नई दिल्ली। वित्त मंत्रालय ने मीडिया में आई उन खबरों का खंडन किया है जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय हितों को दरकिनार कर ब्रिटेन की नोट छापने वाली दागदार कंपनी के साथ समझौता किया है।
वित्त मंत्रालय ने मंगलवार शाम यहां जारी एक बयान में उपरोक्त स्पष्टीकरण के साथ ही कहा है कि यह कंपनी 2010 तक नोट पेपर सप्लाई करती थी। इसके बाद 2013 में लिए गए फैसले के अनुसार कंपनी को 2015 तक बैंक नोट में एक सिक्योरिटी फीचर सप्लाई करने की अनुमति दी गई थी।
पिछले तीन साल के दौरान सरकार की तरफ से कंपनी को न तो कोई नया ठेका दिया गया और न ही 2014 से कंपनी को कोई नया ऑर्डर दिया गया है। कंपनी ने भारत में फैक्ट्री लगाने की अनुमति मांगी थी, लेकिन इसपर कोई विचार नहीं किया गया है।
इससे पूर्व मंगलवार को कांग्रेस पार्टी ने भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 8 नवम्बर के बाद जारी की गई नई करेंसी की छपाई को लेकर केंद्र सरकार पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाए थे कि नए नोट की छपाई सारे नियम-कायदों को ताक पर रख कर की गई है।
केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने मंगलवार को नए नोट की छपाई को लेकर केंद्र की मोदी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि नए नोट की छपाई करने वाली ब्रिटेन बेस्ड कंपनी को ये ठेका नियमों को ताक पर रख कर दिया गया।
ओमन चांडी ने एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि ब्रिटेन बेस्ड कंपनी है। कंपनी ने सुरक्षा संबंधी क्लीयरेंस जिस तरह से लिया वह भी सवालों के घेरे में है।
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण मांगते हुए जिक्र किया कि गत मार्च 2013 में जगदंबिका पाल की अध्यक्षता में बनी संसदीय कमेटी की रिपोर्ट और रिकमेंडशन के अनुसार भारतीय करंसी (नोट) किसी भी विदेशी कंपनी द्वारा या विदेश में न छापे गए हों।
उन्होंने एक और उदाहरण देते हुए कहा कि 2011 में वित्त राज्य मंत्री नमोनारायण मीणा ने संसदीय कार्रवाई के दौरान एक सवाल के जवाब में कहा था कि ऐसी कंपनी को सिक्योरिटी क्लीयरेंस भी नहीं दिया जा सकता है। जबकि इस ब्रिटिश बेस्ड कंपनी को गृह मंत्रालय ने ब्लैक लिस्ट कर दिया था।
रिकमेंडेशन पॉलिसी में साफ लिखा है कि कंपनी का कार्यालय नई दिल्ली में है साथ ही यह कंपनी केंद्र सरकार का प्रचार करने वाली मेक इन इंडिया अभियान में भी सहयोग दे रही है।
उन्होंने इस कंपनी का जिक्र करते हुए कहा कि साल 2013-14-15 तक कंपनी की कोई बैलेंसशीट तक नहीं थी लेकिन अचानक 2016 में अप्रेल से 16 नवम्बर के बीच 33 प्रतिशत कंपनी के शेयर मूल्यों में वृद्धि हो गई। जो कि अचंभित कर देने वाली है।
इसके साथ ही 7 नवम्बर से 9 नवम्बर के बीच इंडिया-इंडो कांफ्रेंस का भी आयोजन किया गया था जिसमें इस कंपनी की एक अहम भूमिका रही थी। इसके अलावा उसी दौरान प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का ऐलान किया था।