सबगुरु न्यूज-सिरोही। जैसा कि सबगुरु न्यूज ने पहले ही अपने समाचार के माध्यम से बताया था कि सिरोही राजकीय महाविद्यालय में चाहे कोई भी जीते हारेंगे सिरोही के विधायक और राज्य सरकार के गोपालन मंत्री ओटाराम देवासी और भाजपा के कुछ नेता और समाजसेवी ही। ऐसा ही हुआ।
यहां एबीवीपी की प्रत्याशी जिग्नाशा रावल बुरी तरह से परास्त हुई और जीत का सेहरा ओटाराम देवासी की जाति के निर्दलीय प्रत्याशी सुरेश देवासी के सिर पर बंधा। इसके परिणाम आने के बाद जिग्नाशा रावल इतना रोई कि उसकी सांसे तक अटकने लगी। शाम को ओटाराम देवासी का पुतला दहन यही बता रहा है कि जिग्नाशा के इन आंसुओं का बोझ आगामी विधानसभा चुनावों में गोपालन मंत्री ओटाराम देवासी को भारी पड सकता है।
दरअसल, जब से विजेता उम्मीदवार सुरेश देवासी निर्दलीय के रूप मे खडा हुआ है तब से ही इसके पीछे ओटाराम देवासी समेत सिरोही के तीन नेताओं और कुछ समाजसेवियों की बेकिंग होने की खबरे आ रही हैं। ओटाराम देवासी ने जिग्नाशा रावल के चुनाव कार्यालय के उद्घाटन में नहीं जाकर इस शक को यकीन में बदलने का काम कर दिया।
देवासी के खिलाफ एबीवीपी समेत जिग्नाशा के समाजबंधुओं में गुस्सा उबाल पर था। काउंटिंग के दौरान जिग्नाशा मतगणना कक्ष में ही थी। वहीं पर फफक-फफक कर रोने लगी। इतना रोई कि उसकी सांसे तक अटकने लगी। इस पर महाविद्यालय के व्याख्याता भगवानाराम बिश्नोई और अनिता जैन उसे बाहर लाए। उसके भाई को बुलाकर उसे चुप कराने को कहा।
भाई मनोज रावल जैसे ही उसके पास पहुंचा तो वह उसके कंधे पर अपना सिर रखकर और तेज रोने लगी। वो उसे चुप कराता रहा और आसपास खडे लोग इस दृश्य को किंकर्तव्यविमूढ से देखते रहे। जिग्नाशा के आंसुओं ने उसके समर्थकों के गुस्से की आग में घी का काम किया। इसकी परिणिति सरजवाव दरवाजे पर गोपालन मंत्री ओटाराम देवासी के पुतला दहन के रूप में बाहर आई।
इन चुनावों के दौरान एक देवासी और कुछ स्थानीय नेताओं द्वारा अपनी ही जाति के निर्दलीय को कथित समर्थन दिए जाने पर जातिगत राजनीति के एक नए समुह का नाम बाहर आया। इसे आरसीएम नाम मिला। इसमें तीन जातियों का पहला अक्षर लिया गया है, जो कि भाजपा के आधा दर्जन नेताओं के समर्थन से एबीवीपी और आरएसएस के खिलाफ मोर्चाबंदी करके खडी हुई थी।
जातिगत समीकरण देखा जाए तो जिग्नाशा जिस वर्ग से संबंध रखती है उसके सिरोही विधानसभा में 40 हजार मतदाता हैं। इनमें से सभी भाजपा यानि ओटाराम देवासी के ही मतदाता हैं। यदि विरोध का यही स्तर बरकारार रहा और इन 40 हजार मतदाताओं को यह आंसू चुनाव तक सालते रहे तो आगामी विधानसभा चुनावों में ओटाराम देवासी के लिए राह आसान नहीं होगी। महाविद्यालय के चुनावों में बाहरी नेताओं को हस्तक्षेप कभी कभी कितना भारी पड जाता है इसका उदाहरण सिरोही में सोमवार को देखने को मिल गया।
देखिये हार के बाद किस तरह भाई के कंधों पर फफक कर रोई जिग्नाशा रावल….