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Pakistan media reaction after indian Army Surgical Strike
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पाकिस्तानी मीडिया में छाया भारतीय सेना का सर्जिकल स्ट्राइक

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पाकिस्तानी मीडिया में छाया भारतीय सेना का सर्जिकल स्ट्राइक
Pakistan media reaction after indian Army Surgical Strikes
Pakistan media reaction after indian Army Surgical Strikes
Pakistan media reaction after indian Army Surgical Strikes

नई दिल्ली। पाकिस्तान मीडिया में इन दिनों सर्जिकल स्ट्राइक छाया हुआ है। वहां का मीडिया इस बात पर संदेह तो जता रहा है कि भारत की कार्रवाई को सर्जिकल स्ट्राइक माना जाए या महज घुसपैठ।

लेकिन उसे भी यकीन है कि भारतीय सेना ने उनके इलाके में घुसकर कार्रवाई की। विश्लेषकों को लगना लगा है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय सरकार ने दरअसल ‘रूल ऑफ गेम’ बदल डाले हैं और पाकिस्तान इन सबके बीच बेबस दिखने लगा है।

समाचारपत्र डॉन में बुधवार को छपे संपादकीय लेख में जाने-माने लेखक और पत्रकार जाहिद हुसैन कहते हैं कि सर्जिकल स्ट्राइक पर अपने दावे को साबित करने के लिए भारत ने अब तक कोई ठोस सबूत नहीं दिए हैं।

चंद टीवी चैनलों पर ऑपरेशन के कुछ अस्पष्ट से फुटेज जरूर चलाए जा रहे हैं। मौजूदा हालात में यह कहना मुश्किल है कि भारत ने जो कुछ भी किया, वह महज घुसपैठ थी या फिर सर्जिकल स्ट्राइक।

लेकिन इस मामले में भारत का दावा जितना तथ्यविहीन है, उतना ही पाकिस्तान का खंडन भी। मौजूदा हालात में जाहिर तौर पर कुछ सवाल खड़े होते हैं, जिनका जवाब मामले की तह तक पहुंचने के लिए जरूरी है।

जैसे, अगर भारतीय सेना ने सीमा पार नहीं की तो पाकिस्तान ने उनका सैनिक कैसे पकड़ लिया। उस सैनिक के पकड़े जाने की बात भी सबसे पहले भारत के एक मंत्री ने मानी।

यूं तो पाकिस्तान के सैन्य प्रवक्ता हर छोटी-छोटी बात में बयान देते रहते हैं, लेकिन हमने भारत के एक सैनिक को अपने इलाके में पकड़ लिया, इसपर उन्होंने जुबान पर ताला क्यों लगा लिया?

भारत की ओर से इस बात की जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई कि उन्होंने किन-किन जगहों को निशाना बनाया, क्या नुकसान पहुंचाया और कितने लोग मारे गए। लेकिन यह तो तय है कि उन्होंने सीमा रेखा लांघी और कुछ-न-कुछ कार्रवाई जरूर की। क्या की, कहां की और हमारी सीमा के अंदर कितनी दूर तक आए, इसपर सवाल हो सकता है।

जाहिद हुसैन ने अपने लेख में इस बात का जिक्र किया है कि दोनों ओर से सीमा रेखा या नियंत्रण रेखा को पारकर कार्रवाई करना होता रहा है। यह कोई नई बात नहीं है. लेकिन कोई भी पक्ष इसे खुले तौर पर स्वीकार नहीं करता था। इस बार के हालात एकदम अलग हैं। भारत की मोदी सरकार ने खुलेआम ऐसा करने की घोषणा कर दी।

दरअसल, मोदी सरकार ने ‘रूल ऑफ गेम’ ही बदल डाला है। उन्होंने आक्रामक कूटनीति का सहारा लिया और पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक करने की बात मानते हुए अंतरराष्ट्रीय जगत से अपनी कार्रवाई के प्रति समर्थन भी पा लिया। दुनिया में भारत के बढ़ते कद ने मोदी सरकार को पाकिस्तान के प्रति कड़ा रुख अख्तियार करने की ताकत दी है।

बलूचिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन

अगर बलूचिस्तान के लोग वहां पाकिस्तानी सेना द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं तो इसमें हैरत कैसी? समाचारपत्र दि न्यूज ने अपने संपादकीय में भी इस मामले को उठाया है।

समाचारपत्र ने अपने संपादकीय में दो माह पहले सेना द्वारा उठाए गए वाहिद बलूच का मामला उठाया और सेना की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए। अखबार ने लिखा है कि वाहिद बलूच का गलती सिर्फ इतनी थी की उन्होंने उस विरोध प्रदर्शन और संवाददाता सम्मेलन में भाग लिया जिसमें बलूचिस्तान के गायब लोगों के रिश्तेदार अपने हालात का जिक्र कर रहे थे।

यह अपने आप में चिंता की बात है कि शासन-प्रशासन के जिन अंगों पर कानून के अमल की जिम्मेदारी है, वे खुद गुनहगार दिख रहे हैं। वाहिद को जिस जगह से सेना ने उठाया, वहीं पर पुलिस और रेंजर के चेक पोस्ट हैं।

इसके बाद भी पुलिस प्रशासन और यहां तक कि सिंध सरकार भी वाहिद के अपहरण के मामले में चुप है। जब सिंध हाईकोर्ट ने वाहिद के मामले में एफआईआर दाखिल करने का निर्देश दिया, तब जाकर सेना ने इसके लिए रजामंदी जाहिर की।

संपादकीय में इस बात पर खासा रोष जताया गया कि क्या वाहिद बलूच को प्रदर्शन में भाग लेने का संवैधानिक अधिकार नहीं? सिविल सोसाइटी, मानवाधिकार आयोग और वाहिद के रिश्तेदार महज इतनी मांग तो कर रहे हैं कि उसे अदालत में पेश किया जाए और अपना पक्ष रखने का मौका दें। इसमें क्या गलत है?

बलूचिस्तान में ‘गायब’ हो जाने वाला वाहिद अकेला नहीं। मानवाधिकार संगठन की रिपोर्ट बताती है कि बड़ी संख्या में बलूच गायब हैं। हालांकि बलूचिस्तान का गृह विभाग केवल 71 ऐसे लोगों की बात करता है। गृह विभाग का यह आंकड़ा हास्यास्पद है।

लेकिन अगर यही सही है तो भी इन 71 लोगों के संवैधानिक अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन क्यों किया गया? वाहिद और उस जैसे तमाम लोग, जिन्हें अवैध तरीके से सेना ने कैद कर रखा है, उन्हें तत्काल रिहा किया जाना चाहिए और ऐसी कार्रवाई होनी चाहिए कि भविष्य में सेना ऐसा कोई भी कदम उठाने के पहले सोचे।

संजय निरुपम सुर्खियों में

सर्जिकल स्ट्राइक को ‘फर्जी’ बताकर कांग्रेस नेता संजय निरुपम पाकिस्तान में लोकप्रिय हो गए हैं। पाकिस्तान के प्रमुख समाचारपत्रों डॉन और दि न्यूज, दोनों ने संजय निरुपम की खबर को पहले पन्ने पर प्रमुखता से प्रकाशित किया। साथ ही दि न्यूज ने इसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के सवाल को भी शामिल किया। खबर में कांग्रेस और भाजपा की प्रतक्रिया भी दी गई।

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