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परेशानी का सबब बनती नोमोफोबिया - Sabguru News
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परेशानी का सबब बनती नोमोफोबिया

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परेशानी का सबब बनती नोमोफोबिया

बातचीत, बिलिंग, मैसेजिंग और बैकिंग जैसी तमाम सुविधाएं देने वाले मोबाइल फोन ने जिंदगी को जितना सरल बनाया है, अब उतना ही धीरे-धीरे पेचीदा भी बना रहा है। एक ओर जहां मोबाइल फोन टावर कैंसर जैसी समस्याओं को जन्म दे रहे हैं तो वहीं मोबाइल फोन इन दिनों नोमोफोबिया जैसी व्यावहारिक बीमारी की वजह बन रहे हैं।

नोमोफोबिया के दौरान कानों में मोबाइल की रिंगटोन लगातार महसूस होती है, हर पल फोन की बैट्री खत्म होने का अंदेशा लगा रहता है और बार-बार पॉकेट और पर्स में मोबाइल फोन टटोलना आदत बन जाती है। ऐसा भी नहीं है कि इस तरह की समस्या को महसूस करने वालों की गिनती कम हो। इस विषय पर हुए कई शोध बताते हैं कि धीरे-धीरे ऐसी शिकायत तमाम लोगों को होने लगी है।

इस तरह की परेशानी की वजह मानी जा रही है आम आदमी का मोबाइल पर जरूरत से ज्यादा निर्भर होना। इतना ही नहीं, मोबाइल से जुड़ी यह व्यावहारिक समस्याए इतनी ज्यादा हो चुकी हैं कि इनकी विभिन्न स्टेज को भी अलग-अलग शब्दों में परिभाषित किया जाने लगा है।

मसलन, सिग्नल के लिए परेशान होने पर इस समस्या को सिग्नल सीकर में परिभाषित किया गया है तो वहीं मोबाइल फोन के सिग्नल चैक करते हुए फोन को बार-बार हाइट पर रखने की आदत को ह्यूमन एंटीना और मोबाइल चैक करने के लिए बार-बार चैक करने के लिए पॉकेट पैटर शब्द इस्तेमाल होने लगा है।

क्या है नोमोफोबिया

नोमोफोबिया को रिंग एंजाइटी भी कहते हैं। इसमें आपको बार-बार यह महसूस होता है कि कहीं आपका फोन बज तो नहीं रहा। कहीं आपको किसी ने कोई मैसेज तो नहीं किया है। आपको अक्सर यह अंदेशा लगा रहता है कि आपका फोन बज रहा है और आप उसकी रिंग को सुन नहीं पा रहे हैं या फिर कहीं किसी ने कोई मिस कॉल तो नहीं किया। इन सब बातों का डर आपको हमेशा सताता रहता है। नोमोफोबिया की बीमारी के दौरान आपको बार-बार यही महसूस होता रहता है कि आपका मोबाइल कहीं खो न जाए। आप अनायास ही बार-बार अपना मोबाइल फोन चेक करते रहते हैं।

क्या हैं लक्षण

आप किसी बिल्डिंग के बेसमेंट में पहुंचते हैं। वहां आपके मोबाइल फोन का नेटवर्क सिग्नल अचानक से कमजोर होने लगता है। अचानक आपको महसूस होता है कि जैसे आपका कुछ खो गया या फिर बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है। यह भी हो सकता है कि आधी रात बीत चुकी हो लेकिन आपको नींद नहीं आ रही हो। आप थोड़ी-थोड़ी देर बाद उठकर मिस्ड कॉल चेक करते हैं या देखते हैं कि कोई मैसेज तो नहीं आया! कुछ लोगों के साथ तो ऐसा होता है कि मोबाइल के कैश कार्ड में केवल थोड़ा सा बैलेंस देखकर ही उनका सिरदर्द होने लगता है।

क्या हैं कारण

नोमोफोबिया की मुख्य वजह है लोगों की मोबाइल पर अधिक निर्भरता। बिजनेस और कॅरियर में कम्युनिकेशन अब सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा है। पहले जहां बिजनेस की तमाम डील्स आमने-सामने की मुलाकात के बाद तय होती थीं वहीं अब मोबाइल ही सब कुछ हो गया है। जाहिर है, आज जिसका जितना बड़ा नेटवर्क है, उसका फोन दिनभर उतना ही घनघनाता रहता है। ऐसे में लोगों को मोबाइल की आदत सी हो गई है।

ऐसे में जब कभी घंटों किसी का फोन खामोश रहता है तो यह स्थिति उसे खटकने लगती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कोई नोमोफोबिया से ग्रस्त है तो वह खुद ही इस स्थिति से उबर सकता है, क्योंकि मोबाइल पर निर्भरता वह खुद ही कम कर सकता है।

क्या कहते हैं शोध

मोबाइल फोन से जुड़ी व्यावहारिक बीमारियों पर हुए शोध में सामने आया कि दुनिया के 66 प्रतिशत लोग इस तरह की विभिन्न परेशानियों से जूझ रहे हैं। यूनाइटेड किंगडम में हुए एक शोध में पता चला है कि पिछले चार साल में नोमोफोबिया से ग्रस्त लोगों की संख्या बढ़ी है। चार साल पहले मोबाइल के पास न होने पर डरने वालों का प्रतिशत 53 था। शोध के मुताबिक, 18 से 24 वर्ष के युवा मोबाइल फोन से सबसे ज्यादा चिपके रहते हैं। 77 फीसदी तो कुछ मिनट भी मोबाइल से दूर नहीं रह सकते। वहीं, मोबाइल फोन से दूर रहने पर घबराने वाले 25 से 34 साल के युवाओं का प्रतिशत 68 है। शोध के अनुसार एक युवा दिन में औसतन 34 बार जेब इस बात के लिए टटोलता है कि क्या मोबाइल सलामत है। शोध में यह बात भी सामने आई है कि लोग मोबाइल को पूरी तरह निजी संपत्ति समझते हैं।

नोमोफोबिया

मोबाइल के खराब होने का खतरा, सिग्नल न आने का भय और फोन की बैट्री खत्म होने की चिंता के बार-बार सताने की स्थिति को ही नोमोफोबिया कहते हैं। यह ‘नो मोबाइल फोन फोबिया’ का संक्षिप्त रूप है। कई बार सिग्नल न मिलने, लो बैट्री, कैश कार्ड में बैलेंस न रहने, किसी दूसरे सेलफोन से कॉन्टेक्ट न होने या फोन के डैमेज होने से यह परेशानी ज्यादा बढ़ने लगती है।

कुछ की वर्ड्स

फैंटम रिंग :- हर समय मोबाइल की रिंगटोन या वाइब्रेशन महसूस करना, जबकि असल में ऐसा कुछ होता ही नहीं है।
पॉकेट पैटर :- यह शब्द उन लोगों के लिए इस्तेमाल होता है जिन्हें बार-बार जेब या पर्स चैक करने की आदत होती है। यह लोग ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि उन्हें महसूस होता है कि कही मोबाइल बज तो नहीं रहा, मोबाइल सही सलामत तो रखा है न।
ह्यूमन एंटीना :- अपने फोन को एक खास हाइट तक उठाने के लिए बांह को फैलाना ताकि फोन को मजबूत सिग्नल मिलें।

ऐसे बच सकते हैं

  • अगर मोबाइल का प्रयोग न हो तो उसे अपने पास रखने के बजाए दूर रखें।
  • ज्यादा लंबे समय तक फोन पर बात करने से बचें।
  • मोबाइल फोन को पैंट या शर्ट की जेब या फिर पर्स में रखने की बजाए हाथ में ही रखें।
  • बिना वजह की चैटिंग या एसएमएस की आदत में सुधार करें।
  • बार-बार अगर मोबाइल पर नजर जा रही है तो कुछ देर तक के लिए स्विच आॅफ कर दें।
  • वाइब्रेट मोड की बजाए रिंगर टोन का वॉल्यूम तेज कर दें।