ठाणे। नोटबंदी के बाद 6 दिनों के भीतर ही देश भर के जिला सहकारी बैंकों (डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक्स) के पास 9 हजार करोड़ रुपए जमा हुए।
नवंबर से नोटबंदी की शुरूआत हुई थी और नवंबर 10 से नवंबर 15 के बीच 17 राज्यों के जिला सहकारी बैंकों के 9 हजार करोड़ रुपए की धनराशि आई।
नुकसान और बड़ी मात्रा में नॉन परफॉर्मिंग असेट्स की समस्या से जूझ रहे सहकारी बैंकों के पास अचानक से 147 करोड़ रुपए (पुरानी करंसी में) से ज्यादा जमा हुए। इसकी जानकारी मिलते ही सरकार ने इन बैंकों को 500 और 1000 के पुराने नोट स्वीकार करने से मना कर दिया गया। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि कालाधन रखने वाले जिन लोगों की सहकारी बैंकों में अच्छी पहचान थी, उन्होंने बड़ी मात्रा में अपनी अघोषित संपत्ति को नए नोटों में बदलवा लिया।
नाबार्ड के पूर्व मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. केजी कर्मकार का कहना है कि कई सालों से यह प्रचलन चला आ रहा है कि नेता किसानों के नाम पर सहकारी बैंकों में अपने अकाउंट्स खुलवाते हैं और फिर मनी लॉन्ड्रिंग के लिए उनका इस्तेमाल करते हैं। अधिकारियों ने केरल के बैंकों के आंकड़ों पर विशेष आश्चर्य जताया क्योंकि इस राज्य में कृषि की हालत कुछ अच्छी नहीं है, फिर भी यहां के सहकारी बैंकों में 1,800 करोड़ रुपए जमा हुए। कुछ ऐसे ही हालात पंजाब के भी हैं, जहां पर 20 से ज्यादा सहकारी बैंकों के पास 1,268 करोड़ रुपए आए। महाराष्ट्र में कोऑपरेटिव मूवमेंट में लगातार गिरावट हो रही है और एक तरफ जिलास्तरीय बैंकों का राजनीतिकरण भी हो रहा है। इसके बाद भी यह राज्य डिपॉजिट के मामले में तीसरे स्थान (1,128 करोड़ रुपए) पर है।
जिला सहकारी बैंकों में पुराने नोटों की बदली के आरबीआई के फैसले पर बात करते हुए कर्मकार ने कहा कि यह बहुत ही अच्छा फैसला है। उनका मानना है कि इस फैसले से मनी लॉन्ड्रिंग पर तो लगाम लगेगी ही। साथ ही, सहकारी बैंक नकली नोटों की समस्या से भी बच पाएंगे। आमतौर पर इन बैंकों में नकली नोटों की जांच की सुविधा नहीं होती है।