भारत में साहित्यकारों ने तो विश्वस्तरीय रचना संसार रचा है लेकिन साहित्य के इन पुराधाओं पर किसी ने कोई विशेष काम नहीं किया। विदेशी भाषाओं में ऐसा नहीं है। साहित्यकारों की एक पूरी टीम ने शेक्सपियर और अन्य लेखकों पर उतना काम कर लिया जितना इन लेखकों ने साहित्य नहीं रचा।
ऐसे में युवा रचनाकार डॉ. कायनात काजी की कृष्णा सोबती के साहित्य और उनके जीवन पर लिखी पुस्तक ‘कृष्णा सोबती का साहित्य और समाज’ तपती दुपहरी में हवा के ठंडे झोंके जैसा अहसास देती है। जिंदगीनामा को छोड़ दें तो कृष्णा सोबती मित्रो और रत्ती के बगैर अधूरी हैं।
कायनात ने उनके कथा संसार को समझने के साथ ही सोबती के जीवन दर्शन का भी गहन अध्ययन किया है और कृष्णा के कथाकार कृष्णा बनने तक के सफर को शब्दों में खूबसूरती से पिरोया है।
कृष्णा सोबती नारी मन के गूढ़ रहस्यों को उजागर करने और महिलाओं के विद्रोह को सुर देने वाले साहित्यकारों की जमात से आती हैँ। उन्होंने इतिहास को जिया है और देश के विभाजन का दर्द सहा है। जिंदगी का फलसफा कृष्णा जी के उपन्यास और कहानियों में झलकता है।
शरतचंद्र की तरह उनका लेखन भी हमेशा वक्त से आगे रहा। हिंदी साहित्य के उस दौर में जब कहानियां और किस्से घर-परिवार के झगड़ों और व्यक्ति के संतापों पर केंद्रित थे, उन्होंने कालजयी उपन्यास ‘मित्रो मरजानी’ लिखने का साहस किया। ‘सूरजमुखी अंधेरे के’, ‘डार से बिछुड़ी’, ‘जिंदगीनामा’, ‘दिलोदानिश’, ‘समय सरगम’ में उन्होंने कथा को उन्होंने नए आयाम दिए।
उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, कथा चून्द्रमणि पुरस्कार, साहित्य शिरोमणि पुरस्कार, हिंदी अकादमी अवार्ड, शलाका सम्मान, साहित्य अकादमी फेलोशिप मिल चुकी हैं। कायनात ने बड़ी बारीकी से कृष्णा जी के जीवन के तमाम पहलुओं को छुआ है।
यही नहीं मित्रो और रत्ती के पुर्नपाठ के बहाने समाज के अधखुले पन्नों को खोलने की कोशिश की है। इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने कृष्णा जी के जीवन परिचय के साथ ही उस दौर को ताजा कर दिया और उनके साहित्य में महिला किरदारों के मनौवैज्ञानिक तत्व को पाठकों के साथ साझा किया है। कायनात की लिखी इस पुस्तक को कृष्णा जी पर चलता-फिरता विकीपीडिया माना जा सकता है।
कायनात ने पत्रकारिता की पढ़ाई की है और फोटोग्राफी में सिद्धहस्त हैँ। उन्होंने लंबे समय तक संडे इंडियन को अपनी सेवाएं दीं और फिलवक्त शिव नाडर विश्वविद्यालय ग्रेटर नोएडा से जुड़ी हुई हैं। उन्हें हिंदी में पहले ट्रैवल ब्लॉग राहगीरी (rahgiri.com) शुरू करने का गौरव हासिल है। फोटोग्राफी के प्रति जुनून की हद तक दीवानगी उन्हें देश के दूसरे फोटोग्राफरों से अलग करती है।