मुंबई। सिनेमा की दुनिया आज सवेरे उस वक्त स्तब्ध रह गई, जब ओमपुरी के निधन की खबर ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया।
बताया जाता है कि उनका निधन दिल का दौरा पड़ने से हुआ। वे कल शाम किसी फिल्म की शूटिंग करके घर लौटे थे। शुक्रवार सुबह जब उनकी कार का ड्राइवर घर पंहुचा, तो दरवाजा न खुल पाने की वजह से पड़ोसियों को सूचित किया गया। दरवाजा खुला, तो वे अपने बिस्तर पर मृत पाए गए।
66 साल के ओमपुरी का अंतिम संस्कार आज शाम तक अंधेरी के ओशिवारा में होगा। इससे पहले पोस्टमार्टम के लिए उनके पार्थिव शरीर को विर्ले पार्ले के अस्पताल ले जाया गया। ओमपुरी के देहांत की खबर से बॉलीवुड में मातम छा गया।
फिल्मकार अशोक पंडित और अभिनेता अनुपम खेर सबसे पहले उनके घर पर पंहुचने वालों में से थे। अशोक पंडित ने ही सोशल मीडिया पर ओमपुरी के निधन की खबर दी, जिसे सुनकर हर कोई दंग रह गया।
बॉलीवुड की तमाम हस्तियों ने ओमपुरी के निधन पर शोक जताया है। हाल ही में अपने कुछ बयानों को लेकर विवादों में रहे अोमपुरी ने विश्व सिनेमा में अपनी पहचान बनाई थी। साथ ही वे चंद ऐसे कलाकारों में से थे, जिन्होंने पाकिस्तान की फिल्मों में भी काम किया।
पिछले साल ही ओमपुरी अपनी पाकिस्तानी फिल्म एक्टर इन लॉ के प्रमोशन के लिए लाहौर, कराची के दौरे पर गए थे। अपने लंबे करियर के दौरान ओमपुरी ने 20 से ज्यादा विदेशी फिल्मों में काम किया था।
केंद्र सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित ओमपुरी को अपनी पहली हिंदी फिल्म अर्धसत्य के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। ब्रिटेन में उनको सर की उपाधि से नवाजा गया था। ओमपुरी का जन्म 18 अक्तूबर, 1950 को अंबाला में हुआ, जो उस वक्त पंजाब का हिस्सा था।
उनके पिता सेना में रहे और साथ ही रेल्वे में भी काम किया। अपने चार भाईयों में वे नंबर दो पर थे। ओमपुरी का बचपन पंजाब में सन्नूर में बीता, जहां उनके पिता की रेलवे में पोस्टिंग हुई थी।
ओमपुरी को बचपन से ड्रामे का शौक रहा। कहा जाता है कि बचपन से वे रामलीलाओं के मंच पर जाने लगे। उनके पिता चाहते थे कि वे सरकारी नौकरी करें, लेकिन ओमपुरी का दिल अभिनय के लिए धड़कता था।
घर की आर्थिक स्थिति बहुत बेहतर न होने के बाद भी उन्होंने दिल्ली का रुख किया और वे नेशनल स्कूल आफ ड्रामा (एनएसडी) से जुड़ गए। वहां उनको नसीरुद्दीन शाह का साथ मिला।
1973 के बैच में नसीर और ओमपुरी, दोनों साल से बेस्ट स्टूडेंट चुने गए। एनएसडी के ओमपुरी का रुख पुणे के इंस्टिट्यूट की तरफ हुआ, जहां उन्होंने दो साल का कोर्स किया। पुणे इंस्टिट्यूट में नसीर, ओमपुरी, शबाना आजमी, स्मिता पाटिल, दीप्ति नवल का एक ग्रुप जैसा बन गया था।
ओमपुरी ने पुणे से कोर्स करने के बाद 70 के दशक के मध्य में अपना संघर्ष शुरु किया। शुरुआती दौर में साधारण चेहरे को देखते हुए पहला मौका पाने के लिए ओमपुरी को काफी कड़ा संघर्ष करना पड़ा।
1976 में मराठी फिल्म घासीराम कोतवाल में पहला मौका मिला, जहां उनका रोल बहुत बड़ा नहीं था, लेकिन उस वक्त कमर्शियल सिनेमा की दुनिया के साथ ही कला फिल्मों का दौर तेजी पकड़ रहा था, जिसका फायदा ओमपुरी को मिला।
गोविंद निहलानी, जो एक सच्ची घटना पर फिल्म बनाना चाहते थे और चाहते थे कि अमिताभ बच्चन उनकी फिल्म में काम करें, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ, तो ओमपुरी को मुख्य भूमिका में लेकर गोविंद निहलानी ने अाक्रोश बनाई, जो 1980 की बड़ी हिट फिल्मों की लिस्ट में दर्ज हुई और इस फिल्म की कामयाबी ने कला फिल्मों के निर्देशकों को ओमपुरी से परिचय करा दिया।
श्याम बेनेगल, केतन मेहता, गौतम घोष जैसे फिल्मकारों की वे पसंद बनते चले गए। 80 के दशक में जहां एक तरफ कमर्शियल सिनेमा में अमिताभ बच्चन का जलवा था, तो नसीर और ओमपुरी ने समांतर सिनेमा को ऊंचाइयों पर पंहुचाने का काम किया।
1983 में आई अर्धसत्य में मुंबई पुलिस के एक तेजतर्रार पुलिस अधिकारी के रोल में ओमपुरी ने अपने अभिनय का जलवा ऐसा दिखाया कि इसकी खनक राष्ट्रीय पुरस्कारों तक पंहुची और इस फिल्म के लिए उनको बेस्ट एक्टर का नेशनल एवार्ड मिला।
अपने 40 साल से भी ज्यादा लंबे फिल्मी सफर में ओमपुरी ने 300 से ज्यादा फिल्मों में काम किया, जिनमें हिंदी के अलावा पंजाबी, मराठी, बंगला, असमी, भोजपुरी, गुजराती और 20 से ज्यादा इंटरनेशनल फिल्मों में काम किया।
हिंदी में उनकी अंतिम रिलीज फिल्म राकेश मेहरा की मिर्जियां रही, जो सात सितम्बर 2016 को रिलीज हुई थी।
कला और कमर्शियल सिनेमा में संतुलन ओमपुरी की शुरुआत आर्ट सिनेमा से हुई और जल्दी ही उनको कला फिल्मों के चेहरे की पहचान मिली, लेकिन ओमपुरी को जल्दी ही समझ में आ गया कि अभिनय के जौहर दिखाने के लिए अगर कला फिल्मों का मंच जरुरी है, तो पैसों के लिए कमर्शियल सिनेमा को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
80 के दशक में ओमपुरी ने कलात्मक सिनेमा के साथ साथ कमर्शियल सिनेमा में भी संतुलन बनाना शुरु किया। बी सुभाष की फिल्म डिस्को डांसर में उनको जिमी (मिठुन चक्रवर्ती का किरदार) के मैनेजर के रोल में देखा गया, तो इसके बाद वे लगातार कमर्शियल फिल्मों में काम करते रहे।
कलात्मक फिल्मों की दुनिया में अाक्रोश, अर्धसत्य, स्पर्श, भूमिका, मंडी, भवानी भवई, सत्यजीत रे की सदगति, कलियुग, आरोहण, मिर्च मसाला, धारावी, पार, होली, एलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है और जाने भी दो यारो उनके करियर में मील का पत्थर बनीं, तो कमर्शियल सिनेमा में इलाका, जंगबाज, घायल से लेकर नरसिम्हा, अंगार, हाल ही के सालों में वे डॉन, दबंग, अग्निपथ और बजरंगी भाईजान फिल्मों में नजर आए। पिछले दिनों वे सलमान खान की नई फिल्म ट्यूबलाइट की शूटिंग कर रहे थे।
अंतर्राराष्ट्रीय स्तर पर पहचान ओमपुरी भारत के चंद एेसे कलाकारों में से थे, जिनको अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा के साथ पहचान मिली। अपने कैरिअर में 20 से ज्यादा विदेशी फिल्मों में काम कर चुके ओमपुरी एक तरफ लास एजेंल्स के हालीवुड सिनेमा से जुड़े, तो दूसरी ओर ब्रिटिश सिनेमा में भी उनको महत्वपूर्ण स्थान मिला।
ओमपुरी की ब्रिटिश फिल्मों में माई सन इज फेनेटिक (1997), ईस्ट इज ईस्ट (1999) और द पेरोल ऑफिसर (2001) प्रमुख रहीं, तो हालीवुड में उन्होंने सिटी ऑफ जाय (1992), वोल्फ (1994), डार्कनेस (1994) जैसी बेहतरीन फिल्मों में काम किया।
1982 में रिचर्ड एटेनबरो की गांधी में उन्होंने काम किया, तो 2005 की फिल्म हैंगमैन के अलावा चार्ली विल्सन की फिल्म वार में उन्होंने पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल जियाउल हक का किरदार निभाया, जिसमें टाक हैंक्स और जूलिया राबर्टस ने भी काम किया था।
टीवी सीरियलों तक जुड़ाव
ओमपुरी ने अपने लंबे कैरिअर में कई टीवी सीरियलों में भी काम किया। श्याम बेनेगल के शो भारत की एक खोज से लेकर गोविंद निहलानी के तमस के अलावा 1988 में काकाजी कहिन में उन्होंने दर्शकों को हंसाया।
1989 में मि. योगी में वे सूत्रधार के तौर पर थे, तो 2002 में वे विजय जासूस शो से जुड़े। खानदान, कथासागर, यात्रा, सी हाक, अंतराल और सावधान इंडिया के दूसरे सीजन से भी ओमपुरी का साथ रहा।
विवादों का साया
आम तौर पर बेहद मिलनसार ओमपुरी का हाल ही में विवादों के साथ नाम लगातार जुड़ता रहा। पिछले साल जब ऊरी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में तनाव था, तो एक न्यूज चैनल की बहस में उन्होंने एक सैनिक को लेकर अपशब्द कह दिए थे, जिनको लेकर हंगामा हुआ था। बाद में अपने शब्दों के लिए ओमपुरी ने न सिर्फ माफी मांगी, बल्कि उस मृतक सैनिक के घरवालों से भी मिलकर अपने शब्दों पर खेद जताया।
अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान मंच से उन्होंने सांसदों के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया था कि उनको संसद में बुलाया गया और उनको माफी मांगने के लिए कहा गया। माना गया कि शराब के नशे में उन्होंने सांसदों के लिए अभद्र शब्दों का इस्तेमाल किया था। अपनी पत्नी नंदिता के साथ ओमपुरी के रिश्ते बिगड़े हुए बताए जाते थे।
2013 में दोनों के बीच तलाक हो गया था। ओमपुरी पर अपनी नौकरानी के साथ शारीरिक रिश्ते रखने का आरोप भी लगा था।