गया। विश्व में पितरों की मुक्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ तीर्थस्थल माने जाने वाले गया धाम में पिंडदान करने से 108 कुल और सात पीढियों तक का उद्धार हो जाता है। विश्व में पितरों की मुक्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ तीर्थस्थल माना गया है। वैसे तो पूरे साल गयाजी में पिंडदान किया जाता है लेकिन पितरों के लिए विशेष पक्ष यानि पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने का अलग महत्व शास्त्रों में बताया गया है। पितृपक्ष प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अनन्त चतुदर्शी के दिन से प्रारम्भ होता है जो अश्विन मास की आमावस्या तिथि को समाप्त होता है। हर वर्ष की तरह इस वष्ाü गया जी में विश्व प्रसिद्ध मेला 8 सितम्बर से आरम्भ हो चुका है जो आगामी 24 सितम्बर तक चलेगा। इस अवधि में देश विदेश के लाखों सनातन धर्मावलंबी यहां अपने पितरों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए पिंडदान, श्राद्ध एवं तर्पण कर्मकांड कर रहे है।…
लोकमान्यता है कि गयाजी में श्राद्ध कर्मकांड सृष्टि के रचना काल से शुरू है। वायुपुराण, अग्निपुराण तथा रू ढ पुराण में गया तीर्थ का वर्णन है। सृष्टि रचियता स्वयं भगवान ब्रह्मा ने पृथ्वी पर आकर फल्गु नदी में फिर प्रेतशिला में पिंडदान किया था। त्रेता युग में भी भगवान श्रीराम भी अपने पिता राजा दशरथ के मरणोपरांत फल्गु नदी के तट पर श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान, कर्मकांड को कर पितृऋण से मुक्त हुए थे।
द्वापर युग में भी कुरू क्षेत्र में मारे लाखों लोगों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किए जाने का वर्णन मिलता है। वहीं महाभारत काल में भी पांडवों का दो बार गया आने का वर्णन मिलता है। वैसे तो गया धाम में 365 पिंडवेदियों पर पिंडदान और तर्पण करने का विधान है लेकिन कलान्तर में एक एक कर पिंडवेदियों के लुप्त हो जाने से 54 वेदियां ही बची है। इनमें गया श्राद्ध में अब तीन ही वेदियां फल्गु नदी का तट, विष्णुपद मंदिर तथा अक्षयवट में पिंडदान होता है। इसके अलावा सीताकुंड, रामशिला, प्रेतशिला, धर्मारण्य, रू कमिणी तालाब, वैतरणी तालाब समेत अन्य तालाबों पर भी पिंडदान किया जाता है।
गयापाल पंडा समाज से आने वाले स्वामी राघवाचार्य बताते है कि हिन्दु धर्मग्रंथों में मान्यता है कि मृत आत्माओं को मोक्ष या शंाति तभी मिलती है जब उनके वंशजों में कोई भी गया धाम आकर उनके नाम पर पिंडदान और तर्पण करता हैं। मोक्ष की प्राप्ति के लिये पिंडदान, श्राद्ध एवं तर्पण का विधान गया जी में अतिप्राचीन काल से अबतक निर्बाध रूप से चलता आ रहा है।
राघवाचार्य का कहना है कि गया जी में पिंडदान करने से 108 कुल और सात पीढियों तक का उद्धार हो जाता है। साथ ही पिंडदानकर्ता को भी पितृऋ ण से मुक्ति मिल जाती है और पितरों की आत्मा आर्शीवाद देती हैं।