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UP polls 2017 : setback for Rahul Gandhi
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यूपी का चुनावी दंगल : राहुल गांधी को करारा झटका

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यूपी का चुनावी दंगल : राहुल गांधी को करारा झटका
UP polls 2017 : setback for Rahul Gandhi
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कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सपा के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के संदेश और संकेत की राजनीति को ठीक ही समझा। लेकिन कांग्रेस नेतृत्व उसकी अनदेखी कर ‘अपमान सहन करो’ की नीति पर चल रहा है।

क्या यह उसकी राजनीतिक विवशता है? ऐसा ही समझा जा रहा है। तभी तो उसने ’27 साल, उत्तर प्रदेश बेहाल’ का नारा छोड़ा। अकेले दम पर चुनाव लड़ने का इरादा एक ओर रख दिया। बिचौलियों के जरिए गठबंधन की बात चलाई। वह ठीक ही चल रही थी। जैसा कि मीडिया में प्रोजेक्ट किया रहा था।

अचानक क्या हुआ कि सपा की एक सूची जारी हो गई। उसमें सिर्फ वे ही सीटें होती जो सपा की अपनी जीती हुई थी तो कोई खास बात नहीं होती। हैरानी तब हुई जब कांग्रेस की सीटों पर भी उम्मीदवारों की घोषणा सपा ने कर दी।

इसे और किसी ने नहीं, अध्यक्ष और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ही जारी करवाया। इसलिए इसका राजनीतिक संदेश बहुत साफ है। इस बारे में बात करने से पहले एक अलग पहलू से सोचना उचित ही होगा। वह यह कि जन-जीवन में मान-अपमान जीवन-मरण के समान होता है।

जिसका मान होता है वह समाज में सम्मान से जीने का अधिकारी माना जाता है। जिसका अपमान होता है उसे कई बार डूब मरने की हालत में रहना पड़ता है। जरूरी नहीं है कि यह नियम राजनीति और वह भी चुनाव के मैदान में भी चले।

चुनाव का मैदान कुरूक्षेत्र ही होता है। धर्मक्षेत्र तो कतई नहीं। अगर वह धर्मक्षेत्र होता तो कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी शुक्रवार यानी बीते कल की शाम को मीडिया में घोषणा कर देते कि सपा से अब गठबंधन का सवाल ही नहीं है।

उनकी ऐसी घोषणा को एक आदर्श माना जाता। जिससे 132 साल पुरानी कांग्रेस के सम्मान की बहाली हो जाती, ऐसी घोषणा नहीं हुई। नेतृत्व जहां विफल रहा वहीं कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने पार्टी की लाज बचाई। आन रखी। नारे लगाए-राहुल तेरा अपमान नहीं सहेंगे। दूसरा नारा अखिलेश के बारे में था-‘जो नहीं हुआ बाप का, वह क्या होगा आपका।’

यह सब राज बब्बर के सामने ही हुआ। वे तो कार्यकर्ताओं को शांत करने में लगे थे। समझा रहे थे कि जल्दबाजी में उत्तेजित होने की जरूरत नहीं है लेकिन उनके उपदेश पर बार-बार कार्यकर्ता पानी फेर दे रहे थे। असली सवाल है कि अखिलेश ने गठबंधन तोड़ दिया है या सिर्फ कांग्रेस को झटका दिया है?

इस बारे में अटकलें तेज हैं। वे अपने-अपने नजरिए से निर्धारित हो रही हैं। पर इतना तय है कि सपा के घरेलू संग्राम में अखिलेश यादव के जो सलाहकार थे उनकी ही चली है। वे कौन हैं? इसे सभी जानते भी हैं और नहीं भी जानते हैं। वे अदृश्य हाथ हैं। प्रशासन तंत्र में बैठे हैं। उन्हीं की कठपुतली हैं, अखिलेश यादव।

जाहिर है, कलाकार कोई और है। उन कलाकारों की सलाह पर जो संदेश और संकेत अखिलेश यादव की घोषणा से निकला है, उससे दो बातें तय हो गई हैं। एक कि गठबंधन अगर होगा तो वह अखिलेश यादव की शर्तों पर होगा, कांग्रेस की शर्तों पर नहीं। दूसरी कि राहुल गांधी को राष्ट्रीय राजनीति में भी अखिलेश का नेतृत्व स्वीकार करना होगा।