मकराना (नागौर)। कहा जाता है कि गुजरा वक्त कभी वापस नहीं आता, यह बात सही भी है लेकिन गुजरे वक्त की यादें कब, कहां और कैसे ताजा जो जाएंगी कोई नहीं जानता। कुछ ऐसी याद उस समय ताजा हो गई जब रेलवे की ओर से मकराना से परबतसर के बीच बीते सप्ताह मंगलवार को ट्रेन शुरू हुई।
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मकराना से परबतसर रूट पर दो दशक पहले भी ट्रेन चला करती थी। साल 1991 तक मकराना से परबतसर के बीच स्टीम इंजन के जरिए चलने वाली ट्रेन के चालक हीरालाल सोलंकी हुआ करते थे। उन्होंने अपनी 40 साल की रेल सेवा में से २० साल मकराना से परबतसर के बीच ही बिताए। साल 1991 में हीरालाल रिटायर हो गए और उसके एक साल बाद 1992 में इस रूट पर चलने वाली ट्रेन बंद कर दी गई।
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कहते हैं कि हीरालाल सोलंकी को रेल सेवा से इतना लगाव था कि उन्होंने कोयला भंडारण के समीप बने मकराना-परबतसर के इंजन शैड के सामने ही अपना घर बनवा लिया। इस ट्रेन को अद्धा के नाम से भी जाना जाता था। हीरालाल सोलंकी का स्वर्गवास हो चुका है तथा उनके चार पुत्र आज भी पुराने इंजन शैड के सामने बने मकान में रहते हैं।
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मंगलवार को मकराना व परबतसर के बीच फिर रेल सेवा शुरू होने पर बुजुर्ग लोगों के मस्तिष्क में अनायास ही हीरालाल सोलंकी की स्मृतियां ताजा हो गईं। वर्तमान में नागौर कांग्रेस की महिला जिलाध्यक्ष एवं तत्कालीन चालक हीरालाल की पुत्रवधु गीता सोलंकी तथा हीरालाल सोलंकी के ज्येष्ठ पुत्र पुत्र धर्मचंद सोलंकी भी स्टेशन पहुंचे। दोनों ने रेलवे स्टेशन पर मकराना-परबतसर ट्रेन के चालक गौरीशंकर व गार्ड बाबू बिलाल खां का अभिनंदन किया।