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कान्हा की बाल लीला के प्रसंग सुन भावविभोर हुए भक्त - Sabguru News
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कान्हा की बाल लीला के प्रसंग सुन भावविभोर हुए भक्त

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कान्हा की बाल लीला के प्रसंग सुन भावविभोर हुए भक्त

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पाली। मैय्या मोरी मैं नहिं माखन खायो, चिरजीवो गोपाल माई तेरो, बरसाने तेरे हुई सगाई कान्हा, रे माखन की चोरी छोड़े, मुरली प्रेम री बजाई रे नन्दलाला गोपाला, मुरली की आवाज तो पनघट में सुनी थी सरीखे भजनों के साथ भगवान श्रीकृष्ण के जीवन के वृतांत सुनकर आनंद विभोर भक्तजन आनंदित हो उठे।

गोभक्त राधाकृष्ण महाराज ने श्रद्धालुओं को भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीला के प्रसंग सुनाकर कथा पांडाल में ही गोकुल, मथुरा और वृंदावन का अहसास करा दिया। बरसाने की गोपियां ग्वाले कान्हा के साथ खेल रहे हों एसा अदभुत मनोरम दृष्य कथा में श्रद्धालु महसूस कर रहे थे।

भगवान कृष्ण शरारती तो थे ही पर सबके प्रिय होने के कारण कोई उन्हें कुछ भी नहीं कह सकता था। वेष बदलकर कहीं भी पहुंच जाते थे। माखन भगवान को बहुत प्रिय था। माखन चोर भी कहे जाते थे, मटकी फोड़ना माखन फैलाना, ग्वालाओं में बांटना उनका शौक था।

गोपियां शिकायत करती कि मां यशोदा तेरा कान्हा कितना शैतान है कि मेरा कितना नुकसान कर दिया। कान्हा को रोकने के उपाय तो बहुत किए पर मां यशोदा को भी हार माननी पड़ती थी क्योंकि वह बालक नहीं थे, बो तो भगवान थे। मां खाना बनाती थी, पंडित पूजा कर भगवान को भोग लगाएंगे उसके बाद प्रसाद वितरण होगा पर कान्हा कहां मानने बाले, वे तो पहले ही झूठा कर देते थे।

ऐसा ही एक बार हुआ तो पंडित नाराज हो गए। तब मां यशोदा कान्हा को डांटती है, तब कान्हा बड़ा ही रोचक जबाव देते हैं कि हे मां तू डांटती है पर मैं क्या करूं खुद पंडित बार बार मुझे बुलाते हैं, मेरा स्मरण करते हैं तो मुझे तो आना ही पड़ेगा ना। इतना सुनते ही पंडित भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में गिर पड़ते हैं कहते हैं कि अब समझ आया कि भगवान तो मेरे पास हैं।

गेपियों के भगवान की लीला निराली है वह हर समय गोपियों को छेड़ते रहते हैं। उनका स्वभाव है, कभी गाय का बछड़ा छोड़ देते हैं बछड़ा ही दूध पी जाता है। कभी गोपियां आपस में बात करती हैं तो पीछे से चोटी बांध देते हैं और भाग जाते हैं। शिकायत होती है। मां यशोदा ने एक बार उपाय सोचा कि इनके पैर में घुंघुरु बांध दे तो पता लग जाएगा ये कहां है। पर कान्हा तो स्वयं भगवान थे और चालाक भी। भगवान श्रीकृष्ण ने घुंघरु बंधते ही गोबर में पैर रख दिए, गोबर घुंघरु में भर गया और आबाज आना बंद हो गई। कितने भी उपाय कर लो वह तो कान्हा ही हैं।

भगवान श्रीकृष्ण पहले वत्सपाल बनते हैं। बछड़े पालते हैं उनकी सेवा करते हैं, बाद में वह ग्वाला बनते हैं। ब्रज में आनंद होता है गोपियां, गवाले लाला के दर्षन को दौड़ पड़ते हैं, मां यशोदा को बधाई देते हैं।

गिरिराजधरण प्रभु तेरी शरण, गाय की पूजा और गावर्धन की पूजा करनी चाहिए, यह परमश्रेष्ठ है। भगवान ने गोवर्धन पूजा की है। तरह तरह के व्यंजन घर पर बनाए गए, उत्सव मनाया जा रहा था। सब अपनी कुशलता से कार्य कर रहे थे। गोवर्धन और गाय को पूजा के लिए सजाया जा रहा था। पंडितों ने गाय व गोवर्धन पूजा करवाई। ठाकुर गोवर्धन की पूजा को जाते हैं।

छप्पन भोग लगाया गया। प्रसाद बांटा गया। ब्रजवासी खुषियों से झूम रहे थे गा रहे थे मैं तो गोवर्धन को जाउं मेरे बीर, नहीं माने मेरो मनवा, मैं तो माखन मिश्री खाउं मेरे बीर नहीं माने मेरो मनवा जैस गीत की शुरुआत होते ही भक्तों के सामने छप्पन भोग की झांकी के दर्शन हुए। अन्नकूट का वितरण हुआ।

कथा के अंत में गोरक्षा के लिए क्या करें विषय पर कहा कि नमो ब्रहमण्यदेवाय गोब्राहमणहिताय च, जबद्विताय कृष्णाय गोविनदाय नमो नमः। नमो गोभ्यः श्रीमतीभ्यः सौरभेयीभ्य च, नमो ब्रहमसुताभ्यष्च पवित्राभ्यो नमो नमः। गोरक्षण गोपालन और गोसंवर्धन का प्रश्न भारतवर्ष के लिए नया नहीं है। यह भारतवर्ष का सनातन धर्म है। हमारी आर्य संस्कृति के अनुसार अर्थ, धर्म काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों के साधन का मूल हमारी सर्वदेवमयी गोमाता है।

इस अवसर पर संत सुरजनदास महाराज, रामेश्व प्रसाद गोयल, कैलाश चन्द्र गोयल, कमल किशोर गोयल, गोपाल गोयल, परमेश्वर जोशी, अशोक जोशी, किसन प्रजापत, दिनेश जोशी, अंबालाल सोलंकी, आनंदीलाल चतुर्वेदी, शंकर भासा, पूरणप्रकाश निंबार्क विजयराज सेानी सहित हजारों श्रद्धालु उपस्थित थे

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प्रातःकाल प्रभातफेरी निकाली

श्रीमदभमगवद कथा ज्ञान यज्ञ समिति के तत्वावधान में प्रतिदिन प्रातःकाल प्रभातफेरी निकाली जा रही है। जिसमे गोवत्स राधकृष्ण महाराज के साथ हाथ में ध्वज लिए श्रद्धाल गोविन्द बोलो हरि गोपाल बोलो, राधरमण हरि गोपाल बोलो गाते हुए शिव मंदिर हाउसिंग बोर्ड से रवाना हुए। प्रभातफेरी शीतला माता मंदिर से निकलकर महात्मा गांधी कालोनी, रामनगर, सिंधी कालोनी रामउदेव रोड से माली पंचायत समाज भवन आकर विसर्जित हुई। इस अवसर पर ताडकेश्वर रामेश्वर चैरिटेबल ट्रस्ट के रामेश्वर प्रसाद गोयल, कैलाश चन्द्र गोश्ल, कमल किशोर गोयल, गोपाल, खींवारात पटेल, घेवरचंद पटेल, दामोदर शर्मा, मास्टर शंकरलाल जोशी समेत माली समाज के कार्यकर्ता भी उपस्थित थे।

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