सबगुरु न्यूज-सिरोही। गणपति महोत्सव को लेकर जो स्थिति सिरोही शहर में देखने को मिल रही है वो आज तक कभी देखने को नहीं मिली होगी। बंगाल के दुर्गा पूजा और महाराष्ट्र के गणपति महोत्सव के दौरान जिस तरह दुर्गा ओर गणपति की प्रतिमाएं बेचने और बनाने के लिए पांडाल सजते हैं ठीक ऐसे ही बडे-बडे बीसीयों पाण्डाल सिरोही में गोयली चौराहा से लेकर तीन बत्ती चौराहे पर हाइवे के दोनों तरफ सजे हुए हैं।
इससे पहले गणपति महोत्सव से पहले के प्रतिमा बेचने वाले एक दो ही पाण्डाल होते थे। इनमें भी गिनी चुनी प्रतिमाएं होती थी। इस बार का जो नजारा देखने को मिला उससे लगता है कि सिरोही में गणपति महोत्सव ऐसे मूर्तिकारों को रोजगार मुहैया करवाने का बेहतर स्थान हो गया है।
-हर साइज की मूर्तियां
प्लाटिक के बने इन पाण्डालों में छह इंच से लेकर आदमकद गणपति की मूर्तियां सजी हुई हैं। यहां पर सिरोही के अलावा जालोर, रामसीन, रानीवाडा, षिवगंज व सिरोही के निकटस्थ गांवो के लोग भी गणपति की मूर्तियां खरीदने आए हैं। हाइवे के दोनों तरफ रविवार को उमड रही लोगों की भीड इस बात को बताने के लिए काफी है कि किस तरह गणपति महोत्सव सिरोही में एक पर्व का रूप लेता जा रहा है।
little hands decorating ganpati in sirohi
-भगवान में रंग भर रहे नन्हें हाथ
गणपति प्रतिमा बनाने वालों के पांडाल पारीवारिक रोजगार का एक केन्द्र के रूप में दिख रहे हैं। परिवार का हर उम्र का व्यक्ति इसमें अपनी क्षमता के अनुसार काम करने में लगा है। बडी प्रतिमाओं में जहां अपने कद के अनुसार बडे लोग रंग भर रहे हैं। तो छोटी प्रतिमाओं को गहने, आभूषण वस्त्र आदि के रंग नन्हे बच्चे बडे करीने से कर रहे हैं।
-खडे हैं ढोल ताशे वाले
गणपति पाण्डालों के पास ही ढोल ताशे वाले भी खडे हैं। गणपति को जो भी अपने पाण्डाल और घर ले जा रहा है उन्हें यहां पर गणपति को ले जाने की खुषी को अभिव्यक्त करने के लिए ढोल-थाली वाले भी मिल जाते हैं। गणपति की प्रतिम का सौदा तय होने के बाद उन्हें अखबार या पॉलीथिन से ढककर जैसे ही लोग ऑटो और मिनी लोडर में लादते हैं वैसे ही ढोल और थाली बजाने वाले उत्साह और खुशी के प्रतीक के रूप में उसे बजाने लगते हैं। गणपति ले जाने वाले उन्हें नेग स्वरूप कुछ राशि दे रहे हैं।
-प्रोत्साहित करें तो हो सकता है अलग नजारा
सिरोही में गोयली चौराहे से तीन बत्ती चौराहे के बीच लगे सभी पाण्डालों में बनी गणपति की प्रतिमाएं प्लास्टर ऑफ पेरिस की हैं। दरअसल इनकी प्रतिमाओं में फिनिषिंग अच्छी आती है। यदि इन मूर्तिकारों को प्रोत्साहित किया जाता तो यह प्लास्टर ऑफ पेरिस की जगह मिट्टी की गणपति की मूर्तियां भी बना सकते हैं। जिससे मूर्तियों के विसर्जन के दौरान पानी प्रदूषित नहीं होवे।
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