पाली। नंद बाबा कहते कह रहे हैं! हे यशोदा यह हम सबका सौभाग्य है कि कान्हा ब्रज में आया है यह बात इसलिए होती है कि समय आ चुका है श्यामसुन्दर के ब्रज छोड़कर मथुरा जाने का। यदि श्रीकृष्ण मथुरा चले जाते हैं तो ब्रज की हालात क्या होगी।
मां यशोदा यह सोच सोच कर परेशान होती है जैसे सब कुछ लुट गया हो। रात के समय सभी ब्रजवासी सोये नहीं दरवाजे पर आकर बैठ गए। कह रहे हैं कि कन्हैया को रोक लेंगे, जाने नहीं देंगे। मां यशोदा सहित सभी ब्रजवासी पुरानी यादों में खो जाते हैं। मां यशोदा रोने लगती हैं।
यशोदा मां के रोते समय आंसू ललाट पर आ जाते हैं तो भगवान श्यामसुन्दर उठकर मां की गोद में बैठ जाते हैं, मां से पूछते हैं कि हे मां क्या हुआ तू इतनी दुःखी क्यों है। मां कहती है कि हे लाला तू जाने बाला है चला जाएगा, सबका क्या होगा। हे श्यामसुन्दर तू सब जानता है कहता नहीं है, हे मां मैं जाउंगा तो पर जल्दी ही बापस आ जाउंगा। मां कहती हैं कि तू वापस आएगा नहीं। ये नैन तेरे दुबारा दर्शन कैसे करेंगे।
मां का मन कोमल होता है। तू तो वासुदेव का बेटा है मेरा नहीं है, कन्हैया कहते हैं कि मुझे तो आज पता चला है। भगवान श्यामसुन्दर कहते हैं कि मां तेरे जैसा ममात पूर्ण हृदय नहीं मिलेगा, मैं भी करोड़ बार कृष्ण बन जाउं पर तेरे जैसी मां नहीं मिलेगी। मां एक बार जाने दे दुबारा नहीं जाउंगा।
मां बोलीं तुम एसे छोड़ जाओगे हमें यह पता भी नहीं था। हम तो तेरी सेवा भी नहीं कर पाए, न तो तेरे मन का कुछ बना कर खिला पाए तू तो बस दही माखन दूध्र पीकर बड़ा हो गया। मां दूःखी होती हैं। ये सब सुनका ठाकुरजी का हृदय भी भावबिभोर होने लगता है वह तो अपने आप को सम्हाल लेते हैं। आश्वसन देते हैं। प्रातःकाल का समय होता है सभी दरवाजे पर खड़े हैं उदास हैं जैसे कि सब कुछ लुट गया हो।
श्रीकृष्ण के अनावा ब्रज में धन है भी तो क्या पर भगवान चले जाएंगे। किसे अपना कहें। प्रभु वो ही तो हमारे हैं। सारे ब्रजवासी नेत्र लगाए बैठे हैं भगवती श्यामसुन्दर की तरफ। भगवान सोचते हैं कि ललिता दुःखी है मनसुखा दुःखी है मेरा मित्र सुदामा दुःखी है यहां तो सारा ब्रज दुःखी है। मन में आ रहा है कि राधा नहीं आई।
जन्म के समय से तो सारा ब्रज पुलकित हो रहा था हर्षमय था आज तक और आज सभी दुःखी ही नजर आ रहे थे। गायें रो रहीं है कि हमारी काई रस्सी खोल दो हम साथ जाएंगे जिस आत्मीयता से कृष्ण ने हमारी सेवा की है। यमुनाजी के किनारे पर जाकर जो शीतल जल पिलाते हैं गिरिराज के उपवन में चराने ले जाते हैं, परेशान नहीं होने देते तो भला ऐसे श्यामसुनदर को कौन जाने देगा। जो संध्या को बांसुरी से बुलाते थे इस प्रकार अब सेवा कौन करेगा। सभी सोच रहे हैं।
भगवान श्रीधामा को बुलाते हैं कहते हैं कि ब्रज का ध्यान अब बाबा रखेंगे। हे उद्धव श्रीधामा मेरी गायों का ध्यान तू रखना। ये त्रिचरना बंद कर देंगी, चारा नहीं खाएंगी। पानी नहीं पिएंगी, हे श्रीधामा मेरी कसम है तुझे इन गायों का ध्यान रखना। भगवान रथ में बैठ जाते हैं चलते हैं मन तो करता है कि बाबा मैया ब्रजवासियों को एक बार देख लूं पर सोचते हैं कि देखेंगे तो सबको लगेगा कि कान्हा दुःखी हो रहा है।
श्यामसुन्दर मन होते हुए भी नहीं देख सकते। यमुनाजी को देखते ही लीला याद आने लगती है, जैसे ब्रज छूटा, धैर्य टूटा, बलदाउ दादा से कहने लगे कि भैया हम कहां जा रहे हैं क्यों जा रहे हैं। क्या ब्रज छोड़ना इतना जरुरी है क्या वापस नहीं जाएंगे। मुझे तो गोकुल जाना है। मैया के पास जाना है। चलो ना क्या हो गया ये! ये तो सब प्रेम के कारण रो रहे हैं। भगवान भी अपना भगवानपना भूल जाते हैं तो सूरादस जी कहते हैं
कुन तो बजावे बांसुरी, कुण तो जगाये सारी रात।
सपना में आ जगाय दियो। तुम बिन रहो न जाय।
श्रीठाकुरजी मथुरा पहुंच जाते हैं, नंद बाबा भी पीछे पीछे आ जाते हैं। नंद बाबा की आज्ञा लेकर भगवान श्यामसुन्दर मथुरा देखने निकले हैं। सभी उनके दर्शन को छत के उपर खड़े हो जाते हैं। ठाकुरजी पर दूघ घी मख्खन की वर्षा होती है। रजग धोबी से कान्हा कपड़े मांगते हैं वह मना कर देता है तो गुस्से में उसका मार देते हैं।
तब श्यामसुन्दर अपने मामा कंस की रंगशाला में पहुंच जाते हैं। वह बहुत ही उपर बैठा था भगवान के पहुंचते ही कंस अपने सैनिकों को आदेश देता है। कि इन दोनों को मारो। उनके आगे बढते ही भगवान कृष्ण ने उक हाथ से उसको पकड़ा, वह मुठ्ठी भी नहीं छुड़ा सका, धरती पर पटक पटक कर मार डाला।
एक साथ दो दो को ठाकुरजी ने मारा। बलदाउ और कृष्ण ने दसभी को निपटा दिया। अब सभी को कंस का खत्म तय हो गया। एक छलांग में कंस मामा के पहुंचे। आदर से मामा को प्रणाम किया वह चुप रहा, कंस तलवार निकालता है पर भगवान श्यामसुन्दर हैं वह वच जाते हैं कहते है कि पापी को मारो धरती का भार कम करो, जोर से मुक्का मारते हैं मुकूट गिरता है। फिर चोटी पकड़कर कंस को मार डालते हैं।
हर तरफ जय जय कार होने लगती है। वे समीप जाते हैं ग्यारह साल से ज्यादा देवकी वासुदेव जेल में हैं। श्रीकृष्ण बलदाउ को देखकर मां की ममता उमड़ पड़ती है। नाना उग्रसेन को गद्दी पर बैठाया जाता है।
तब कान्हा को पढाने की बारी आती है। संदीपनि गुरु के यहां पढ़ते हैं। वहां कंस का स्वसुर जरासंद आक्रमण करता है तो भगवान उसे न मारकर उसके साथियों को मार देते हैं कारण यह सभी राक्षसों को लाता रहेगा उनको वो मारते रहेंगे और प्रजा आत्याचार से मुक्त हो जाएगी।
भगवान उद्धव को अपने मन की बात बताकर और गोपियों तथा ब्रजवासियों के हाल पूछने अपना दूत बना कर भेजते हैं। हे गोपियों तुम कहो कृष्ण को क्या कहूं जाके तो गोपियों कहती है
ए री प्रीतम को पतिया लिखूं प्रीतम बसे परदेस।
पर जो तन में बसे उसको क्या संदेश।
भगवान अब द्वारिकापुरी की समुद्र में स्थापना करते हैं और बड़े होने पर वहीं पर विवाह की बात चलती है। रुकमी ने अपनी बहन का विवाह शिशुपाल से तय किया। वह सुन्दर नहीं था। रुकमणी को पसंद नहीं था। पर जब कान्हा द्वारिकापुरी में थे तो सब कुछ संभव था। भगवान श्रीकृष्ण को रुकमणी का संदेश जाता है। भगवान भी रथ लेकर निकल पड़ते हैं और रुकमणी का हाथ पकड़कर रथ में बिठाकर द्वारिकापुरी रवाना हो जाते हैं।
किसी को कुछ पता नहीं चलता सभी भगवान को देखने में ही रह जाते हैं। रास्तें में रुकमणी का भाई और शिशुपाल रथ को रोकना चाहता है तो भगवान मारते नहीं हैं उन्हें पेड़ से बांध देते हैं। फिर द्वारिकापुरी आकर भगवान श्रीकृष्ण रुकमणी का विवाह होता है। ब्रज में होली खेली जाती है।
देखते ही देखते कथा पांडाल में भी ब्रज जैसा माहौल नजर आने लगा। चारों तरफ गुलाब के फूलों से होली खेली जा रही थी। फूल बिखेरे जा रहे थे। युवा पुरुष महिलाएं बालक सभी नाच रहे है। मानो साक्षात बृज यहीं हो। यह वृतांत गुरुवार को गो भक्त श्रीराधकृष्ण महाराज ने कथा के दौरान भक्तजनों को सुनाया।
इस अवसर पर संत सुरजनदास महाराज, रामेश्वर प्रसाद गोयल, कैलाश चन्द्र गोयल, कमल किशोर गोयल, गोपाल गोयल, परमेश्वर जोशी, अशोक जोशी, किसन प्रजापत, दिनेश जोशी, अंबालाल सोलंकी, आनंदीलाल चतुर्वेदी, बीरेन्द्र पाल शर्मा, विष्णुदत्त शर्मा, माहेश्वरी बजरंगलाल हुरकुट, हरिगोपाल सेानी, मास्टर शंकरलाल जोशी सहित हजारों श्रद्धालु उपस्थित थे।