केंद्रीय मंत्री अरूण जेटली ने कांग्रेस पार्टी के मौजूदा दौर को पार्टी की सबसे कमजोर स्थिति बताते हुए कहा है कि मुझे उम्मीद थी कि शीला दीक्षित पार्टी छोडक़र आराम करेंगी लेकिन कांग्रेस पार्टी ने शीला दीक्षित को उत्तरप्रदेश में पार्टी के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया है।
एक समारोह के दौरान जेटली ने कहा कि कांग्रेस पार्टी अभी अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है और इसलिए एक के बाद एक निर्णय कर रही है। अरुण जेटली ने इस अवसर पर यह भी कहा कि कांग्रेस को उत्तरप्रदेश में इस बार वोट नहीं मिलेंगे और यही स्थिति अन्य राज्यों में होगी। केन्द्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली की इस राजनीतिक भविष्यवाणी की सच्चाई तो उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव संपन्न होने और उसके नतीजे घोषित होने के बाद ही पता चल पाएगी।
लेकिन जेटली की इन बातों से स्पष्ट है कि व्यक्ति चाहे जीवन में कितने भी पद व प्रतिष्ठा हासिल कर ले लेकिन अगर उसमें नैतिकता का विकास एवं संस्कारों का समावेश नहीं हो पाया तो उसकी पूरी श्रेष्ठता निरर्थक ही रहती है। अरुण जेटली शीला दीक्षित को कांग्रेस द्वारा उत्तरप्रदेश में सीएम पद का उम्मीदवार बनाये जाने को लेकर ऐसे समय में सवाल उठा रहे हैं जब भारतीय जनता पार्टी में बुजुर्ग नेताओं के सम्मान एवं प्रतिष्ठा को कायम रखने संबंधी प्रतिबद्धताओं का अकाल सा नजर आ रहा है।
जेटली को चाहिए था कि वह शीला दीक्षित के मुद्दे पर कांग्रेस को निशाना बनाने के बजाय इस बात पर विचार करते कि कहीं कांग्रेस पार्टी अपने बुजुर्ग नेताओं का सम्मान बरकरार रखने के मामले में भारतीय जनता पार्टी से आगे तो नहीं निकल गई है। क्योंकि लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार, झारखंड के वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा को तो उनके उम्रदराज होने के चलते भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा पहले ही राजनीतिक बियावान में धकेल दिया गया है।
भाजपा के इन नेताओं द्वारा खुलकर कई बार अपने अंतर्मन की पीड़ा जाहिर करते हुए कहा गया कि हमारी पार्टी ने हमें ब्रैन डेड घोषित कर दिया है। इसके अलावा हाल ही में मध्यप्रदेश के मंत्रिमंडल विस्तार में बाबूलाल गौर और सरताज सिंह को उनके बुजुर्ग होने के कारण उन्हें मंत्रिमंडल से हटाया गया है साथ ही केन्द्रीय मंत्रिमंडल से भी नजामा हेपतुल्ला की उनकी अधिक उम्र होने के कारण छुट्टी कर दी गई है।
उससे स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी को दूसरों पर तोहमत लगाने के बजाय खुद आत्मचिंतन और आत्मविश्लेषण करने की जरूरत है कि क्या पार्टी की संगठनात्मक, सृजनात्मक एवं आंदोलनत्मक गतिविधियों के माध्यम से पार्टी का ग्राफ बढ़ाने में जिन नेताओं ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया, क्या वृद्धावस्था में उन्हें इसी तरह उपेक्षा व अपमान का घूंट पिलाया जाना चाहिए, जैसा भारतीय जनता पार्टी में हो रहा है।
कांग्रेस पार्टी में अगर 78 वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व राज्यपाल शीला दीक्षित को यूपी के सीएम पद का उम्मीदवार बनाया गया है तो इसके लिए तो कांग्रेस की तारीफ की जानी चाहिए तथा भाजपा को इसका अनुसरण करना चाहिए कि कांग्रेस ने एक लोकप्रिय और प्रतिबद्ध नेत्री को यूपी चुनाव की कमान सौंपी है।
वैसे भी जेटली जैसे नेताओं को गंभीरतापूर्वक यह समझने की जरूरत है कि नैतिकता और प्रतिबद्धता का कभी दोहरा मापदंड नहीं हुआ करता तथा सिर्फ विरोध के लिए विरोध की राजनीति करना व किसी की भी अनावश्यक आलोचना करना खुद अपने लिए ही आत्मघाती है।
उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस या अन्य राजनीतिक दलों की स्थिति क्या होगी यह तो राज्य के मतदाता तय करेंगे। जेटली जैसे नेताओं को चाहिए कि वह विरोधी राजनीतिक दलों का वजूद खत्म जैसा हो जाने की भविष्यवाणी करने के बजाय अपनी पार्टी राजनीतिक भविष्य पर ध्यान दें।
क्योंकि दिल्ली, बिहार, बंगाल, केरल आदि राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीेजे पहले ही यह साबित कर चुके हैं कि भाजपा नेताओं का अहंकार एवं उच्छंखलता ही पार्टी की राजनीतिक संभावनाओं का बेड़ा गर्क होने का कारण बन रहा है।
यूपी में जो विधानसभा चुनाव 2017 में होने वाले हैं, उसके लिए भारतीय जनता पार्टी अभी तक अपना कोई चेहरा ही तय नहीं कर पाई है अर्थात् किसी भी नेता को पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार ही घोषित नहीं किया जा सका है तो जेटली जैसे नेता अपनी ऊर्जा को अपनी पार्टी के इन मुद्दों के समाधान में खर्च करें। साथ ही भाजपा के वयोवृद्ध नेताओं का खोया हुआ सम्मान उन्हें वापस देने की दिशा में कुछ कारगर पहल करें।
सुधांशु द्विवेदी