गुरुग्राम। एक दुर्लभ किडनी की बीमारी से पीड़ित ओडिशा की एक साढ़े तीन साल की लड़की को शहर के एक अस्पताल में एक बेमेल किडनी प्रत्यारोपण के जरिए ठीक किया गया।
चिकित्सकों का दावा है कि यह प्रक्रिया पूरे दक्षिण एशिया में इस तरह के युवा रोगी पर पहली बार अपनाई गई है। इस पूरी प्रक्रिया में शल्य चिकित्सा की कीमत 24 लाख रुपए आई है।
प्रत्याशा में रिफलेक्स न्यूरोपैथी की पहचान की गई थी, जब वह सिर्फ एक महीने की थी और वह पेशाब नहीं कर सकती थी। इस बीमारी के कारण पेशाब शरीर से बाहर जाने के बदले किडनी की तरफ आता था, जिससे किडनी की समस्या बढ़ रही थी और बाद यह फेल हो जाती।
प्रत्याशा के माता-पिता ने मेदांता-मेडिसिटी के चिकित्सकों से सलाह ली। इसका एक मात्र इलाज किडनी प्रत्यर्पण था। हालांकि, कोई संगत रक्त समूह के दाता नहीं थे।
करीब छह महीने की खोज के बाद अस्पताल के किडनी और यूरोलॉजी इंस्टीट्यूट ने मां की दाता के रूप में किडनी लेने का फैसला किया और इस तरह से बेमेल रक्त समूह प्रत्यारोपण किया गया। बच्चा बी पाजिटिव था और मां ए पाजिटिव थी।
आमतौर पर प्रत्यारोपण तभी होते हैं, जब मेल वाले दाता पाए जाते हैं। बेमेल प्रत्यारोपण में सबसे बड़ा खतरा है कि हाइपर एक्यूट विफलता का होता है, जिससे मौत भी हो सकती है।
मेदांता के चिकित्सकों ने कहा कि बेमेल प्रत्यारोपण को सफल बनाने के लिए उन्होंने एंटीबॉडीज को हटाने का एक विशेष प्रोटोकॉल डिजाइन किया। इसके बाद प्रत्यारोपण किया, जिसमें मां उसकी दाता थी।
पीडियाट्रिक नेफ्रोलॉजी के मेदांता में विशेषज्ञ सिद्धार्थ सेठी ने कहा कि हमारे पास एक संगत दाता नहीं था, इसलिए हमें एक अंसगत किडनी प्रत्यारोपण करना पड़ा। तीन साल के बच्चे की डायलसिस करना आसान नहीं है।
एक उचित योजना तैयार करने के बाद हमने एंटीबाडी सेल्स को कम किया। हमने एक दवा रितुसीम्ब का इस्तेमाल किया। आजकल हमारे पास एंटीबाडीज हटाने के लिए इम्यूनोएडजार्बशन की विधि है।