नई दिल्ली। नोएडा के बहुचर्चित निठारी कांड के दोषी सुरेन्द्र कोली को सोमवार को उस वक्त फौरी राहत मिली जब सुप्रीमकोर्ट ने आधी रात को उसकी याचिका की त्वरित सुनवाई करते हुए फांसी पर एक सप्ताह के लिए रोक लगा दी।
कोली की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कोली को मेरठ जेल में किसी भी वक्त फांसी दे दिए जाने का हवाला देते हुए उसकी याचिका की त्वरित सुनवाई का न्यायालय से देर रात आग्रह किया। न्यायालय ने आनन-फानन में मध्य रात्रि में बेंच बिठाई। जयसिंह ने न्यायाधीश एच एल दत्तू और न्यायाधीश अनिल आर दवे की खंडपीठ के समक्ष मध्यरात्रि में इस मामले का विशेष उल्लेख किया।
उन्होंने फांसी की सजा पाने वाले अपराधियों की पुनर्विचार याचिकाओं के खुली अदालत में निपटारे संबंधी शीर्ष अदालत के आदेश का हवाला देते हुए कोली को भी खुली अदालत में अपना पक्ष रखने का समय देने का अनुरोध किया। उन्होंने दलील दी कि उनके मुवक्किल की पुनर्विचार याचिका का निपटारा न्यायाधीश के चैम्बर में किया गया है, इसलिए उसे भी खुली अदालत में अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाना चाहिए।
रात एक बजकर 40 मिनट पर न्यायाधीश दत्तू ने कोली की फांसी पर रोक लगाने का अंतरिम आदेश जारी किया। इसके बाद आनन फानम में इस आदेश की प्रति फैक्स के जरिये मेरठ पुलिस एवं प्रशासन को भेज दी गई।
न्यायालय अब कोली की पुनर्विचार याचिका की सुनवाई इस सप्ताह किसी भी दिन खुली अदालत में करेगा और याचिकाकर्ता को वकील के माध्यम से अपनी बात रखने का मौका देगा।
उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने गत दो सितम्बर को अपने एतिहासिक फैसले में व्यवस्था दी थी कि मृत्युदंड के मामलों में दायर पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई खुली अदालत में की जाएगी। अब तक इन याचिकाओं की सुनवाई न्यायाधीशों के चेंबर में हुआ करती थी। न्यायालय ने चार-एक के बहुमत के आधार पर यह फैसला सुनाया था।
मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने मोहम्मद आरिफ, याकूब अब्दुल रजाक मेमन एवं अन्य की याचिकाओं का निपटारा करते हुए कहा था कि पुुनरीक्षण याचिकाओं की सुनवाई शीर्ष अदालत की कम से कम तीन सदस्यीय खंडपीठ ही करेगी। साथ ही याचिकाकर्ताओं को खुली अदालत में अपना पक्ष रखनेे के लिए आधे घंटे का समय भी दिया जाएगा।
न्यायालय ने कहा था कि पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई खुली अदालत में कराया जाना संबंधित याचिकाकर्ताओं का मौलिक अधिकार है। संविधान पीठ ने कहा था कि जिन पुनरीक्षण याचिकाओं का निपटारा पहले किया जा चुका है अथवा जिन्हें खारिज किया जा चुका है लेकिन जिन्हें फांसी की सजा नहीं दी जा सकी है वे खुली अदालत में फिर से सुनवाई की याचिका दायर कर सकते हैं। कोली ने भी इन्हीं बिंदुओं को आधार बनाकर शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है।
न्यायालय ने संशोधन याचिकाओं के मामले में स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा था कि जिन अपराधियों की संशोधन याचिकाएं खारिज हो चुकी है उन्हें यह मौका नहीं मिलेगा। याचिकर्ताओं ने खुली अदालत में पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई कराने की मांग की थी।
सुप्रीमकोर्ट का की तरफ से भेजे गए आदेश की फैक्स प्रति वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ओंकार सिंह के आवास से पुलिस टीम सुबह पौने चार बजे मेरठ जेल पहुंची और जेलर को सूचित किया। इसके बाद साढे चार बजे जेलर आर के वर्मा ने वरिष्ठ जेल अधीक्षक एसएचएम रिजवी से उनके आवास पर जाकर भेंट की और सुप्रीमकोर्ट के आदेश की जानकारी उन्हें दी।
उल्लेखनीय है कि सुरेंद्र कोली को मौत का वारंट जारी कर दिया गया था और उसे फांसी पर चढ़ाने के लिए गाजियाबाद की डासना जेल से गत चार सितम्बर को मेरठ जेल लाया गया था। कोली को 12 सितम्बर तक फांसी दिए जाने के आदेश दिए गए थे जिसके लिए मेरठ जेल में तमाम तैयारियां पूरी करते हुए फांसी का पूर्वाभ्यास भी कर लिया गया था।
वरिष्ठ जेल अधीक्षक एसएचएम रिजवी ने बताया कि 1995 में रिलीज हुई फिल्म जल्लाद सभी जेलकर्मियों को दिखाई गई है जिससे फांसी देने की प्रक्रि या को विस्तार से समझा जा सके। उनका कहना है कि ऎन मौके पर कोई कमी न रह जाए इसलिए सभी पुख्ता व्यवस्थाओं को लेकर फिल्म और पुराने मामलों का शोध किया जा रहा है।
दूसरी ओर गत पांच दिन में किसी भी सगे संबंधी के कोली से मिलने न आने पर जेल प्रशासन उसके अंतिम संस्कार को लेकर चिंतित है। वरिष्ठ जेल अधीक्षक रिजवी ने बताया कि फांसी से पहले सामजिक संस्थाओं से भी संपर्क किया जा रहा है और यदि परिवार का कोई सदस्य सुरेंद्र कोली का शव लेने नहीं आता तो उसके शव का अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा।