सबगुरु न्यूज पवन पाण्डेय
पाली। आर्य वीर दल पाली के स्वर्ण जयंती अवसर पर तीन दिवसीय विशाल कार्यक्रम शुक्रवार से प्रारंभ होंगे। कार्यक्रम अध्यक्ष महेश बागड़ी ने वताया कि एक अप्रेल को सुबह योग प्राणायाम एवं हवन यज्ञ आध्यात्मिक सत्य सुबह साढे पांच बजे से नौ बजे तक होगा।
इसके बाद 9 बजे ध्वजारोहण तथा 10 बजे उदघाटन के बाद सवा ग्यारह बजे विशोल शोभायात्रा निकाली जाएगी। वेद प्रवचन शाम साढे चार बजे से शाम साढे छह बजे तक होंगे। रात साढे आठ बजे से भजन संध्या होगी।
दो अप्रेल को सर्वे योग प्राणायाम एवं सवा दस बजे से बारह बजे तक आर्य विद्वानों का संबोधन तथा दोपहर में आर्यों युवा सम्मेलन होगा। रात्रि में आठ बजे से कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। तीन अप्रेल को आर्य विद्वानों का संबोधन एवं समापन कार्यक्रम रखा गया है।
विराट कवि सम्मेलन में लाखोटिया के रंगमंच से जाने माने कवि अपनी रचनाएं प्रस्तुत करेंगे। इसमें डॉक्टर सारस्वत मोहन मनीषी पूर्व प्रोफेसर दिल्ली विष्वविद्यालय, सत्यवीर आर्य भरतपुर, बलवंत बल्लू ऋषभदेव, सुनील व्यास मुंबई, लोकेश महाकाली नाथद्वारा, मुन्ना बैटरी मंदसौर, अशोक चारण जयपुर, मुकेश मालवा इंदौर, आनंद हल्बी दिल्ली के कवि वीर रस की कविताएं प्रस्तुत करेंगे।
कार्यक्रम को लेकर संरक्षक मंडल पुष्प जैन, नेमीचंद चोपड़ा, ओम आचार्य उगमराज सांड, वीरेंद्र पाल शर्मा, धनराज, ओमप्रकाश शर्मा बुलेट, आयोजन समिति के अध्यक्ष महेश बागड़ी, हुक्माराम बंजारा, गौरी शंकर शर्मा, शंकरलाल हंस, विजय राज आर्य, राकेश सोनी, वीरेंद्र सिंह, पदम धोखा, महेंद्र प्रजापत, गणपतलाल भदोरिया, किशोर बॉक्सर, प्रकाश जांगिड़, हेमराज आर्य, वीरम गुर्जर, भंवर गौरी, पुखराज शर्मा, जमुना प्रसाद, पंकज दवे, सुरेश, घनश्याम आर्य, सहसंयोजक समिति के पंडित मनोहर तिवारी दीपक शर्मा, ओम प्रकाश वैष्णव, घनश्याम बोराणा, सुरेश पटेल, जालम सिंह चंपावत, झूमर लाल पालीवाल, शंकर पटेल, अजय सिंह, नंदू सोनी, अनिल, कुशल देवड़ा, रिंकू पवार, राजेंद्र वैष्णव, गोपाल सोलंकी, संदीप गुर्जर गौड़, नारायण सिंह, ललित मेवाडा, मुकेश सोनी, किशोर आर्य, भवानी चौहान, सत्य नारायण कुमावत, पारस मेवाड़ा, अजय अटवाल, सुदर्शन सोनी, निर्मल बंजारा, रमेश वैष्णव, प्रवीण आचार्य, दिलीप बॉक्सर, अशोक सांवरिया, मुकेश जांगिड़, मनीष बसेडा, महेंद्र जोशी, राज वैषणव, देवदत्त सिंह, राजू बॉक्सर, पिंटूआ हुसैन, रामेश्वर राव, रोहित कुमार, देवेंद्र मेवाड़ा, श्यामसुंदर सोनी, मुकेश राणा,पारस जांगिड़, निर्मल जांगिड़, मुकेश कुमार, मुकेश मेवाडा, भरत मीणा आदि आर्यवीर कार्यक्रम को सफल बनाने में लगे हुए हैं।
आमंत्रित मुख्य वक्ता
आचार्य स्वामी अग्निव्रत नैष्टिक वैद्य विज्ञान आश्रम भागल भीम भीनमाल, स्वामी आचार्य विनय आर्य दिल्ली, पंडित केशव देव शिवगंज, सतपाल सरल भजन उपदेशक देहरादून मुक्तानंद अजमेर, मृत्यु मृत्युंजय अजमेर, वेदव्यास जयपुर, सत्य प्रथम बेदी जयपुर, ओम मणि व्यास आनंद सरस्वती पिंडवाड़ा, विजय सिंह भाटी जयपुर, हरीराम दास जैतारण, पंकज योग शिक्षक अजमेर व्याख्यान देंगे।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पुष्पेंद्र सिंह राणावत ऊर्जा मंत्री राजस्थान सरकार, पीपी चौधरी सांसद पाली, मदन राठौड़ उप मुख्य सचेतक राजस्थान सरकार, ज्ञान चंद पारख विधायक पाली, महेंद्र बोहरा सभापति नगर परिषद, कुमार पाल गौतम जिला कलेक्टर पाली, दीपक भार्गव पुलिस अधीक्षक पाली, बद्रीराम जाखड पूर्व सांसद पाली, केवलचंद गुलेछा, राकेश भाटी पूर्व सभापति पाली, सुरेंद्र सिंह शेखावत सीएमएचओ पाली, डॉक्टर कमल किशोर हरियाणा सीकर, जीएस चौहान, शैतान सिंह एडवोकेट, संजना आगरी विधायक, प्रसाद सिंह रावत पूर्व सांसद अजमेर, भीमराज भाटी पूर्व विधायक पाली, रतनगढ़ पुरुष दीपाली पिंटू बागड़ी नागपुर महाराष्ट्र, मनोहर सिंह राजपुरोहित, सत्यवीर शास्त्री अलवर, रामसिंह कार्यक्रम के विशिष्ट सहयोगी कांतिलाल ओसवाल पापड़ वाले एवं सहयोगी कैलाश काबली सुरेश सोनी महेंद्र कुमार मूलचंद सोनी देवी लाल सांखला मंगलाराम चौधरी, सरवण कोठारी, रवि मीणा, राजेंद्र सिंह शेखावत, सुनील गुप्ता, रामनिवास जांगिड़, ताड़केश्वर, रामेश्वर, जगदीश भंसाली, शांतिलाल खत्री, नेमीचंद एवं जी सोलंकी, रमेश परिहार, महेंद्र प्रजापत, प्रमेंद्र सिंह, शंकर भासा, जगदीश गुर्जर गौड़, मंगल मांगी लाल चौधरी, जेठमल मंगलाराम देवासी पारस पॉलीमर्स एंड केमिकल्स, मनीष राठौड़, राम किशन सोलंकी, जगदीश आर्य जोधपुर, मानस और रमेश परिहार, ओमजी दायमा, डॉक्टर राम लाल मोहर,प्रदीप कछवाहा, जय सिंह राजपुरोहित सोकड़ा, किशनलाल, अजय सिंह गहलोत कार्यक्रम में तन मन धन से सहयोग कर रहे हैं।
आर्य समाज की स्थापना
आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में बंबई में मथुरा के स्वामी विरजानंद की प्रेरणा से की थी। यह आंदोलन पाश्चात्य प्रभावों की प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदू धर्म में सुधार के लिए प्रारंभ हुआ था। आर्य समाज में शुद्ध वैदिक परम्परा में विश्वास करते थे तथा मूर्ति पूजाए अवतारवादए बलिए झूठे कर्मकाण्ड व अंधविश्वासों को अस्वीकार करते थे।
इसमें छुआछूत व जातिगत भेदभाव का विरोध किया तथा स्त्रियों व शूद्रों को भी यज्ञोपवीत धारण करने व वेद पढ़ने का अधिकार दिया था। स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रन्थ आर्य समाज का मूल ग्रन्थ है। आर्य समाज का आदर्श वाक्य है। कृण्वन्तो विश्वमार्यम् जिसका अर्थ है विश्व को आर्य श्रेष्ठ प्रगतिशिलद्ध बनाते चलो।
आर्य समाज के दस नियम
1 सब सत्यविद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सबका आदिमूल परमेश्वर है।
2 ईश्वर सच्चिदानंदस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वांतर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है। उसी की उपासना करने योग्य है।
3 वेद सब सत्यविद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढना पढाना और सुनना सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।
4 सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोडने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए।
5 सब काम धर्मानुसार अर्थात सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहिए।
6 संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है, अर्थात शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना।
7 सबसे प्रीतिपूर्वक, धर्मानुसार, यथायोग्य वर्तना चाहिए।
8 अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिए।
9 प्रत्येक को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट न रहना चाहिए किंतु सब की उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए।
10 सब मनुष्यों को सामाजिक, सर्वहितकारी, नियम पालने में परतंत्र रहना चाहिए और प्रत्येक हितकारी नियम पालने सब स्वतंत्र रहें।
आर्यसमाज का योगदान
आर्य समाज शिक्षा, समाज सुधार एवं राष्ट्रीयता का आन्दोलन था। भारत के 85 प्रतिशत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, आर्य समाज ने पैदा किए। स्वदेशी आन्दोलन का मूल सूत्रधार आर्यसमाज ही है।
स्वामी जी ने धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों को पुनरू हिंदू बनने की प्रेरणा देकर शुद्धि आंदोलन चलाया।
आज विदेशों तथा योग जगत में नमस्ते शब्द का प्रयोग बहुत साधारण बात है। एक जमाने में इसका प्रचलन नहीं था। हिन्दू लोग भी ऐसा नहीं करते थे। आर्यसमाजियों ने एक दूसरे को अभिवादन करने का ये तरीका प्रचलित किया। ये एक समय समाजियों की और अब भारतीयों की पहचान बन चुका है।
स्वामी दयानंद ने हिंदी भाषा में सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक तथा अनेक वेदभाष्यों की रचना की। एक शिरोल नामक एक अंग्रेज ने तो सत्यार्थ प्रकाश को ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें खोखली करने वाला लिखा था।
सन् १८८६ में लाहौर में स्वामी दयानंद के अनुयायी लाला हंसराज ने दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना की थी। सन् १९०१ में स्वामी श्रद्धानंद ने कांगड़ी में गुरुकुल विद्यालय की स्थापना की।
आर्यसमाज के सिद्धांत
आर्य शब्द का अर्थ है श्रेष्ठ और प्रगतिशील। अतः आर्य समाज का अर्थ हुआ श्रेष्ठ और प्रगतिशीलों का समाजए जो वेदों के अनुकूल चलने का प्रयास करते हैं। दूसरों को उस पर चलने को प्रेरित करते हैं। आर्यसमाजियों के आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम राम और योगिराज कृष्ण हैं। महर्षि दयानंद ने उसी वेद मत को फिर से स्थापित करने के लिए आर्य समाज की नींव रखी।
आर्य समाज के सब सिद्धांत और नियम वेदों पर आधारित हैं। आर्य समाज की मान्यताओं के अनुसार फलित ज्योतिषए जादू.टोनाए जन्मपत्रीए श्राद्धए तर्पणए व्रतए भूत.प्रेतए देवी जागरणए मूर्ति पूजा और तीर्थ यात्रा मनगढ़ंत हैंए वेद विरुद्ध हैं।
आर्य समाज सच्चे ईश्वर की पूजा करने को कहता है, यह ईश्वर वायु और आकाश की तरह सर्वव्यापी है, वह अवतार नहीं लेता, वह सब मनुष्यों को उनके कर्मानुसार फल देता है। अगला जन्म देता है, उसका ध्यान घर में किसी भी एकांत में हो सकता है।
इसके अनुसार दैनिक यज्ञ करना हर आर्य का कर्त्तव्य है। परमाणुओं को न कोई बना सकता हैए न उसके टुकड़े ही हो सकते हैं। यानी वह अनादि काल से हैं। उसी तरह एक परमात्मा और हम जीवात्माएं भी अनादि काल से हैं। परमात्मा परमाणुओं को गति दे कर सृष्टि रचता है। आत्माओं को कर्म करने के लिए प्रेरित करता है।
फिर चार ऋषियों के मन में २०ए३७८ वेदमंत्रों का अर्थ सहित ज्ञान और अपना परिचय देता है। सत्यार्थ प्रकाश आर्य समाज का मूल ग्रन्थ है। अन्य माननीय ग्रंथ हैं। वेद, उपनिषद, षड्दर्शन, गीता व वाल्मीकि रामायण इत्यादि।
महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश में इन सबका सार दे दिया है। 18 घंटे समाधि में रहने वाले योगिराज दयानंद ने लगभग आठ हजार किताबों का मंथन कर अदभुत और क्रांतिकारी सत्यार्थ प्रकाश की रचना की।
आर्यसमाज की मान्यताएं
ईश्वर का सर्वोत्तम और निज नाम ओम् है। उसमें अनंत गुण होने के कारण उसके ब्रह्मा, महेश, विष्णु, गणेश, देवी, अग्नि, शनि वगैरह अनंत नाम हैं। इनकी अलग अलग नामों से मूर्ति पूजा ठीक नहीं है। आर्य समाज वर्णव्यवस्था यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र को कर्म से मानता है जन्म से नहीं। आर्य समाज स्वदेशीए स्वभाषा, स्वसंस्कृति और स्वधर्म का पोषाक है।
आर्य समाज सृष्टि की उत्पत्ति का समय चार अरब 32 करोड़ वर्ष और इतना ही समय प्रलय काल का मानता है। योग से प्राप्त मुक्ति का समय वेदों के अनुसार 31 नील 10 खरब 40 अरब यानी एक परांत काल मानता है। आर्य समाज वसुधैव कुटुंबकम् को मानता है। लेकिन भूमंडलीकरण को देशए समाज और संस्कृति के लिए घातक मानता है।
आर्य समाज वैदिक समाज रचना के निर्माण व आर्य चक्रवर्ती राज्य स्थापित करने के लिए प्रयासरत है। इस समाज में मांस, अंडे, बीड़ी, सिगरेट, शराब, चाय, मिर्च मसाले वगैरह वेद विरुद्ध होते हैं।
पाली में आर्यसमाज की स्थापना का ताम्रपत्र
आर्य समाज का मंदिर स्वामी दयानंद के पाली आगमन पर रात्रि विश्राम किया था उस वक़्त स्वामी जी के वचनों से प्रभावीत हो कर एक नाचने गाने व अनैतिक कृत्यों में लिप्त रहने वाली स्त्री ने अपने रहने का स्थान आर्य समाज को भेंट कर सभी अनैतिक कार्यो को छोड़ दिया था। पाली में आर्यसमाज मंदिर पानी दरवाजा पर स्थित है। जिसका बाद में जीर्णोद्धार किया गया।
आर्य वीर दल आर्य समाज से सम्बंधित एक अर्धसैनिक बल है जहां बच्चों में आत्मविश्वास भरा जाता है और उनकों शारीरिक रूप से सुदृढ़ बनने को प्रेरित किया जाता है साथ ही उनका बौद्धिक बढ़ाया जाता है। इन सब कार्यो के लिए समय समय पर शिविर आयोजित भी किया जाता हे।