संयुक्त राज्य अमरीका के नेतृत्व में वर्ष 2001 में वार इन्ड्यूरिंग फ्रीडम की शुरूआत हुई थी। उस समय दुनिया को यह आश्वासन दिया गया था कि अमरीकी युद्ध अब आतंकवाद के समाप्त होने के साथ ही समाप्त होगा।
भारत भी 80 के दशक से आतंकवाद की चपेट में है और अब तक काफी मानवीय व आर्थिक नुकसान उठा चुका है। कई बार वह इसे नेस्तनाबूद करने के लिए तिलमिलाया भी, लेकिन सच तो यही है कि अब इस युद्ध के डेढ़ दशक बाद भी दुनिया के साथ-साथ भारत कहीं ज्यादा अधिक असुरक्षित महसूस करता है।
सवाल यह उठता है कि आखिर वजह क्या है? सवाल यह भी है क्या आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई या हमारी घरेलू कार्रवाई में आतंकवाद की नाभि पर हमला किया गया ? क्या उसकी रक्तवाहिनियों (यानि वे स्रोत जो इसके लिए फंडिंग करते हैं, जिनमें से ड्रग ट्रैफिकिंग बेहद महत्वपूर्ण है) को नष्ट किया गया? क्या इन महत्वपूर्ण तंतुओं को समाप्त कर पाने की असफलता के कारण ही आज ड्रग आतंकवाद का खतरा हमारे सामने एक अहम चुनौती बनकर नहीं उभर आया है?
भारत के लिए ड्रग आतंकवाद भले ही नया शब्द हो लेकिन वैश्विक स्तर पर इसका चलन एक दशक पहले ही हो चुका है। एंटी टेररिस्ट अध्येयता इस ओर सदी की शुरूआत से ही ध्यान आकर्षित कर रहे हैं लेकिन वैश्विक ताकतों ने अब तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए।
अमरीकी फेडरल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टीगेशन (एफबीआई) ने कुछ समय पहले स्पष्ट किया था कि अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थों की तस्करी तथा आतंकवाद के मध्य एक खतरनाक समिश्र तैयार हो चुका है। उसका यह भी कहना था कि दुनिया तेजी से आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों से गुजर रही है और इन विश्वव्यापी परिवर्तनों का परिणाम यह हुआ कि तमाम छितरे हुए जटिल और अधिक असममित (असिमेट्रिक) खतरे उत्पन्न हो चुके हैं।
हालांकि एफबीआई ने अमरीका के लिए ही इन खतरों को सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण माना है लेकिन सच तो यह है कि ये खतरे पूरी दुनिया के अधिकांश देशों के लिए उतने ही चुनौतीपूर्ण हैं जितने कि अमरीका के लिए। विशेष बात यह है कि नए विज्ञान, तकनीक और आर्थिक परिवर्तनों के कारण तेजी से सिकुड़ रही दुनिया का लाभ आतंकवादियों, अपराधियों और विदेशी खुफिया संग्राहकों (फॉरेन इंटेलीजेंस कलेक्टर्स) ने तेजी से उठाया है।
यद्यपि ये संयुक्त गतिविधियां सुस्पष्ट नहीं हैं लेकिन उनकी प्रतिध्वनियां राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन चुकी हैं। दुनिया भर के विभिन्न समाचार पत्रों में छपी रिपोर्टों पर निगाह डालें तो पता चलेगा कि पिछले लगभग एक दशक से (कम से कम उस समय से अवश्य ही जब अल जवाहिरी ने अलकायदा इन इस्लामी मगरिब यानि एक्यूआईएम की स्थापना की थी) आतंकवाद और अपराध अभिन्न रूप से जुड़ चुके हैं।
अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू आतंकवादी संगठन और उनके समर्थक असंख्य अपराधों में संलग्न हैं क्योंकि आपराधिक गतिविधियों से संचित निधियां आतंकवादी गतिविधियों के लिए फंडिंग का जरिया बनती हैं। इन अपराधों में जबरन वसूली, अपहरण, डकैती, भ्रष्टाचार, विदेशी तस्करी, हथियारों की तस्करी, साइबर अपराध, व्हाइट कॉलर क्राइम, ड्रग तस्करी तथा मनी लांड्रिग आदि शामिल हैं।
अपराध और आतंकवाद का यह संजाल मध्य-पूर्व, उत्तरी अफ्रीका, दक्षिण एशिया में काफी जटिल एवं प्रभावशाली हैसियत को प्राप्त कर चुका है। इस समिश्र में न केवल आईएसआईएस, एक्यूआईएम, हिजबुल्ला, अल-शबाब या बोको हरम जैसे संगठन शामिल हैं बल्कि तालिबान, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान सहित पाकिस्तान आधारित तमाम आतंकी व चरमपंथी संगठन भी शामिल हैं।
खास बात यह है कि पाकिस्तान आधारित तमाम चरमपंथी संगठन ड्रग्स की बड़ी-बड़ी खेपें भारत में भेजने में कामयाब हो रहे हैं, जिससे उनका दोहरा मिशन पूरा हो रहा है। यानि एक आतंकी हमले के लिए फंडिंग प्राप्त करने का और दूसरी तरफ भारतीय युवाओं की जिंदगियां तबाह करने का जिसे हम डिवीडेंड के तौर पर देख रहे हैं।
अफगानिस्तान और उसके साथ ही पाकिस्तान पूरी दुनिया में हेरोइन को उगाने और प्रॉसेस्ड करने के मामले में काफी आगे है। यहां से इसकी ट्रैफिकिंग अल-कायदा और तमाम सुन्नी चरमपंथी संगठनों के जरिए होती है।
वर्ष 2011 की संयुक्त राष्ट्र ड्रग एवं अपराध कार्यालय (यूएनओडीएसी) की एक रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान दुनिया का सबसे प्रमुख अफीम उत्पादक देश है जहां दुनिया की 93 प्रतिशत हेरोइन उत्पादक फसल होती है। विशेष बात यह है कि अफगानिस्तान में अफीम का उत्पादन दक्षिणी प्रांत में प्रमुख रूप से होता है जहां तालिबान सबसे मजबूत स्थिति में हैं। यानि तालिबान की मजबूती का आधार अफीम अर्थव्यवस्था ही है।
रिपोर्ट के अनुसार इन आतंकियों व चरमपंथियों ने उस वर्ष 50 से 70 मिलियन डॉलर इससे प्राप्त किए। इस तरह से देखा जाए तो ड्रग ट्रेड मांग और पूर्ति के बीच में एक महत्वपूर्ण कड़ी है, जो वैश्विक अपराध उद्यम (क्राइम इंटरप्राइज) में सैकड़ों बिलियन डॉलर मूल्य का ईंधन भरने का कार्य करता है।
गौर से देखें तो अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान इस मामले में एक गोल्डन ट्रैंगल की तरह हैं क्योंकि इनकी सीमाओं के जनजातीय आबादी वाले क्षेत्र बड़ी मात्रा में अफीम और हेरोइन, बाल्कन के रास्ते से यूरोप और अमरीका की ओर भेजकर खासी कमाई करते हैं।
चीन का यून्नान प्रांत भी बड़े पैमाने पर उत्पादन करता है जिसे हांगकांग और ताइवान के रास्ते अतंर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुँचाता है। उधर लेबनान की बेका घाटी में कैन्नाबीस तथा अफीम और लातिनी अमेरिका में पेरू और कोलम्बिया में कोकीन का उत्पादन होता है। यानि ड्रग इकोनॉमिक वैश्विक अर्थव्यवस्था में समानांतर रूप से स्थापित हो रही है। दक्षिण एशिया के साथ-साथ भारत के लिए यह कारोबार एक बड़ी चुनौती है क्योंकि भारत में इसकी खासी घुसपैठ हो चुकी है।
नार्कोटिक ब्यूरो का आकलन बताता है कि 1996 से 2006 के मध्य अन्य ड्रग्स के साथ-साथ 21,895 किग्रा अफीम, 8,55,667 किग्रा गांजा, 48,278 किग्रा हशीश और 10,147 किग्रा हेरोइन विभिन्न इनफोर्सिंग एजेंसियों के द्वारा जब्त की गई और इसमें 1,42,337 लोग सम्बद्ध पाए गए थे अब यह संख्या इससे काफी ज्यादा होगी।
कुछ समय पहले सामाजिक न्याय और पर्यावरण मंत्रालय द्वारा कराए गए राष्ट्रीय सर्वेक्षण और संयुक्त राष्ट्र संघ के ड्रग और अपराध कार्यालय द्वारा कराए गए सर्वे के मुताबिक भारत के विभिन्न राज्यों में पर्याप्त मात्रा में ड्रग प्रयोगकर्ता पाए गए हैं।
राजस्थान में इनका अनुपात सबसे ऊंचा(76.7 प्रतिशत) है, जिसके बाद हरियाणा (58.0 प्रतिशत) आता है। 43.9 प्रतिशत लोग उत्तर प्रदेश में और 37.3 प्रतिशत हिमाचल प्रदेश में हेरोइन के प्रयोगकर्ता लोग हैं।
दिक्कत इस बात की है कि ड्रग कारोबार पर इस देश के कुछ प्रांतों की सरकारें और पुलिस या तो नरम हैं या फिर उनके कुछ मंत्री व अफसर इसमें सम्बद्ध हैं। यदि ऐसा न होता तो मुंबई बम ब्लास्ट के लिए आरडीएक्स नहीं आ पाता ? पठानकोट हमले में भी यह शंका व्यक्त की जा रही है कि आतंकवादियों की घुसपैठ ड्रग माफियाओं द्वारा ही कराई गई। हालांकि अभी स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है लेकिन इससे इन्कार भी नहीं किया जा सकता है।
सभी जानते हैं कि पंजाब इस समय ड्रग तस्करी का सबसे बड़ा अड्डा बना हुआ है और यह भी स्पष्ट है कि यह कारोबार भारत-पाकिस्तान सीमा से सम्पन्न होता है। इस संदर्भ में ऐसी तमाम रिपोर्टें हैं जो भारत को खतरे का एहसास करा रही हैं। लेकिन पंजाब सरकार और पंजाब पुलिस, इस मामले में या तो अक्रिय है या फिर जानबूझकर ऐसा होने दे रही है।
फिलहाल प्रत्येक आतंकी घटना को लेकर हम पाकिस्तान पर आंखे तरेंरे या गरजें लेकिन अब समय आ गया है कि हम स्वयं के अंदर भी झांकने की कोशिश करें कि आखिर इसका भारत की सीमा में प्रवेश कैसे सम्भव हो पा रहा है? भारत सरकार और खुफिया एजेंसियों को ड्रग कारोबार और आतंकवाद के लिए फंडिंग के बीच स्थापित सम्बंधों का यथार्थ भी जानना होगा। कारण यह है कि बारूद के बम से ड्रग बम कहीं ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है।
डॉ. रहीस सिंह