स्टार क्रिकेटर गौतम गंभीर ने अपनी मृत्यु के बाद अपने अंगों को दान देने का फैसला किया है। गंभीर ने कहा कि हजारों लोग हर साल अंग न मिलने की वजह से मर जाते हैं। मुझे लगता है कि अंग दान देने से हम इस कमी को कुछ हद तक पूरा कर सकते हैं, जिससे समाज का भला होगा।
मैं मौत के बाद अपने सभी अंगों को दान करने का वादा करता हूं। इसके साथ ही मैं अपने टीम के खिलाड़ियों के अलावा सबसे ऐसा ही करने की अपील करूंगा।
बेशक, अंगदान को लेकर जागरूरता पैदा करने की जरूरत है। इसे आंदोलन का रूप दिया जाना चाहिये। गंभीर की ही तरह से आनंद गांधी की फिल्म ‘शिप ऑफ थीसस’ से प्रेरणा लेने के बाद आमिर खान की पत्नी और निर्देशिका किरण राव ने भी अंग दान करने की घोषणा की है।
उसने अपने एक हालिया इंटरव्यू में कहा कि पहले वो सोचती थी कि हम केवल अपनी आंखें दान कर सकते हैं, लेकिन; तथ्य यह है कि हमारे शरीर का हर अंग किसी का जीवन बचाने के काम आ सकता है।
मैंने स्वयं 2010 में ही गंगाराम अस्पताल, दिल्ली को मरणोपरांत अपने सभी अंगों को दान कर दिया था। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार भारत में हर साल करीब दो लाख गुर्दे दान करने की जरूरत होती है, लेकिन मौजूदा समय में 7,000-8,000 से भी कम गुर्दे मिल पाते हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार भारत मे 50000 लोगों को दिल प्रतिरोपण की आवश्यकता है, जबकि; उपलब्धता केवल 10 से 15 की ही है। दूसरी तरफ प्रतिवर्ष 50000 लोगों को लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता है, जबकि 700 लोगों को ही डोनर मिल पाते हैं।
भारत में प्रति दस लाख व्यक्ति में अंगदान करने वालों की संख्या सिर्फ 0.8 है। विकसित देशों, जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, नीदरलैंड्स और जर्मनी में यह संख्या औसतन 10 से 30 के बीच है। स्पेन में प्रति दस लाख लोगों में 35.1 अंगदान करते हैं।
हमारे देश में अंगदाताओं की संख्या के इस कदर होने के पीछे कई कारण हैं, जैसे सही जानकारी का अभाव, धार्मिक मान्यताएं, सांस्कृतिक भ्रांतियां और पूर्वाग्रह। लेकिन, यह भी सच है कि भारत मे अंगदान की परंपरा महर्षि दधीचि के समय से चली आ रही है।
पुराणों की कथा के अनुसार देव-दानव संग्राम में देवता बार-बार हार रहे थे और एसा लग रहा था कि दानव ही अंततः विजयी हो जाएंगे। घबराए हुए देवता सहायता के लिए ब्रह्मा जी के पास गए । ब्रह्मा जी ने कहा कि पृथ्वी पर एक ऋषि रहते हैः दधीचि!
उनकी तपस्या से उनकी हड्डियों में अनन्त बल का प्रादुर्भाव हुआ है। उनसे, इनकी हड्डियों का दान मांगो। उससे ‘वज्र’ नामक शस्त्र बनेगा, वह शस्त्र दानवों को परास्त कर देवों को विजयी बनाएगा। इन्द्र ने दधीचि से उनकी हड्डियाँ मांगी। पुलिकित दधीचि ने ध्यानस्थ हो प्राण त्याग दिए। उनकी अस्थियों से बने वज्र ने देवताओं को विजय दिलवाई।
पर इसी भारत में हर साल लाखों लोग किडनी, लीवर, हृदय और शरीर के अन्य अंगों के काम नहीं करने से कम उम्र में ही जान गंवा देते हैं या दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। अंगदान से कइयों की जिंदगी बचाई जा सकती है। लेकिन, अंगदान के प्रति लोगों में न सिर्फ जागरूकता की कमी है, बल्कि इसके प्रति समाज में भ्रांतियां भी हैं। इन्हीं भ्रांतियों को दूर करने की आवश्यकता है।
सरकार ने अंगदान को बढ़ावा देने के लिए कुछ निर्णायक पहल किए हैं और सभी प्रमुख सरकारी अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण की सुविधा शुरू की है। बेशक अंगदान मामले में सरकार की ओर से विलंब हुआ है। लेकिन, अब स्वास्थ्य मंत्रालय सरकारी अस्पतालों में अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण में प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया है।
भारत में स्थिति चिंताजनक इसलिए भी है, क्योंकि; ज़्यादातर लोगों को पता ही नहीं है कि अगर वो अंगदान करना चाहते हैं तो कहां जाएं और किससे संपर्क करें। मेडिकल साइंस के अनुसार जीवित व्यक्ति के दो गुर्दों में से एक दान में दिया जा सकता है। जबकि, आंत और लीवर के अंश को किसी की जान बचाने के लिए दिया जा सकता है क्योंकि, कटे हुए आंत और लीवर अपने आप बढ़ जाते हैं।
एक मृत व्यक्ति द्वारा किए गए अंगदान से लगभग सात व्यक्तियों को जीवनदान मिल सकता है। अंगदान में एक बड़ी समस्या अस्पतालों द्वारा समय से रोगी को ब्रेन डेड घोषित न कर पाना भी है, जिसके बाद मृतक के अंग खराब होने लगते हैं। कई देशों में अंगदान ऐच्छिक न होकर अनिवार्य है।
सिंगापुर में हर नागरिक को स्वाभाविक अंगदाता मान लिया जाता है और ‘ब्रेन डेड’ घोषित किए जाने पर अस्पताल और सरकार का उसके अंगों पर अधिकार होता है। भारत में 1994 में मानवीय अंगों के प्रत्यारोपण के लिए कानून बनाया गया था, ताकि विभिन्न किस्म के अंगदान और प्रत्यारोपण को सुचारु रूप दिया जा सके।
हालांकि, हमारे यहां पर अंगदान को लेकर तमाम अड़चने हैं, तो भी कई परिवार इस बाबत शानदार उदाहरण पेस कर रहे हैं। बात करते हैं राजधानी के जुनेजा परिवार की। जुनेजा परिवार ने अपने बेटे अनमोल के एक हादसे में मारे जाने के बाद उसका शरीर राजधानी के एम्स अस्पताल को डोनेट करने का फैसला लिया।
बड़ी बात यह है कि इस परिवार में पहले से आंख दान की परंपरा रही है। अनमोल के दादा, दादी और नाना आंख दान कर चुके हैं। एक सड़क हादसे के शिकार अनमोल को ब्रेनडेड घोषित किया गया था। उसके परिवार वालों ने उसकी देह एम्स को सौंप दी।
इसका लाभ यह हुआ कि आठ लोगों को नई जिंदगी मिली। इसके अलावा, उसके कॉर्निया, वॉल्व, बोन्स, स्किन आदि ऑर्गन बैंक में जमा करा दिया गया, जो बाद में लोगों के काम आएंगे।
महत्वपूर्ण है कि ‘ब्रेनडेड’ वह स्थिति है जब लंबे समय तक दिमाग़ को खून न पहुंचने पर दिमाग़ की कोशिकाएं मृत हो जाती हैं और मरीज़ को बचाया नहीं जा सकता। इस स्थिति का सामना करने वाले कुछ लोग अपने करीबियों के ब्रेनडेड होने पर उसके अंग-दान करने का फैसला लेने लगे हैं। एक ब्रेनडेड आदमी से किडनी, हार्ट, लीवर, फेफड़े, कॉर्निया लिया जा सकता है।
बेशक, एक इंसान के शरीर के किसी अंग को किसी दूसरे इंसान में प्रत्योरोपित करना मेडिकल साइंस की दुनिया का चमत्कार है। इसके चलते हजारों-लाखों लोग मौत को हराने में सफल हो गए। पर, अगर बात भारत की करें तो अभी हम कमजोर साबित हो रहे हैं। भारत में अंगदान और देह दान को लेकर माहौल नहीं बन पा रहा है।
एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर साल करीब दो लाख लोगों को अंगप्रत्यारोपण की दरकार होती है। इनमें से ज्यादातर रोगी कम उम्र के होते हैं। इनकी जीने की उम्मीद इस बात पर निर्भर करती है कि इन्हें कोई कब अंगदान करेगा।
भारत में 1994 में सरकार ने ब्रेनडेड को अंगदान की स्वीकृति दी। लेकिन, सच ये है कि बीमार लोगों की अंगों की ज़रूरत आज भी अंगदान करने वालों की संख्या से कहीं ज़्यादा है।
अंगदान की इसी बढ़ती ज़रूरत को समझते हुए ‘ब्रेनडेड’ इंसान के अंगदान करने के बारे में जागरुकता फैलाने की जरूरत है। इस लिहाज से जागरुकता बढ़ाने में सेलिब्रेटीज और फिल्मों की अहम भूमिका हो सकती है।
अगर क्रिकेट और फिल्मी सितारे अंगदान और देहदान का वादा करें तो समाज इस तरफ गंभीरता से सोच सकता है। तब इस बाबत माहौल बनेगा। हां, इस लिहाज से पहल तो हो ही गई है।
बहरहाल, दुर्घटना, बीमारी या प्राकृतिक मौत की स्थिति में शरीर के अलग-अलग हिस्से दान किए जा सकते हैं। मौत के बाद शरीर को महज़ जला देने या दफ़ना देने से किसी का भला नहीं होगा और सच ये है कि अंगदान करने से कभी किसी का बुरा नहीं होता।
भारत में अंगदान की दर एक प्रतिशत से भी कम यानी मात्र 0.08 फीसद है। दूसरी तरफ स्पेन मंर यह दर 35, ब्रिटेन में 27, अमरीका में 26, कनाडा में 14 और आस्ट्रेलिया में 11 है।
भारत में हर साल यहां 6 हजार हार्टट्रांसप्लांट, बीस हजार लीवर ट्रांसप्लांट, तीन हजार बोनमैरोट्रांसप्लांट एवं डेढ़ लाख किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है लेकिन 2 प्रतिशत मरीजों को भी यह मयस्सर नहीं हो पाता है।
हर साल एक लाख मरीजों को किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है। लेकिन इसमें सिर्फ 5 हजार लोगों की ही जरूरत पूरी हो पाती है। 95 फीसदी अंग दान वे लोग करते हैं, जिनसे मरीज का खून का रिश्ता होता है।
अंग दान को लेकर डॉक्टर और मरीज़ कई अंधविश्वासों का भी सामना करते हैं। कई लोग समझते हैं कि अगर अंग दान कर देंगे तो अगले जन्म में वो हिस्से शरीर में नहीं होंगे।
अमरीका में यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के एक अध्ययन के मुताबिक कुछ लोग इस बात से डरते हैं कि उनको दिया गया अंग किसी हत्यारे का न हो। इस अध्ययन के अनुसार प्राप्त पक्ष के लोग ऐसे व्यक्ति के अंग, खून या डीएनए को प्रत्यारोपित करवाना चाहते हैं, जिसका व्यक्तित्व और व्यवहार उनसे मेल खाता हो।
पर दोनों पक्षों का आपसी परिचय कराए जाने से बचा जाता है। अंगदान प्राप्त करने वाले परिवार को यह नहीं बताया जाता कि अंगदान किसने किया है।हमारे यहां कई झूठी मान्यताएं भी काम कर रही हैं, मसलन लोग मानते हैं कि यदि मृत व्यक्ति की आंखों को दान दिया जाता है तो उसे स्वर्ग नहीं मिलता या फिर अगले जन्म में वह उस अंग के बिना जन्म लेता है। ऐसी धारणाओं को दूर करने के लिएठोस प्रयासकरने की जरूरत है।
: आर.के.सिन्हा