अमरीका में राष्ट्रपति पद का चुनाव 8 नवंबर को है। दुनिया के इस प्रभावशाली देश के राष्ट्रपति चुनाव को लेकर उत्सुकता स्वाभाविक है। अमरीका में राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेट उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन व रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के बीच मुख्य मुकाबला है।
चुनाव से पहले डिबेट कार्यक्रमों में इन दोनों ही उम्मीदवारों द्वारा जिस ढंग से मुद्दे उठाए जा रहे हैं तथा दोनों ही एक दूसरे पर व्यक्तिगत हमला करने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं दे रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि विश्व के प्रभावशाली देशों में भी राजनीति का अवमूल्यन उन देशों के लोकतंत्र की गहराई तक समाया हुआ है।
अमेरिकी राष्ट्रपति कौन होगा, वह अमरीका के हितों तथा दुनिया के अन्य देशों के बीच इस बड़े मुल्क की वांछित भूमिका निभाने में कितना सफल रहेगा तथा अमरीका के नए राष्ट्रपति का भारत के प्रति क्या रवैया रहेगा यह तो सब चुनाव के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा लेकिन अमरीका के राष्ट्रपति पद के दोनों ही उम्मीदवार उच्छंखलता से भरे हुए हैं।
दोनों ही उम्मीदवारों द्वारा अमरीका जैसे बड़े देश के शासनाध्यक्ष की मानवतावादी कार्ययोजना अपने देश एवं दुनिया के सामने प्रस्तुत न करते हुए सिर्फ वैचारिक जड़ता का ही परिचय दिया जा रहा है तथा दोनों ही उम्मीदवार अपने बयानों-भाषणों के जरिये यह साबित करने पर तुले हुए हैं कि अमरीका का राष्ट्रपति बनने के बाद वह जादुई तिलिस्म के जरिये अपने मुल्क को रातों-रात दुनिया का बादशाह बना देंगे।
अमरीकी जनमानस के मन में उन्माद भरने तथा दुनिया के कुछ देशों को लुभाने तो कुछ देशों को भयाक्रांत करने वाली बयानबाजी कर रहे अमरीका के दोनों ही राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार अपने भाषणों के माध्यम से यह बताने की जरा भी कोशिश नहीं कर रहे हैं कि अगर वह राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित होते हैं तो वह अमरीका की स्वेच्छाचारिता व तानाशाही पर किस हद तक अंकुश लगाएंगे।
दोनों ही उम्मीदवार इस बात की गारंटी नहीं दे रहे हैं कि उनके राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद अमरीका दुनिया के किसी भी दबे-कुचले राष्ट्र पर अत्याचार नहीं करेगा। कहीं भी बेवजह बमबारी नहीं की जाएंगी। किसी भी देश के पेट्रोलियम पदार्थों पर गिद्धदृष्टि इनायत करते हुए हड़प नीति अपनाकर उस देश के शासनतंत्र को तहस-नहस नहीं किया जाएगा।
अमरीका का पिछले कई वर्षों से जो रवैया रहा है उसके आधार पर यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि विश्व का यह प्रभावशाली देश अन्य राष्ट्रों के अंदरूनी मामलों में दखलंदाजी का आदी बन गया है।
खुद के मानवता विरोधी आचरण और दुनिया के कई देशों में बेवजह रक्तपात को बढ़ावा देने के लिए अक्सर आलोचनाओं का शिकार होने वाले अमरीका के उल्लेखित दोनों ही राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को यह बताना चाहिए कि अब बदले हुए हालात के आधार पर अमरीका ताकतवर तो बनेगा लेकिन वह विश्वभर में मानवतावादी मूल्यों के ध्वजवाहक की भी अग्रणी भूमिका निभाएंगा।
अमरीकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि दुनिया के किसी भी देश की सामरिक क्षमता बढऩे पर इस ताकतवर राष्ट्र के पेट में मरोड़ पैदा होने लगती है तो फिर यह प्रभावशाली देश खुद परमाणु अप्रसार संबंधी प्रतिबद्धता को खुद अपने आप पर कड़ाई पूर्वक लागू क्यों नहीं करता?
अमरीका अगर दुनिया के दूसरे देशों में खौफ पैदा करने तथा कमजोर राष्ट्रों को रक्तरंजित करने के लिए अपनी सामरिक क्षमता का इस्तेमाल कर सकता है तो दुनिया के दूसरे राष्ट्रों को आत्मरक्षा के लिए सामरिक क्षमता से परिपूर्ण क्यों नहीं होना चाहिये? साथ ही उक्त राष्ट्रों को सामरिक क्षमता के मामले में अमरीका के औचित्य प्रमाण पत्र का मोहताज क्यों होना चाहिये?
हम उदाहरण के तौर पर भारत के प्रति ही अमरीकी नजरिये की बात करें तो अमरीका द्वारा भारत के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, भौगोलिक तथा कूटनीतिक पहलुओं पर जमकर ज्ञान बघारा जाता रहता है जबकि अमरीका की खुद की फजीहत ऐसे मामलों में कम नहीं है।
मानवाधिकारों के हनन की सर्वाधिक घटनाएं अमरीका में घटित होती हैं। अपराध सबसे अधिक अमरीका में होते हैं, बेरोजगारी के मुद्दे पर अमरीका में मारामारी मचती है तो फिर अमरीका को चाहिए कि वह खुद के हालात बेहतर करने पर अपना ध्यान केन्द्रित करे।
भारत या दुनिया के देशों में क्या हो रहा है तथा संबंधित देशों को हालात से निपटने के लिए क्या करना चाहिए, यह सब संबंधित देशों को ही तय करने दिया जाए। अमेरिका के राष्ट्रपति पर के दोनों ही उम्मीदवार ऐसे ज्वलंत मुद्दों पर भी खुलकर अपनी राय व्यक्त करें व कार्ययोजना बताएं।
सुधांशु द्विवेदी