जयपुर। लक्ष्मीजी की सवारी माने जाने वाला उल्लू बढ़ती तस्करी एवं संरक्षण के प्रति अनदेखी के कारण विलुप्त होने के कगार पर हैं। आगामी 23 अक्टूबर को दीपावली पूरे देश में रंगबिरंगी रोशनी एवं आतिशबाजी के साथ बड़े उल्लास के साथ मनाई जाएगी और उसी दिन धन की वृदि्ध एवं समृदि्ध के लिए लक्ष्मी की पूजा की जाएगी जबकि लक्ष्मी की सवारी माने जाने वाले पक्षी उल्लू पर बढ़ती तस्करी से खतरा बढ़ता जा रहा हैं।…
तंत्र, मंत्र, शक्ति एवं सिद्धि प्राप्ति के लिए उल्लू की तस्करी करने वाले तस्करों की निगाहे इस पक्षी पर लगी हुई हैं और वह अब देश में गिद्ध की तरह विलुप्त होता जा रहा हैं। पर्यावरण एवं वन्यजीव संरक्षण संस्था पीपुल फॉर एनीमल्स पीएफए के राजस्थान में प्रभारी एवं प्रसिद्ध पर्यावरणविद् बाबूलाल जाजू ने उल्लू को बचाने के लिए केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेडकर को एक पत्र भी लिखा हैं। जाजू ने जावडेकर से उल्लू के संरक्षण पर शीघ्र ध्यान दिए जाने का आग्रह किया हैं।
उन्होंने कहा कि उल्लू के संरक्षण पर शीघ्र ध्यान नहीं दिया गया तो गिद्ध की तरह उल्लू भी केवल चित्रों में ही दिखाई देंगे। जाजू ने बताया कि देश में कुछ साल पहले उल्लू बहुतायत संख्या में दिखाई देते थे लेकिन इनके बसेरे एवं प्रजनन स्थल ईमली, बरगद एवं पीपल के पेड़ों की लगातार घटती संख्या एवं तस्करी के कारण इनकी भी संख्या तेजी से घट रही हैं।
उन्होंने बताया कि उल्लू एक बार में दो बच्चों को जन्म देते हैं और इन पेड़ों के अभाव में उनके आवास स्थल नष्ट होते जा रहे हैं। इससे इनकी प्रजनन गति काफी कम हो गई हैं। उन्होंने कहा कि देश में अनेक राज्यों में तंत्र साधना के लिए दीपावली से पूर्व उल्लूओं की बलि चढ़ाने के अधविश्वास के कारण इस पक्षी की जान पर बन आई है।
उन्होंने बताया कि इसे बचाने के लिए उत्तराखण्ड सरकार के वन विभाग में पिछले साल रेड अलर्ट जारी किया था और इसके तहत जंगलों में गश्त भी बढ़ाई थी। उन्होंने कहा कि देश में सरकारों एवं समाज को मिलकर तस्करों एवं तांत्रिकों के खिलाफ अभियान चलाने की जरूरत हैं।
जाजू ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उल्लू की मांग में तेजी आने के कारण देश एवं प्रदेश में पक्षियों का अवैध व्यापार करने वालों की गतिविधियां भी तेज हो गई है। इन दिनों बाजार में बार्न उल्लू, ग्रेट होर्नड तथा यूरोपीयन ईगल उल्लूओं की मांग ज्यादा है और इनमें प्रत्येक उल्लू की कीमत तीन से पांच लाख तक बताई जा रही है।
जाजू ने बताया कि शिकारी उल्लूओं को जंगल से पकड़कर व्यापारियों को बेेचते हैं जिन्हें व्यापारी के एजेन्ट नेपाल तथा बांग्लादेश के रास्ते यूरोप एवं मध्य पूर्व के देशों में पहंुचाते हैं। उन्होंने बताया कि उल्लू को शोध के लिए भी इस्तेमाल किया जाने लगा है।
उन्होंने बताया कि देश में वर्ष 1990 में वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम1972 के तहत उल्लू पकड़ने और व्यापार करने पर रोक लगाई गई थी। लेकि न उल्लू की तस्करी का गोरख धंधा सरकार की अनदेखी के कारण अभी तक नहीं थम पाया है। उन्होंने बताया कि राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात एवं उत्तराखण्ड सहित देश में आठ किस्म के उल्लू पाए जाते हैं। लेकिन पर्याप्त संरक्षण के अभाव में अब ये सभी प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं।
उन्होंने कहा कि इनके बचाव के लिए इनके बसेरे वाले पेड़ों को ज्यादा से ज्यादा लगाकर विकसित किये जाने चाहिए ताकि संकट में घिरी उल्लू प्रजाति को बचाया जा सके। उन्होने बताया कि विदेशों में उल्लूओं को बचाने के लिए विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं लेकिन भारत में अब तक ऎसा कोई प्रयास नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि इस अभाव के कारण गिद्ध विलुप्त हो गए और उल्लू लुप्त होने के कगार पर हैं ऎसे में सरकार को इस ओर शीघ्र ध्यान देने देकर इनके प्रति जागरूकता फैलाने की जरूरत हैं।