नई दिल्ली। तीन तलाक के मुद्दे पर रविवार को वित्तमंत्री और वरिष्ठ वकील अरूण जेटली ने कहा है कि समय के साथ कई प्रावधान अप्रचलित और पुरातन हो जाते हैं ऐसे में सरकारों, विधायिकाओं और समुदायों को इस बात को समझते हुए बदलाव अपनाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों ने इन प्रश्नों पर स्पष्ट रुख अख्तियार नहीं किया था लेकिन वर्तमान सरकार ऐसा नहीं करेगी।
वित्त मंत्री ने कहा कि छह दशक पहले रूढ़िवादी सोच को न्यायिक समर्थन मिला था कि पर्सनल कानून व्यक्तिगत गारंटी के साथ असंगत हो सकते हैं लेकिन आज ऐसा होना मुश्किल है।
सरकार का तीन तलाक पर रूख इसी को ध्यान में रखकर अपनाया गया है। उन्होंने कहा कि धार्मिक प्रथाओं, रीति-रिवाजों और नागरिक अधिकारों में एक बुनियादी अंतर है।
उन्होंने कहा कि पर्सनल कानूनों को संविधान के अनुरूप होना चाहिए और तीन तलाक की व्यवस्था को समानता के मापदंड और गरिमा के साथ जीने के अधिकार पर आंका जाना चाहिए।
समान नागरिक कानून पर सरकार की स्थिति स्पष्ट करते हुए वित्तमंत्री ने फेसबुक पर लिखे लेख में कहा है कि संविधान निर्माताओं ने शासन के नीति निर्देशक सिद्धांतों में आशा व्यक्त की थी कि वह एक समान नागरिक कानून लागू कराने का प्रयास करेंगे।
इसी क्रम में विधि आयोग ने शैक्षणिक अभ्यास के तौर पर देश में इस विषय पर बहस को निरंतरता प्रदान की है।
उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पंडित नेहरू ने सबसे पहले हिन्दुओं के पर्सनल लॉ में बदलाव किया था। इसके बाद मनमोहन सिंह ने लैंगिक समानता के लिए विधायिक बदलाव किए। वहीं अटल विहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में ईसाइयोंं के शादी और तलाक से जुड़े प्रावधानों में बदलाव किया।
उल्लेखनीय है कि तीन तलाक के मुद्दे पर सरकार ने शीर्ष अदालत में हलफनामा दायर कर इसे लैंगिक समानता के खिलाफ बताया है जिसका मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड विरोध कर रहा है।
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