वॉशिंगटन। पाकिस्तान आठ सदस्यीय सार्क सम्मेलन पर भारतीय नियंत्रण से निपटने के लिए अपेक्षाकृत एक बड़ा दक्षिण एशियाई आर्थिक गठबंधन बनाने की संभावना तलाश रहा है। कूटनीतिक जानकारों ने यह बात कही है। डॉन की वेबसाइट के अनुसार, पाकिस्तान के एक प्रतिनिधिमंडल ने पिछले सप्ताह वॉशिंगटन की अपनी पांच दिवसीय यात्रा के दौरान यह प्रस्ताव रखा।
सीनेटर मुशाहिद हुसैन सैयद ने कहा कि अपेक्षाकृत एक बड़ा दक्षिण एशिया पहले से ही उभर रहा है, जिसमें चीन, ईरान और पड़ोसी मध्य एशियाई गणतंत्र शामिल हैं। हुसैन ने कहा कि हम चाहते हैं कि भारत भी इसमें शामिल हो।
भारत का दबदबा कम करने के लिए चीन के साथ मिलकर नई साजिश रच रहा पाकिस्तान! पाकिस्तान आठ सदस्यीय सार्क सम्मेलन पर भारतीय नियंत्रण से निपटने के लिए अपेक्षाकृत एक बड़ा दक्षिण एशियाई आर्थिक गठबंधन बनाने की संभावना तलाश रहा है।
भारत ने कश्मीर के उरी में हुए आतंकवादी हमले में पाकिस्तान का हाथ होने का आरोप लगाते हुए सार्क के 19वें सम्मेलन में शामिल होने से इंकार कर दिया, जो 15 और 16 नवंबर को इस्लामाबाद में होने वाला था। उसके बाद अन्य सार्क देशों अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान और श्रीलंका ने भी सम्मेलन का बहिष्कार करने का फैसला किया।
डॉन के अनुसार , बहिष्कार के कारण सम्मेलन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया और इससे क्षेत्र में पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया। एक वरिष्ठ राजनयिक ने इस खबर की पुष्टि की कि पाकिस्तान क्षेत्र में बड़े सार्क की संभावनाएं तलाश रहा है। राजनयिक ने कहा कि प्रत्यक्ष तौर पर, पाकिस्तान इसका यह निष्कर्ष निकालने पर विवश हो गया कि सार्क के वर्तमान स्वरूप में इस पर हमेशा भारत का प्रभुत्व रहेगा।
यही कारण है कि वह अब एक बड़े दक्षिण एशिया के बारे में बात कर रहा है। एक अन्य कूटनीतिक जानकार ने कहा कि पाकिस्तान को उम्मीद है कि इस नई व्यवस्था के बाद जब भी भारत उस पर कोई फैसला थोपना चाहेगा, तो उसे पैंतरेबाजी करने का मौका मिलेगा।’
वॉशिंगटन के कूटनीतिक जानकारों का मानना है कि प्रस्तावित व्यवस्था चीन को भी पसंद आएगी, क्योंकि वह क्षेत्र में भारत के तेजी से बढ़ते प्रभुत्व से चिंतित है। इसके लिए वह मध्य एशियाई गणराज्यों और ईरान को नई व्यवस्था में शामिल होने के लिए राजी करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
लेकिन जानकारों के अनुसार, सार्क देश इसके समर्थन में रुचि नहीं दिखाएंगे। अधिक बड़े दक्षिण एशियाई गठबंधन से अफगानिस्तान को सबसे अधिक लाभ होने की संभावना है, जो तकनीकी रूप से एक अन्य सार्क देशों से कटा हुआ है। लेकिन जानकारों का मानना है कि अफगानिस्तान के किसी ऐसी व्यवस्था का समर्थन करने की संभावना नहीं है जो भारत के हित के खिलाफ हो।