उज्जैन।
इसके बाद 27 किमी लम्बी नगर पूजा की पैदल यात्रा शुरू होगी, जो रात्रि तक चलेगी। नगर पूजा का समापन महाकाल के शिखर पर ध्वज अर्पित कर होगा।
इस बार तिथियों के घालमेल के चलते मंगलवार दोपहर बाद अष्टमी का पूजन परिवारों ने किया। हालांकि बुधवार को सूर्याेदय में अष्टमी प्राप्त होने से नगर पूजा बुधवार प्रात: चौबीसखंबा माता मंदिर से प्रारंभ होगी। इसके पूर्व पूजन सम्पन्न होगा। इधर बुधवार दोपहर बाद नवमी लग जाएगी। इसके चलते शाम को श्रद्धालु नवमी का महापूजन भी सम्पन्न करेंगे। वहीं गुरूवार को दोपहर बाद से दशमी होने से रावण के पुतले का दहन, अपराजीता देवी की पूजा, नगर सीमा की पूजा सम्पन्न होगी।
इसलिए होती है नगर पूजा का
नगर पूजा का इतिहास राजा विक्रमादित्य के समय से राजकीय पूजा के रूप में प्रारंभ हुआ था, ऐसी मान्यता है। जो किवदंति प्रचलित है, उस अनुसार-
उज्जयिनी में एक दिन का राजा होता था। प्रतिदिन जब राजा शयन करता तो रात्रि में देवियां उसका भोग लेती। इस कारण नगर में रोजाना किसी एक व्यक्ति को राजा बनाया जाता था। एक दिन एक गरीब माता-पिता के इकलोते बेटे का नम्बर राजा बनाने हेतु आया तो वह रोने लगा। विक्रमादित्य उस गरीब के यहां रात गुजारने के लिए ठहरे थे। उन्होने पूरी कहानी सुनी तो चौंके। उन्होने गरीब से कहाकि तुम निश्चिंत रहो, तुम्हारे पुत्र की जगह मैं एक दिन का राजा बनूंगा। विक्रमादित्य ने पता किया कि देवियां भोग लेने के लिए राजमहल तक आती हैं। पूरे मार्ग में उन्होने देवियों की रूचिकर भोज्य सामग्री रखवा दी। साथ ही मदिरा, इत्र, वस्त्र, आभूषण भी रखवाए।
रात्रि में विक्रमादित्य राजा के शयन कक्ष में गए और पलंग के नीचे सो गए। पलंग पर मिठाईयां रखवा दी। देवियां रास्तेभर भोजन करते आई और जब भोजन कक्ष में प्रवेश किया तो मिठाईयां देखकर प्रसन्न हुई। इसी समय पलंग के नीचे से विक्रमादित्य बाहर आए और देवियों को प्रमाण किया। देवियों ने प्रसन्न होकर उनसे कहाकि वरदान मांगेे? विक्रमादित्य ने कहाकि वे अब इस प्रकार से हर एक दिन राजा का भोग लगाना बंद करे। वह उनके लिए भोजन की व्यवस्था करेंगे। इसप्रकार उज्जयिनी पर विक्रमादित्य का राज्य रहा और वे हर वर्ष शारदीय नवरात्र में महाष्टमी पर नगर पूजा करके देवियों को खुश रखने लगे। यह परंपरा आज भी कायम है। स्वतंत्रता के बाद से नगर के राजा का स्थान कलेक्टर ने लिया और वे स्वयं देवी महामाया तथा महालया को मदिरा का भोग लगाते हैं।
27 किमी चलती है मदिरा की धारा
नगर पूजा के दौरान 27 किलोमीटर तक मदिरा की धार चलती है । प्रशासन की ओर से एसडीएम,तहसीलदार, पटवारी, कोटवार पूजा करते जाते हैं। यात्रा में चौबीसखंबा मंदिर पर महामाया और महालया, अद्र्धकाल भैरव कालियादेह दरवाजा, कालिकामाता, नयापुरा स्थित खूंटपाल भैरव, चौसठयोगिनी मंदिर,लाल बई, फूल बई, शतचण्डी देवी, राम-केवट हनुमान, नगरकोट की रानी, नाकेवाली दुर्गा मां, खूंटदेव भैरवनाथ, बिजासन मंदिर, चामुण्डा माता मंदिर, पद्मावती मंदिर, देवासगेट भैरव, इंदौरगेटवाली माता, ठोकरिया भैरव, इच्छामन भैरव, भूखीमाता, सती माता, कोयला मसानी भैरव, गणगौर माता, श्मशान भैरव, सत्ता देव, आशा माता, आज्ञावीर बेताल भैरव, गढक़ालिका, हांण्डीफोड़ भैरव की पूजा प्रमुख रूप से की जाती है।
इन्हे चढ़ता है चोला/श्रृंगार सामग्री
यात्रा के दौरान भैरव एवं हनुमान मंदिर में सिंदूर का चोला चढ़ाया जाता है वहीं देवियों को सुहागिन की श्रृंगार सामग्री, चुनरी भी अर्पित की जाती है।
पूजा सामग्री के प्रकार
तेल के डिब्बे, सिंदूर, चांदी के वर्क, कुमकुम, मेहंदी, चूडिय़ां, चूंदड़ी, सोलह श्रृंगार के सेट, चमेली के तेल की शिशी, नारियल, चना का बाकल, कोडिय़ां, पूजा की सुपारी, सिंघाड़ा सूखा, लाल नाड़ा, लाल कपड़ा, गोटा किनारी, गुगल, अगरबत्ती, कोरे पान डण्ठलवाले, कपूर, भजिये, पूरी, दही, दूध, शकर, नीबू, काजल डिब्बी, बिंदी, तोरण, लाल कपड़े के झण्डे, जनेऊ, मिट्टी की हाण्डी, पीतल के लोटे जिनके पेंदे में छेद होती है तथा मदिरा की धारा जिससे चलती है। साथ ही मदिरा की बोतलें।