निर्मित राम भवन में ठौर बनाएगा।
उन्होंने बताया कि 28 जून को राज्यपाल ने जस्टिस विष्णु सहाय की अध्यक्षता में गठित आयोग की अधिसूचना पर हस्ताक्षर किए हैं। इस आयोग का कार्यकाल छह माह का होगा औऱ इसका मुख्यालय लखनऊ में रहेगा। इस आयोग का शिविर कार्यालय फैजाबाद में भी खोला जाएगा।
आयोग मुख्य रूप से गुमनामी बाबा कौन थे, उनका नेताजी से क्या संबंध था, इस दिशा में अपनी जांच करेगा। श्री सिंह ने कहा कि यह याद करना जरूरी है कि जब सितंबर 1985 से यह प्रकरण तूल पकड़ने लगा था, तब भी प्रदेश और देश में कांग्रेस की सरकार थी।
मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने एक हद तक आगे बढ़ने के बाद अचानक इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली थी और निजी मुलाकात में नेताजी की भतीजी ललिता बोस से अपनी मजबूरी जाहिर की। आखिर यह मजबूरी क्या थी, सिवाय कांग्रेस आलाकमान के भय के। कांग्रेस आलाकमान यह नहीं चाहता था जिस सच को उन्होंने बड़े जतन से छुपा कर जनता की आंख में धूल झोंकी, वह सामने आयेगा तो बड़ी किरकिरी होगी।
उनके शलाका पुरुष पंडित नेहरू की नेताजी के विरोधी के रूप में छवि सामने आएगी। यह कांग्रेस का ही भय था कि नेताजी पर बने मुखर्जी आयोग का कार्यकाल बिना काम पूरा हुए ही आनन-फानन में सत्तासीन होने के साथ ही मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने समाप्त कर दिया था।
उन्होंने कहा कि कानूनी और राजनीतिक प्रक्रिया से एक रास्ता निकला है, जो न्यायिक आयोग के रूप में सामने आया है। अब वह रहस्य भी शीघ्र ही उजागर होगा, जिसे छुपाने के निरंतर प्रयास किए जा रहे थे। आज का दिन निजी रूप से मेरे लिए भी अत्यंत गौरव का दिन है। यह आयोग मेरी उस याचिका का ही परिणाम है, जिस पर 31 जनवरी 2013 को हमारे पक्ष में आदेश हुआ था।