सबगुरु न्यूज़-सिरोही। राजनितिक महत्वकांक्षा में नेता किस हद जा सकते है इसकी बानगी ऊँचे स्तर पर ही नहीं निचले स्तर पर भी देखने को मिल रही है।
जो लोग नेता के सामने और जनता के बीच जय जय करते नहीं थकते वही पीठ पीछे उनकी कारसेवा करने से नहीं चूकते। ताजा मामला सिरोही में भी सुनने को मिला है। राजनीती में आने पर जो महत्व मिलना था वो नहीं मिलने पर कुछ पदाधिकारी लामबद्ध हुए। उन्होंने एक पत्र लिखकर पार्टी आलाकमान से जनप्रतिनिधियों की शिकायत कर डाली। पार्टी पदाधिकारी बनने पर जो नेता ये मानकर बैठे थे कि उन्हें हर गलत सही करने का लाइसेंस मिल गया है वही नेता अपनी ही पार्टी की और से की जा रही राजनितिक नियुक्तियों में उनकी राय नहीं लिए जाने से कुछ खफा दिखे।
लिहाजा वे अपनी ही पार्टियों के जनप्रतिनिधियों की शिकायत आला कमान से करने से नही चूके। हाल ही में एक ऐसे पत्र के भेजने की चर्चा सामने आई है जिसमे ये शिकायत है कि जनप्रतिनिधि उनकी राय जिले में होने वाली राजनीतीक नियुक्तियों में नहीं ले रहे हैं। सूत्रों के अनुसार इस पत्र को भेजने के लिए कंप्यूटर और मेल आईडी का इस्तेमाल हुआ है, जिस नेता ने अपना कंप्यूटर और मेल आई के इस्तेमाल की इजाजत दी है वो नेता सिरोही में इन्ही जनप्रतिनिधियो की गाडी में उनकी बगल की सीट पर बैठकर भाव पानी बनाते दिख जाते हैं । वैसे प्रतिद्वंद्वता का यही हाल रहा तो आने वाले विधानसभा चुनावों में सिरोही का राजनितिक परिदृश्य कुछ और होगा।
और इधर पहले कार सेवा अब जय जय
इधर दूसरी राजनीतिक पार्टी में दो दिन पहले सोशल मीडिया में वायरल हुई तस्वीरें अलग ही राजनितिक हालात पेश कर रही हैं। ये तस्वीर एक उदघाटन कार्यक्रम की है।
फीता काटने वाले और फीता और फीता कटवाने वाले नेता के बीच 2013 विधानसभा चुनावों तक सांप नेवले वाली स्थिति थी, सामने और पीछे एक दूसरे को काटने का कोई मौका ये लोग नही छोड़ते थे। यहाँ तक की विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आबूरोड सभा के दौरान ये एक दूसरे से खींचे खींचे दिखे।
अब उनकी घनिष्टता ऐसी नजर आ रही है कि लोग जय और वीरू को भी भूल जाएँ। फीता कटवाने वाले नेता के घनिष्ठो से जब इन लोगों के बीच उपजे अगाध प्रेम के बारे में पूछा तो बोले कि राजनीति में निष्ठाएँ और दुश्मनी स्थायी नहीं होती भाई साहब। ये इसी आधार और होती है कि कोई उन्हें कितना लाभ हानि पहुंचा सकता है।
उनका कहना था कि ये लाभ हानि दो ही चीज के होते हैं वोट बैंक और बैंक नोट के लिए। तो वेलनटाइन वीक में नजर आये इस गठजोड़ का क्या आधार है ये दोनों नेता ही जाने, लेकिन बताया ये जा रहा है कि ये घनिष्ठताएं जिला परिषद् चुनावों से शुरू हुई थी जो अब परवान चढ़ रही है।
फीता कटवाने वाले नेता के पूर्व क्षत्रप और फ़ीता काटने वाले क्षत्रप एक दूसरे के वैसे ही प्रतिद्वंद्वी हैं जैसे बल्लाल देव और बाहुबली थे। फीता कटवाने वाले नेता ने क्यों करके कटप्पा की भूमिका में आकर अपने क्षत्रप बाहुबली को ठिकाने लगा दिया ये सवाल अभी भी सभी के दिमाग में कौंध रहा है।