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no stay on new Jallikattu Law, Tamil Nadu to maintain peace : supreme court
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जलीकट्टू पर तमिलनाडु के कानून पर स्टे नहीं, प्रदर्शनों पर कोर्ट ने की खिंचाई

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जलीकट्टू पर तमिलनाडु के कानून पर स्टे नहीं, प्रदर्शनों पर कोर्ट ने की खिंचाई
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नई दिल्ली। जलीकट्टू मामले पर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की इस बात के लिए खिंचाई की कि प्रदर्शनों के दौरान कानून व्यवस्था का पालन नहीं हुआ।

कोर्ट ने तमिलनाडु के वकील को निर्देश दिया कि वे तमिलनाडु सरकार को कहें कि कानून का पालन हर हाल में होना चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने जलीकट्टू के तमिलनाडु सरकार के नए कानून पर कोई रोक नहीं लगाई है लेकिन इस कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया।

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी किया और 6 हफ्तों में जवाब मांगा। सुप्रीम कोर्ट ने जलीकट्टू को अनुमति देने के केंद्र सरकार के 7 जनवरी, 2016 के नोटिफिकेशन को वापस लेने की मंजूरी दे दी।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब हमने जलीकट्टू के आयोजन पर रोक लगा रखी थी तो आपने इसके आयोजन के लिए हो रहे प्रदर्शनों की अनुमति क्यों दी?

जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने तमिलनाडु के वकीलों से कहा कि आप अपनी सरकार से कहें कि सभ्य समाज में कानून का पालन होना चाहिए। हम ऐसी चीजें बर्दाश्त नहीं कर सकते।

तमिलनाडु के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सभी प्रदर्शन शांतिपूर्ण थे। इस पर जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि इस प्रदर्शन में चार लोगों की मौत हुई है।

आपको बता दें कि 25 जनवरी को एनिमल वेलफेयर बोर्ड और अन्य ने तमिलनाडु सरकार द्वारा जलीकट्टू को वैध ठहराने के लिए कानून बनाने की कोशिशों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।

बोर्ड का कहना है कि जलीकट्टू एक क्रूर परंपरा है और कानून के खिलाफ है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बैन कर रखा है। याचिका में कहा गया है कि 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि जल्लीकट्टू में जानवरों पर अत्याचार होता है और राज्य में जल्लीकट्टू को इजाजत नहीं दी जा सकती।

ऐसे में तमिलनाडु राज्य प्रिवेंशन ऑफ क्रूएल्टी अगेंस्ट एनिमल जैसे केंद्रीय कानून में संशोधन नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में पुनर्विचार याचिका खारिज कर चुका है।

राज्य का यह नया एक्ट सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ है। याचिका में नए एक्ट पर रोक लगाने की मांग की गई है। इस मामले में करीब सत्तर केवियट सुप्रीम कोर्ट में दायर किए जा चुके हैं।