मेरठ। देश के एकमात्र जल्लाद पवन कुमार का कहना है कि बहुचर्चित निठारी कांड के अभियुक्त सुरेंद्र कोली को फांसी जैसी आसान मौत देना उसके जधन्य अपराधों के लिए बहुत कम सजा होगी।…
मेरठ के नामी जल्लाद परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य पवन के हाथों दी जाने वाली यह पहली फांसी होगी लेकिन इससे पूर्व वह अपने पिता और दादा के साथ फांसी दिए जाने का काफी अनुभव प्राप्त कर चुके हैं। पवन इसके लिए काफी उत्सुक हैं और गौरवांवित अनुभव करने के साथ ही बेसब्री से उस पल की प्रतीक्षा कर रहे हैं जब वह अभियुक्त को फांसी के फंदे पर झूलने के लिए लिवर को दबा देंगे।
पवन जल्लाद ने बताया कि फांसी के फंदे पर झूल जाने के बाद मात्र दो मिनट में ही शरीर से प्राण निकल जाते हैं। उन्होंने कहा कि कोली पर जिस तरह कम आयु लड़कियों से दुष्कर्म के बाद उन्हें तड़पा तड़पा कर मार डालने के आरोप सिद्ध हुए हैं, वह इतनी आसान मौत का हकदार नहीं होना चाहिए था लेकिन देश का संविधान और कानून सिर्फ इसी की अनुमति देता है।
मेरठ जेल में 1975 के बाद दी जाने वाली इस फांसी की तैयारियों की चर्चा करते हुए पवन कुमार ने कहा कि फांसी प्रक्रिया को सुचारू करने के लिए एक पूर्वाभ्यास किया जा चुका है और अभी दो और पूर्वाभ्यास किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि फांसी का फंदा तो नैनी जेल से मंगा लिया गया है लेकिन चेहरे को ढंकने वाला काला टोपा सिलवाया जा रहा है और हाथ तथा पैर बांधने के लिए रस्सी का भी प्रबंध किया गया है।
मेरठ में कांशीराम कालोनी निवासी पवन जल्लाद के पिता की साल 2011 में मौत के बाद मेरठ जिला जेल में उनका जल्लाद के रूप में रजिस्ट्रेशन हुआ था। पवन अपने दादा कल्लू और पिता मम्मू जल्लाद के साथ देश की कई जेलों में फांसी देने के समय मौजूद रह चुके हैं। पवन का कहना है कि उनके पिता ने पूर्व प्रधनमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारों बेअन्त सिंह एवं सतवंत सिंह और साल 1978 में दिल्ली के मशहूर गीता तथा संजय चौपडा अपहरण, बलात्कार तथा हत्याकांड के दोçष्ायों कुलजीत सिंह उर्फ रंगा और जसबीर सिंह उर्फ बिल्ला के अलावा सैकड़ों को फांसी दी थी।
पवन जल्लाद ने इच्छा व्यक्त की है कि दिल्ली की तिहाड़ जेल में बन्द दिल्ली के बहुचर्चित निर्भया सामूहिक बलात्कार एवं हत्याकांड के चारों हत्यारों केश, अक्षय ठाकुर, पवन गुप्ता और विनय शर्मा को वह जल्द से जल्द अपने हाथों से फांसी पर चढ़ाएं। उन्होंने कहा कि भले ही जल्लाद का पेशा घृणित समझा जाता हो लेकिन वास्तविकता यह है कि वह भी समाज का ही एक अंग है और समाज को बचाने के लिए किसी अपराधी को फांसी देकर कानून की मदद करता है।
ज्ञातव्य है कि कोली के खिलाफ हत्या के कुल 16 मामले दर्ज थे जिसमें से पांच में उसे मौत की सजा सुनाई जा चुकी है। कोली की सजा माफ करने के लिए राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल की गई थी जिसे गत 27 जुलाई को खारिज कर दिए जाने के बाद उसकी मौत का वारंट जारी कर दिया गया था। उसे मेरठ जेल में 12 सितम्बर तक फांसी पर चढ़ाया जाना था लेकिन सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर एक सप्ताह के लिए फांसी पर रोक लगा दी गई है और शीर्ष अदालत के अगले आदेश की प्रतीक्षा की जा रही है।