नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परीक्षाओं की तैयारियों में जुटे छात्र-छात्राओं को ‘स्माइल मोर, स्कोर मोर’ का मंत्र देते हुए कहा कि परीक्षाओं को बोझ नहीं उत्सव के रूप में लें और प्रतिस्पर्द्धा से ज्यादा अनुस्पर्द्धा का रास्ता अपनाएं।
प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को इस वर्ष के अपने पहले बहुचर्चित कार्यक्रम मन की बात में छात्रों से रूबरू होते हुए कहा कि उन्हें परीक्षाओं को उत्सव के माहौल के रूप में लेना चाहिए और तनाव मुक्त होकर परीक्षा देनी चाहिए क्योंकि तनाव में रहने पर आप वह भी भूल जाते हैं जो आप ने याद किया होता है।
उन्होंने परीक्षाओं में नकल नहीं करने की भी सलाह देते हुए कहा कि नकल करने पर आजीवन आपके मन पर बोझ बना रहता है। प्रधानमंत्री ने जनवरी से अप्रैल तक के 4 महीनों को हर परिवार के लिए कसौटी वाला बताते हुए कहा कि इस दौरान हर घर में एक-आध, दो बच्चों की परीक्षा होती है, लेकिन पूरा परिवार परीक्षा के बोझ में दबा हुआ होता है।
उन्होंने कहा कि इस विषय पर अनेक शिक्षकों, अभिभावकों, विद्यार्थियों ने अपने सवाल और सुझाव भेजे। उन्होंने अपनी पीड़ा भी व्यक्त की। सृष्टि ने पूछा कि परीक्षा के समय हमारे समाज में बहुत ही ख़ौफ़नाक और डरावना माहौल बन जाता है। इससे छात्र प्रेरणा तो कम, लेकिन हताश बहुत हो जाते हैं। तो क्या ये माहौल ख़ुशनुमा नहीं हो सकता?”
इसके जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा कि परीक्षा अपने-आप में एक ख़ुशी का अवसर होना चाहिए। सालभर मेहनत की है। अब बताने का अवसर आया है। ऐसा उमंग-उत्साह का ये पर्व होना चाहिए। बहुत कम लोग हैं, जिनके लिए परीक्षा में खुशी होती है।
ज़्यादातर लोगों के लिए परीक्षा एक दबाव होती है। जो परीक्षा को दबाव मानेगा, वह पछताएगा। इसलिए परीक्षा को ऐसे लीजिए जैसे मानो त्योहार है। मोदी ने अभिभावकों को भी इन तीन-चार महीनों के दौरान परिवार में उत्सव का माहौल बनाने की सलाह दी।
उन्होंने कहा कि पूरा परिवार एक टीम के रूप में इस उत्सव को सफल करने के लिए अपनी-अपनी भूमिका उत्साह से निभाए। प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं तो आपसे कहूंगा ‘स्माइल मोर, स्कोर मोर’। जितनी ज़्यादा ख़ुशी से इस समय को बिताओगे, उतने ही ज़्यादा नंबर पाओगे।
आपने देखा होगा कि जब आप खुश होते हैं तो आप अपने आप को रिलेक्श पाते हैं। ऐसी स्थिति में आपको वर्षों पुरानी बातें भी सहज रूप से याद आ जाती हैं। अगर आप तनाव में हैं, तो सारे दरवाज़े बंद हो जाते हैं। बाहर का अंदर नहीं जाता, अंदर का बाहर नहीं आता है। विचार प्रक्रिया में ठहराव आ जाता है। वह अपने-आप में एक बोझ बन जाता है।
ऋचा आनंद ने पूछा कि आज शिक्षा परीक्षा केन्द्रित हो कर रह गई है। अंक सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि अंक और अंक-पत्र का एक सीमित उपयोग है। जीवन में आपको ज्ञान, स्किल, आत्मविश्वास और संकल्पशक्ति काम आने वाली है।
डॉक्टर और वकील का उदाहरण देते हुए मोदी ने कहा कि इनकी सेवाएं लेने से पहले क्या कोई इनसे पूछता है कि वह कितने नंबर से पास हुआ था। अगर आप ज्ञान को केंद्र में रखते हैं, तो बहुत चीज़ों को अपने में समेटने का प्रयास करते हो। मोदी ने कहा कि जीवन को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्द्धा नहीं अनुस्पर्द्धा काम आती है क्योंकि यह स्वयं से स्पर्द्धा करना है।
बीते हुए कल से आने वाला कल बेहतर कैसे हो? बीते हुए परिणाम से आने वाला अवसर अधिक बेहतर कैसे हो? ज़्यादातर सफल खिलाड़ियों के जीवन की एक विशेषता है कि वो अनुस्पर्द्धा करते हैं। सचिन तेंदुलकर का ही उदहारण लेें। बीस साल लगातार अपने ही रिकॉर्ड तोड़ते जाना, खुद को ही हर बार पराजित करना और आगे बढ़ना।
प्रधानमंत्री ने एक गुमनाम संदेश का जिक्र किया जिसमें संदेश देने वाले बताया कि उसने परीक्षा के दिनों में नकल की और पकड़ा गया जिसके कारण उसे और उसके मित्रों को काफी परेशानी भी हुई थी। मोदी ने कहा कि ये जो शार्ट-कट वाले रास्ते होते हैं, वो नक़ल करने के लिए कारण बन जाते हैं।
कभी-कभार ख़ुद पर विश्वास नहीं होने के कारण मन करता है कि बगल वाले से ज़रा देख लूं। पुष्टि कर लूं कि मैंने जो लिखा है, सही है कि नहीं है। और कभी-कभी तो हमने सही लिखा होता है, लेकिन बगल वाले ने झूठा लिखा होता है, तो उसी झूठ को हम कभी स्वीकार कर लेते हैं और हम भी मर जाते हैं। तो नक़ल कभी फ़ायदा नहीं करती है। नक़ल आपको बुरा बनाती है, इसलिए नक़ल न करें।
आपने कई बार और बार-बार ये सुना होगा कि नक़ल मत करना, नक़ल मत करना। मैं भी आपको वही बात दोबारा कह रहा हूं। नक़ल को आप हर रूप में देख लीजिए, वो जीवन को विफल बनाने के रास्ते की ओर आपको घसीट के ले जा रही है और परीक्षा में ही अगर निरीक्षक ने पकड़ लिया, तो आपका तो सब-कुछ बर्बाद हो जाएगा।
मान लीजिए, किसी ने नहीं पकड़ा तो जीवन पर आपके मन पर एक बोझ तो रहेगा कि आपने ऐसा किया था और जब कभी आपको अपने बच्चों को समझाना होगा, तो आप आँख में आँख मिला कर के नहीं समझा पाओगे।
और, एक बार नक़ल की आदत लग गई तो जीवन में कभी कुछ सीखने की इच्छा ही नहीं रहेगी। फिर तो आप कहां पहुंच पाओगे? प्रधानमंत्री ने परीक्षा के दौरान तनाव से बचने के लिए छात्रों को मन, बुद्धि, शरीर को सचेत रखने के लिए खेल को भी एक बहुत बड़ी औषधि बताया है।
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