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panama papers leaks : खोखले महानायक, ढहते भरोसे के पुल - Sabguru News
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panama papers leaks : खोखले महानायक, ढहते भरोसे के पुल

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panama papers leaks :  खोखले महानायक, ढहते भरोसे के पुल
panama papers leak : is amitabh bachchan really innocent?
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आज के दौर की सबसे बड़ी त्रासदी क्या है? ध्यान से विचार करें तो समझने में आता है कि स्वाधीनता के पश्चात हमने नायकों के चयन एवं उनको गढऩे में गंभीर चूक कर दी। ज्यादा पीछे न भी जाएं स्वाधीनता से पहले देश के नायक कौन थे? उत्तर आएगा शहीद भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, वीर सावरकर या ऐसे स्वाधीनता सेनानी जिन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया।

देश का हर नौजवान देश के लिए फांसी पर भले ही न झूला हो पर ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ उसका ध्येय गीत अवश्य था। स्वाधीनता के पश्चात देश के लिए मरने की आवश्यकता नहीं थी पर देश के लिए जीने की आवश्यकता जरूर थी पर दुर्भाग्य से हमने आजादी के बाद देश के नायक बदल ही नहीं दिए नायकों की परिभाषा ही बदल दी।

“आज आप किसी से भी सवाल करें कि सदी का महानायक कौन है तुरन्त जवाब आएगा अमिताभ बच्चन।” अमिताभ बच्चन का परिचय किसी से छिपा नहीं है।…सन् 1970 से आज तक वे रील लाइफ के ऐसे अभिनेता हैं जिन्होंने लगभग ढाई दशक से भी अधिक समय तक भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ एक निर्णायक संघर्ष किया और आम आदमी के दिलों पर राज किया।

अमिताभ बच्चन एक ऐसे अभिनेता हैं जिसे देशवासियों ने महानायक ही नहीं ईश्वर का भी दर्जा दिया और जिसने अपने जीवन के उत्तरार्ध में अपनी बेटी से भी कम उम्र की लड़की से पर्दे पर सारी वर्जनाएं ताक पर रख कर इश्क भी लड़ाया। अमिताभ बच्चन ऐसे नायक हैं, जिसने ‘दोस्तानां’ में दोस्त के सारे फर्ज अदा किए पर रियल लाइफ में उन्होंने संकट के समय राजीव गांधी से भी दूरी बनाई और जिनके एहसानों से उबरे उन्हीं अमर सिंह से भी किनारा किया।

अमिताभ बच्चन ऐसे भी नायक हैं जो रील लाइफ की ‘परवरिश’ में अपने भाई के लिए जान जोखिम में डाल कर उसे सही रास्ते पर लाते हैं और रियल लाइफ में जिस अमिताभ बच्चन के फोटो शूट से वे आज इस मुकाम पर हैं, पनामा पेपर लीक के खुलासे के बाद सारा कसूर उन पर ही मढ़ते दिखाई देते हैं।

रील लाइफ में एक आदर्श और रियल लाइफ में घटियापन की सारी हदें पार करने वाले काले धन के आरोपी आज देश के महानायक है, शहंशाह है। अमिताभ नि:संदेह एक शानदार अभिनेता हैं। पर्दे पर उनका अभिनय और सार्वजनिक जीवन में उनकी विनम्रता अनुकरणीय है, प्रशंसनीय है। पर जब हम पर्दे के नायकों को जीवन का नायक या महानायक बना देते हैं तो जीवन की दिशा एवं दशा ही बदल जाती है।

मैं आगे जो कहने जा रहा हूं…”उसका आशय आज देश की सारी विकृतियों के लिए अमिताभ बच्चन को जिम्मेदार ठहराना कतई नहीं है” पर हां हमने आजादी के बाद जिन्हें अपना आदर्श बनाया जिनसे हम प्रभावित हो रहे हैं, वे सब तो नहीं पर 99 फीसदी खोखले हैं। परिणाम आज रील लाइफ का पाखंड हमारे रियल लाइफ को भी प्रभावित कर रहा है। माया नगरी अब मुंबई तक ही सीमित नहीं है।

इसीलिए झारखंड के जमशेदपुर की मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की प्रत्यूषा मात्र 24 साल की उम्र में फांसी पर लटकते हुए दिखाई देती है। प्रत्यूषा एक तेजी से सफल होती अभिनेत्री थी। अत: अगले कई दिनों तक हम प्राइम चैनलों पर उसकी मोहक तस्वीरें चटखारे लेते गॉसिप देखेंगे पर मूल सवाल फिर अनुत्तरित है। प्रत्यूषा आज एक प्रतीक है। गांव-गांव, शहर-शहर में प्रत्यूषाएं हैं, राहुलों की भरमार हैं। लिव इन में लव कब आउट हो जाता है पता ही नहीं चलता। इसी तरह ‘मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता’ कहकर दीवार फिल्म में तालियां बटोरने वाले अमिताभ…

चोरी छिपे पनामा में नोटों के ढेर जमा करते हैं और जब ऐसे महानायक हमारे आदर्श बनते हैं तो समाज जीवन में कहीं न कहीं हमारे कदम भी भ्रष्ट आचरण की ओर मुड़ते हैं और फिर कलकत्ता के गणेश टॉकीज के पास पुल गिरता है। फिर इस पुल के मलबे पर भी संवेदना नहीं जागती इसमें भी राजनीतिक संभावनाएं तलाशी जाती हैं। यह इस दौर का भयानक सच है।

अभिनय पर्दे पर ही नहीं, जीवन में भी हो रहा है। यही कारण है कि सिर्फ सीमेंट कांक्रीट के नहीं विश्वास के आस्था के भी पुल गिर रहे हैं। हर तरफ किसी भी कीमत पर किसी भी छल प्रपंच के साथ आगे बढऩे की एक बदहवास दौड़ है। परिणाम एक तरफ अरबों कमा कर व्यक्ति खुद को अकेला पा रहा है, तो दूसरी तरफ दरकते खेत, बंजर जमीन को देख अन्नदाता अपने प्राण गंवाने को मजबूर है।

रिश्तों में नातों में यह बेहद गरीबी का दौर है, जहां युवा भी अकेला है और बुजुर्ग भी। संवेदनाओं का अकाल समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में है। कारण जीवन में सफलता के अर्थ परिवर्तित हो गए हैं। सफल होना और सार्थक होने में क्या फर्क है। यह हम नई पीढ़ी को बताना तो दूर खुद भी भूल गए हैं।

अत: आवश्यक है कि हम नए प्रतिमान गढ़ें, नए आदर्शों को समझें। ऐसा नहीं है कि इन सात दशकों में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में, देश की सीमा से लेकर घर की चारदीवारी के भीतर भी अपना सर्वस्व समाज को आर्पित करने वाले हमें नहीं दिखाई देंगे पर उन्हें पहचान ठीक वैसी ही नहीं है जैसे जेएनयू का कन्हैया हर एक की जुबान पर है।

पर हवाई जहाज में आतंकियों से अकेली जूझने वाली नीरजा को हम भूल गए हैं। आइए तलाश करें, समाज जीवन में स्वयं को गलाकर, तपाकर, जलाकर राष्ट्र निर्माण में रत असली नायक नायिकाओं को तो न सिर्फ पर्दे के महानायक कपड़ों में रहना सीखेंगे अपितु राष्ट्र निर्माण की एक नई शुरुआत भी होगी।

अतुल तारे