सबगुरु न्यूज-पटना। दीपावली बीतने के बाद उत्तर भारत में छठ महापर्व की छटा छाने लगी है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ ही देश भर में जहां भी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग प्रवास कर रहे हैं वहां पर छठ महापर्व की तैयारियों को रंग रूप दिया जा रहा हैं। जहां पर इन दोनों प्रांतों के बांशिंदें काफी संख्या में हैं वहां पर प्रशासन और जहां पर कम संख्या में वहां पर समाज बंधु ही अपनी ही लोक आस्था को जीवंत करने में जुटे हुए हैं।
लोक आस्था के महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान 4 नवंबर से शुरू हो रहा है। इस महापर्व में छठी मइया के साथ सूर्यदेव भी की जाती हैं। दीपावली के ठीक छह दिन बाद कार्तिक माह की षष्ठी को डूबते हुए सूर्य और सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य को देने की परंपरा है। इस पर्व में बिना डाला या सूप पर अर्घ्य दिए छठ पूजा पूरी नहीं होती है। शाम को अर्घ्य को गंगा जल के साथ देने का प्रचलन है जबकि सुबह के समय गाय के दूध से अर्घ्य दिया जाता है।
-अर्घ्य देते समय इन बातों का रखें ध्यान
– छठ के दिन सूर्य को ताम्बे के पात्र में दूध से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।
– पीतल के पात्र से दूध का अर्घ्य देना चाहिए।
– चांदी, स्टील, शीशा व प्लास्टिक के पात्रों से भी अर्घ्य नहीं देना चाहिए।
-पीतल व ताम्बे के पात्रों से अर्घ्य प्रदान करना चाहिए।
-अर्घ्य में इन के सामानों का है यह महत्व
सूपः अर्ध्य में नए बांस से बनी सूप व डाला का प्रयोग किया जाता है। सूप से वंश में वृद्धि होती है और वंश की रक्षा भी।
गन्नाः गन्ना आरोग्यता का घोतक है।
ठेकुआः ठेकुआ समृद्धि का घोतक है।
मौसमी फलः मौसम के फल ,फल प्राप्ति के घोतक हैं।