सबगुरु न्यूज-सिरोही। जिला मुख्यालय के महिला चिकित्सालय में आरओ प्लांट लगने से शुद्ध पानी की गारंटी मिल गई है, लेकिन यहां पर चिकित्सकों की नीयत साफ करने का उपकरण नहीं लगा होने से जिंदगी बच जाएगी इसकी कोई गारंटी नहीं है।
जिला चिकित्सालय में मंगलवार को देखा हुआ नजारा तो यही बताता है कि यहां पर चिकित्सा पेशे से जुड़े सभी लोगों को मरीजों की जान बचाने से ज्यादा उन्हें येनकेन प्रकारेण परेशान करने में ज्यादा आनन्द आ रहा है।
चिकित्सालय में कैलाशनगर की एक महिला की डिलीवरी के बाद चिकित्सक ने उसे डिस्चार्ज करते हुए कहा कि रक्ताल्पता है। इसे रक्त चढ़वाना पड़ेगा। ओ नेगेटिव जैसे दुर्लभ रक्त जिला चिकित्सालय के रक्त बैंक में था नहीं तो येनकेन प्रकारेण आबूरोड के तलहटी स्थिति ब्रह्माकुमारी के पंजीकृत रक्त बैंक से इसे मंगवा लेने कर ली तो चिकित्सकों ने यह कहते हुए इस रक्त को चढ़ाने से मना कर दिया कि ऐसा उनके रूल में नहीं है।
जबकि पीएमओ का चार्ज संभाले सीएमएचओ ने कहा कि इस तरह की कोई पाबंदी नहीं है कि जिला चिकित्सालय को छोडकर किसी अन्य पंजीकृत रक्त बैंक से रक्त मंगवाकर मरीजों को चढ़वाया नहीं जा सकता है। यह बात अलग है कि शाम तक ओ नेगेटिव का एक रक्तदाता पिण्डवाड़ा से सिरोही आ गया, लेकिन इसे भी रक्त देने के लिए पांच बजने का इंतजार सिर्फ इसलिए करना पड़ा कि ब्लड बैंक में इस काम में लगे लोगों ने कार्य की गंभीरता को नहीं समझते हुए कॉल के बावजूद पांच बजे से पहले चिकित्सालय पहुंचना मुनासिब नहीं समझा।
केस-2
एक केस बड़ा बेरा का था। सोनाराम की भाभी की डिलीवरी भी जिला चिकित्सालय में हुई। डिस्चार्ज करते हुए उसमें 6.5 ग्राम हीमोग्लोबिन बताते हुए चिकित्सक ने उसे भी रक्त लाने को कहा। सोनाराम ने बताया कि सोमवार रात को रक्त लाने को कहा जब कोई ब्लड बैंक खुला नहीं था, दूसरा रक्त का समुह भी नहीं बताया। ऐसे में जब सवेरे ब्लड बैंक खुला तो इसी कारण से उन्हें रक्त नहीं मिल पाया। शाम को जब ब्लड ग्रुप लिखा हुआ कागज लाया तो कॉल के बाद भी ब्लड बैंक को पांच बजे ही खोला गया, उससे पहले नहीं।
-डिस्चार्ज पर ही रक्ताल्पता की याद क्यों?
यह तो वो दो मामले हैं जो सोमवार को ध्यान सामने आए। दोनों में कई समानताएं हैं। डिलीवरी के बाद डिस्चार्ज करने पर ही रक्ताल्पता की वजह से जच्चा को खतरा बताया गया, दूसरा रक्त का समुह लिखकर दोनों ही मरीजों के परिजनों को लिखकर नहीं दिया गया, तीसरा ब्लड बैंक के कार्मिकों के लिए आपात सेवा नाम की कोई चीज नहीं होती है चिकित्सालय में भले इसके अभाव में किसी की जान जाए तो जाए।
सवाल यह भी कि क्या 6.5 हीमोग्लोबिन में मरीजों की डिलीवरी करवाई जा सकती है। यदि ब्लीडिंग ज्यादा हुई तो उसे दुरुस्त करके ही क्यों नहीं चिकित्सालय से डिस्चार्ज किया जाता।
-नए प्रभारी मंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती
कल ही चिकित्सा मंत्री को जिले का प्रभारी मंत्री बनाया गया और आज ही जिला चिकित्सालय में विशेष रूप से जननी के प्रति कथित रूप से इस तरह की लापरवाही और गैरजवादेह रवैया सामने आया है।
ऐसे में उनके समक्ष सिरोही में तीन महीने किए गए वायदों के अलावा चिकित्सकों और चिकित्सा स्टाफ के इस तरह के रवैये को दुरुस्त करना भी एक बड़ी चुनौती होगी।
-इनका कहना है…
यह मामला मेरे ध्यान में आया है। आबूरोड का रीजनल ब्लड सेंटर है। जो जिला चिकित्सालय के ब्लड सेंटर से बड़ा है। सरकार के द्वारा लोगों की मदद के लिए यह पंजीकृत किया गया है। यदि किसी मरीज को सिर्फ खून के लिए रेफर किया जाना आवश्यक है तो इस सेंटर से खून मंगवाकर उसे चढ़ाया जा सकता है। यह नियम में है। चिकित्सालय की आपात सेवा नियम सब पर लागू होता है। यदि कॉल भेजने के बाद भी ब्लड बैंक टैक्निशियन नहीं आए है तो यह भी गंभीर है।
डॉ सुशील परमार
कार्यवाहक पीएमओ, जिला चिकित्सालय, सिरोही।