कानपुर। दीपावली पर धन लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हारों के चाक ने गति पकड़ ली है। उनको उम्मीद है कि इस बार लोग परंपरागत मिट्टी के दीपक से ही दीवाली मनाएंगे और उन्हें अपार खुशियां मिलेंगी।
भारत द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक किए जाने के बाद जिस तरह से चीन पाकिस्तान का अप्रत्यक्ष साथ दे रहा है। उसका असर चाइनीज बाजार में भी पड़ने लगा।
सामाजिक संगठनों व सोशल मीडिया में लगातार चाइनीज उत्पादों का बहिष्कार किया जा रहा है जिसके चलते दीपावली के त्यौहार में कुम्हारों के दिन अच्छे आ गए।
मिट्टी के दीपक की बढ़ती मांग को देखते हुए कुम्हारों की बस्ती में रात-दिन चाक का पहिया रफ्तार पकड़े हुए है।
कुम्हारों की गली लक्ष्मीपुरवा के रामदास ने बताया कि बीते एक दशक के बाद पहली बार मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ी है। उसने बताया कि एक सप्ताह से पूरा परिवार मिट्टी के दीपक बना रहा है।
काकादेव के कुम्हारों वाली गली के लक्ष्मीशंकर ने बताया कि एक समय था कि काकादेव में दूर-दराज के लोग दीपक लेने आते थे लेकिन पिछले 10 वर्षों से चाइनीज बाजार ने कमर तोड़ दी थी, इस बार न जाने क्यों लोग मिट्टी के दीपक पर अधिक खरीद रहें है।
कुछ भी हो अब मांग को देखते हुए हमें लगता है लोग अपने परंपरागत की ओर उन्मुख हो गए हैं। उसने बताया कि मिट्टी के दीपक से दीवाली जलाने से घरों में खुशियां मनमाफिक मिलती है।
दीपावली का त्यौहार इसी दीवाली के लिए जाना जाता है। मसवानपुर के महेश दास ने बताया कि चाइनीज उत्पादों को कम करने के लिए इनका दाम इतना कम रखा गया है कि सब कोई आसानी से खरीद सके। उसने बताया कि 100 दीपक 50 रूपए में बेचे जा रहे हैं।
अब मिट्टी भी है सोना
खनन माफियाओं की वजह से अब मिट्टी के दीपक व बर्तन बनाने के लिए मिट्टी जल्दी नहीं मिलती है। जिससे प्रजापति समाज के लोग अपनी रोजी कमाने के लिए तरस रहे है।
नंदलाल प्रजापति ने बताया कि जिस प्रकार इस दीपावली में मांग बढ़ी है उससे हम लोगों का धंधा वापस आता दिख रहा है लेकिन अब मिट्टी भी सोना हो गई है। सरकारी जमीनों पर खनन माफियाओं का राज है और लोग अपने खेतों से मिट्टी देते नहीं है।
ऐसे तैयार होता है दीपक
इन्द्रपाल ने बताया कि मिट्टी को घर लाने के बाद उसकी कुटाई की जाती है। जिसके बाद उसको महीन पीसकर छाना जाता है। छानी हुई मिट्टी को घर मे बने एक बडे गड्ढे मे पानी भरकर करीब 14 घंटे फूलने को छोड दिया जाता है।
जिसके बाद उस फूली मिट्टी को बाहर निकालकर उसको आटे की तरह गूंदा जाता है। फिर उसका पीढा बनाकर चाक पर रखकर दिए बनाये जाते है। जिसे धागे से काटकर सूखने को रखे जाते हैं। शाम होते ही भूसी खरीदकर आग में पकाया जाता है। तब जाकर दीपक तैयार होता है।